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किराये पर कौन दे सकता है "कोख"

महिलाओं की शारीरिक बनावट और उनके प्राकृतिक गुण यह दिखाते हैं कि इनका शरीर सृष्टि के सृजन के लिए बनाया गया है। यानी BIOLOGICALLY तो महिलाएं गर्भ धारण करने, पालने और बच्चे को जन्म देने में कैपेबल होती है। साथ ही ऑक्सीटोसिन, प्रोलैक्टिन, एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरोन और प्रोलैक्टिन-रिलीज़िंग पेप्टाइड जैसे कई हार्मोन्स भी माँ के इमोशंस को डेवेलप करते हैं। लेकिन माँ बनने में बहुत सारी दिक्क्तें भी झेलनी पड़ती है। कभी कभी यह दिक्कत इतनी बड़ी होती है कि औरत मां  ही नहीं बन सकती है। इसी तरह की कुछ समस्यायों का समाधान सरोगेसी होता है। .. दरअसल यह उस वक्त सबसे ज्यादा चर्चा में आया जब बॉलीवुड के कपल्स सरोगेसी के ज़रिए पैरेंट्स बने.. 

सरोगेसी .. आज के समय में किसी वरदान से कम नहीं है.. उन महिलाओं के लिए जो मां बनाने के सुख से वंचित हैं। आम भाषा में इसे ‘किराए की कोख’ नाम से भी जाना जाता है। यह एक तरह की आधुनिक तकनीक है  जिसके ज़रिये कोई अन्य महिला अपने या फिर डोनर के एग्स के ज़रिए किसी दूसरे कपल के लिए गर्भ धारण करती हैं। जो महिला प्रेग्नेंट होती है वह अपने गर्भ में ही बच्चे को पालती है और फिर बच्चे को कपल को सौंप देती है। लेकिन क्यों किसी कपल को अपने ही बच्चे को दूसरे के गर्भ के पालना पड़ता है.. सरोगेसी से बच्चे को पैदा करने की वैसे तो कई वजह हो सकती हैं। लेकिन यहां दो कारण सबसे बड़े हैं, अगर कोई कपल बच्चे को जन्म देने में असमर्थ हो, या फिर गर्भ धारण की वजह से मां की जान को खतरा हो, तब वे इस प्रक्रिया का चुनाव करते हैं।

 अब आज इसका ज़िक्र करने के पीछे की वजह क्या है.. दरअसल लखनऊ के एक डॉक्टर ने किराए की कोख के लिए आवेदन किया था, जिसके लिए सीएमओ की कमेटी ने जांच कर हरी झंडी भी दे दी है, हालांकि डीएम की ओर से इस पर अंतिम मुहर लगना अभी बाकी है। इस पर स्वास्थ्य विभाग की ओर से यह बताया गया है कि सरोगेसी अधिनियम 2021 लागू होने के बाद यह प्रदेश में किराए की कोख के लिए आवेदन करने का पहला मामला है। 

 सरोगेसी अधिनियम 2021 क्या है ?

सरोगेसी अधिनियम 2021 के अनुसार, जो महिला 35 से 45 आयु के बीच बिधवा या फिर तलाकशुदा है.. या फिर ऐसे कपल जो क़ानूनी रूप से विवाहित हो वो सरोगेसी का विकल्प चुन सकते हैं। यहां ख़ास बात यह है कि भारत में कमर्शियल सरोगेसी पर प्रतिबंध है। यानी सरोगेसी को किराए की कोख ज़रूर कहा जाता है लेकिन इसके लिए कोई भुगतान करना गैर क़ानूनी है। कानूनन भारत में सरोगेसी परोपकार या सामाजिक हित में ही बच्चे को जन्म देने की अनुमति देता है। हालांकि इस दौरान होने वाले खर्चे को सरोगेसी के लिए आवेदन करने वाले कपल को ही करना होता है। हालांकि सरोगेसी के दुरुपयोग को रोकने के लिए साल 2016 में सरोगेसी बिल लाया गया था लेकिन अब इसके नए फॉर्मेट को सरोगेसी रेगुलेशन बिल 2019 नाम से पेश किया गया है। इस बिल के तहत सरोगेसी की अनुमति सिर्फ संतानहीन विवाहित दंपतियों को ही दी गई है। साथ ही सरोगेसी की सुविधा का इस्तेमाल लेने के लिए कई नियमों का पालन करना होता है। 

क्या है नियम?

सरोगेट मदर को भी इस प्रक्रिया के लिए एलिजिबल होना चाहिए, जैसे कि हमने पहले बताया, सरोगेट बन रही महिला की उम्र 25 से 35 वर्ष के बीच होनी चाहिए। वह शादीशुदा होनी चाहिए और वह पहले से ही मां बन चुकी हो। इसके अलावा ऐसी महिला जो पहली बार सरोगेट हो। इन सबके बाद उस महिला को एक मनोचिकित्सक से सर्टिफिकेट भी प्राप्त होना चाहिए,  जिसमें उसे मानसिक रूप से फिट होने के लिए प्रमाणित किया गया हो। एक बार दंपति और सरोगेट ने अपना पात्रता प्रमाण पत्र प्राप्त कर लिया, तो वे सरोगेसी के लिए सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (Assisted Reproductive Technology- ART) केंद्र से संपर्क कर सकते हैं। कानून यह भी कहता है  कि सरोगेट माता और दंपति को अपने आधार कार्ड को लिंक करना होगा। यह व्यवस्था में शामिल व्यक्तियों के बायोमेट्रिक्‍स का पता लगाने में मदद करेगा, जिससे धोखाधड़ी की गुंजाइश कम हो जाएगी।

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