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"G-20-विशेष"-विश्व स्तर पर डिजिटल खेती की बढ़ती लोकप्रियता ने यूपी में भी दी दस्तक

एक समय था जब बैंको से पैसे निकालने के लिए,  प्रियजनों को पैसे भेजने के लिए के लिए एक लम्बी लाइन लगानी पड़ती थी। अब फ़ोन पे, गूगल पे, भीम ऍप के साथ कई और तरीके आ गए हैं जिससे आप झट से पैसे ट्रांसफर कर सकते हैं। यही नहीं आप ऊबर घर बैठे बुला सकते हैं, दूर बैठे अपने घर वालों से वीडियो कॉल से बात कर सकते हैं। ऐसे कई उदाहरण है जो दिखाते हैं कि टेक्नोलॉजी का हमारे जीवन में कितना प्रभाव बढ़ गया है। अब जब टेक्नोलॉजी का इन्वोल्वेशन इतना ही हमारे जीवन में हो चुका है तो खेती इससे कैसे अछूती रह जाये। भारत में इसके लिए किसान, स्टार्टअप और सरकार मिलकर चंहुमुखी दिशा से भागीदारी करने की कोशिश में लगे हुए हैं। वैश्विक लेवल पर डिजिटल फार्मिंग के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए भारत सरकार ने "डिजिटल एग्रीकल्चर मिशन" के तहत कई पहलों पर काम करना शुरू भी कर दिया है। अभी हाल ही में काशी में आयोजित जी-20 देशों के कृषि विज्ञानियों की तीन दिवसीय बैठक में भी इस पर जोर दिया गया। इस चर्चा का मेन फोकस कृषि खाद्य प्रणाली में innovation and technology के यूज़ को बढ़ाने पर था।

क्या है डिजिटल फार्मिंग?
दरअसल डिजिटल फार्मिंग नयी तकनीक और इनोवेशन के जरिये खेती को मैनेज करने और उसके जुड़े रिकॉर्ड रखने का एक तरीका है। डिजिटल फार्मिंग में मशीनों के जरिये खेती होती है, जीपीएस के जरिये जमीनों का ऑब्जरवेशन होता है और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस जैसी तकनीकों की मदद से खेती के अन्य काम किये जाते हैं। किसान अपनी समस्यायों का समाधान फ़ोन और ऍप के जरिये प्राप्त कर सकते हैं और साथ ही साथ अपनी फसल को बेचने के लिए भी इन टूल का यूज  कर सकते हैं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि खेती के कामों  में टेक्नोलॉजी का यूज़ और किसानी में मिलने वाली डिजिटल मदद को मिलाजुला कर बनती है डिजिटल फार्मिंग।

इसकी उपयोगिता क्या है?
डिजिटल खेती का सबसे बड़ा फायदा यह है कि रियल टाइम में किसानों को दूर बैठ कर भी मदद दी जा सकती है। इससे कई डेली लाइफ में होने वाले नुकसानों से फसल का बचाव किया जा सकता है। खेतो की वास्तविक स्थिति जानने के लिए सेंसर, ड्रोन और कंप्यूटर इमेजिंग को शामिल किया जाता है। जिससे फसल की क्षतिपूर्ति तो की ही जा सकती है साथ ही किस क्षेत्र के खेत में क्या उगाया जाये इसकी भी सलाह दी जा सकती है। खेतो का रिकॉर्ड रखने के लिए डेटा रिकॉर्ड किया जाता है। इसी डेटा रिकॉर्ड के आधार पर भविष्य की योजनाए बनायीं जाती है। सैटेलाइट इमेजरी, मशीन लर्निंग और डेटा स्टोरेज के  आधार पर अतीत से वर्तमान की तुलना की जा सकती है और भविष्य के लिए प्लान भी बनाये जा सकते हैं और सबसे बड़ी बात किसानों को मिलने वाला सरकारी लाभ बिना बिचौलिए के सीधे उनके खाते में पहुंचाया जा सकता है।

विश्व स्तर पर इसकी लोकप्रियता क्यों बढ़ रही है
अब चूँकि डिजिटल फार्मिंग किसी विशेष खेत या विशेष क्षेत्र या किसान विशेष की समस्या का निराकरण करने में सक्षम है इसलिए end-to-end समाधान के चलते इसकी लोकप्रियता बढ़ रही है। उच्च पैदावार में अनुकूलन बनाये रखने के लिए लगातार निगरानी की जा सकती है और ज्यादा खादों और उर्वरकों के प्रयोग को भी रोका जा सकता है। समय व पैसे की बचत, कम पानी में भी सिचाई की सुविधा जैसे फायदों के चलते भी इसकी लोकप्रियता पूरी दुनियां में बढ़ रही है।

भारत इसके लिए किस तरह की के कदम उठा रहा है 
अगर भारत की बात करें तो यहाँ डिजिटल कृषि मिशन अभी अंतिम रूप में सामने नहीं आ पाया है पर डिजिटल कृषि के तहत कई गतिविधियाँ और पहल की जा रही हैं। डिजिटल फार्मिंग के लिए एक उच्च स्तरीय टास्क फोर्स का गठन किया है, जो "इंडिया डिजिटल इकोसिस्टम ऑफ एग्रीकल्चर पर काम कर रही है। इसकी रिपोर्ट के आधार पर ही किसानों की आय बढ़ाने, कृषि में सुधार करने, डिजिटल तकनीकों का लाभ उठाने और नए कृषि-केंद्रित समाधान बनाने के लिए काम किया जायेगा। किसान को सुविधा पहुंचाने के लिए Kisan Suvidha, PUSA KRISHI, SHETKARI MASIK ANDROID APP, FARM-O-PEDIA सहित कई मोबाइल एप्लिकेशन भी विकसित किए गए। इसके अलावा मृदा स्वास्थ्य कार्ड, कोल्ड स्टोरेज और गोदाम, मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएं और पशु चिकित्सा केंद्र और नैदानिक प्रयोगशालाएं, फसल बीमा प्रीमियम कैलकुलेटर सहित कई सरकारी योजनाएं भी संचालित की जा रही है।

इसको बढ़ावा देने में क्या चुनौतियाँ हैं 
इतने प्रयासों के बाद भी डिजिटल फार्मिंग को लेकर भारत में कई चुनौतियां मुँह फैलाये खड़ी हैं।  जैसे भारत के अधिकांश किसानों के पास डिजिटल तकनीकों का अभाव है। साथ ही साथ उन्हें आधुनिक खेती के बारे में जानकारी भी कम है जिससे वे अपने क्षेत्र में उपलब्ध तकनीकों का उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। कुछ राज्यों और क्षेत्रों में खेती को लेकर विभिन्न स्तरों पर ऑर्गनाइज़शन भी उपलब्ध नहीं हैं। जिसके चलते इसकी सक्सेस रेट में अभी भी कमी देखी जा रही है। 

इन चुनौतियों के क्या समाधान हैं
अब जब चुनौतियों की बात हो गयी है इसका समाधान भी जरुरी है तो इन चुनौतियों का सबसे पहला समाधान है शिक्षा और तकनीकी ज्ञान के साथ-साथ जागरूकता को बढ़ावा दिया जाये। इसके साथ ही किसानों को प्रशिक्षण दिया जाना भी एक बेहतर विकल्प है, किसानों के उपकरणों के लिए बैंकों और अन्य संगठनों से  वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने के साथ-साथ, सरकार, निजी क्षेत्र और किसानों सहित विभिन्न हितधारकों के बीच सहयोग और साझेदारी से भी डिजिटल फार्मिंग को बढ़ावा मिलेगा।

 

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