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"गोनर्दीय पतंजलि" का जिला है गोंडा, ऐसे ही नहीं मशहूर हैं गोंडा

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गोंडा, सिर्फ शहर नहीं है बल्कि कई लोगों का अभिमान है ये जिला। यूपी के सभी 75 जिलों में गोंडा हमेशा से ही बड़ा मशहूर रहा है। ये जिला अपने गहरे इतिहास और अपनी संस्कृति के लिए पूरे यूपीभर में जाना जाता है। तो आइये गोंडा जिले के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी हांसिल करते हैं  

भौगोलिक परिदृश्य –
गोण्डा ज़िला उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में घाघरा नदी के उत्तर देवीपाटन मण्डल गोण्डा में स्थित है। विश्व के मानचित्र में जनपद गोण्डा 26.41 से 27.51 डिग्री उत्तरी अक्षांश तथा 81.30 से 82.06 पूर्वी देशान्तर के बीच में बसा हुआ है। जिले के उत्तर में श्रावस्ती जिला, दक्षिण में अयोध्या जिला, पूर्व में बस्ती जिला, उत्तर-पूर्व में बलरामपुर जिला व सिद्धार्थनगर जिला, दक्षिण-पश्चिम में बाराबंकी जिला तथा उत्तर-पश्चिम में बहराइच जिला स्थित है। नदियों से घिरे होने के कारण जिले की मिट्टी काफी उपजाऊ है. यहां प्रमुख रूप से चावल, मक्का, गेहूं व तम्बाकू की खेती होती है। मसूर की दाल की यहां पर बड़े पैमाने पर खेती की जाती है। इसके अलावा जिले में रेत और कंकरीट भी बड़ी मात्रा में पाई जाती है। जिले में घाघरा, सरयू एवं कुआनो तीन प्रवाहिनी नदियाँ हैं। घाघरा दक्षिणी भाग से जिले में प्रवेश करती है, वहीं दूसरी ओर सरयू नदी जनपद के दक्षिण पश्चिम दिशा से विकास खण्ड करनैगंज में प्रवेश करती हुयी पसका के पास घाघरा नदी में मिल जाती है। इसके अलावा बिसुही, मनवर व टेढ़ी मौसमी नदियाँ हैं। इसके अलावा जिले में कई प्रमुख झीलें भी बहती हैं, जिसके अंतर्गत अरंगा पार्वती व कोलार आदि झीलें शामिल हैं। 

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि –प्राचीन इतिहास 
गोंडा जिले का इतिहास बहुत पुराना है। प्राचीन होने के साथ ही पौराणिक दृष्टिकोण से भी ये जिला काफी महत्वपूर्ण है। गोंडा के वर्तमान जिले द्वारा कवर किया गया क्षेत्र प्राचीन कोशल साम्राज्य का हिस्सा था। गोंडा को लेकर मान्यता है कि त्रेतायुग में भगवान श्री राम की गायें जिले से जुड़े भूभाग में चरने आया करती थीं। इस क्षेत्र को ‘गोनर्द’ नाम से जाना जाता था। गोनर्द के परिवर्तित रूप को ही आज गोंडा नाम से जानते हैं। गोण्डा को महाभाष्यकार पतंजलि की जन्मभूमि भी माना जाता है। पतंजलि को "गोनर्दीय पतंजलि" भी कहा जाता है। यहाँ स्थित "सूकरखेत", जो सूकरक्षेत्र का ही अपभ्रंश है, तुलसीदास जी की जन्मस्थली माना जाता है। खैर भगवान राम के जाने के बाद, कोसल पर शासन करने वाले सौर रेखा के प्रसिद्ध शासक, राज्य को घाघरा नदी द्वारा परिभाषित दो भागों में विभाजित किया गया था। उत्तरी भाग पर उसके पुत्र लव का शासन था, जिसकी राजधानी श्रावस्ती थी। गोंडा एवं बहराइच जनपद की सीमा पर स्थित सहेत महेत से प्राचीन श्रावस्ती की पहचान की जाती है। हाल ही में, बौद्ध धर्म के शुरुआती दिनों के प्राचीन बौद्ध अवशेष पूरे क्षेत्र में पाए गए हैं, जिसमें श्रावस्ती भी शामिल है। जैन ग्रंथों में श्रावस्ती को उनके तीसरे तीर्थंकर सम्भवनाथ और आठवें तीर्थंकर चंद्रप्रभनाथ की जन्मस्थली बताया गया है। वास्तव में एक लम्बे समय तक श्रावस्ती का इतिहास ही गोंडा का इतिहास है। सम्राट हर्षवर्धन  के राज कवि बाणभट्ट ने अपने प्रशस्तिपरक ग्रन्थ हर्षचरित में श्रुत वर्मा नामक एक राजा का उल्लेख किया हैं जो श्रावस्ती पर शासन करता था। दंडी के दशकुमारचरित में भी श्रावस्ती का वर्णन मिलता है।

मध्यकालीन इतिहास 

मध्यकालीन भारत में गोंडा एक महत्वपूर्ण स्थान बनाये रखने में सफल रहा। मध्ययुगीन काल के दौरान, क्षेत्र का पहला मुस्लिम आक्रमण, घाघरा नदी के उत्तर में, सईद सालार मसूद के तहत 11 वीं शताब्दी की दूसरी तिमाही में हुआ था। गोंडा और आसपास के जिलों के शासकों ने मसूद का एकजुट प्रतिरोध करने के लिए एक लीग बनाई। 13वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में प्रारंभिक मुस्लिम शासकों द्वारा गोंडा को बहराइच की सरकार में शामिल किया गया था, और इसलिए इसका अपना कोई स्वतंत्र इतिहास नहीं मिलता। इसके अलावा, तुगलक के शासनकाल तक जिले के बारे में कोई विशिष्ट संदर्भ नहीं है। 1394 में, जिला जौनपुर के महर्षि वाल्मीकन के संस्थापक ख्वाजा जहाँ मलिक सरवर के शासन में आया। मुस्लिम वर्चस्व के शुरुआती दिनों से लेकर अकबर के आगमन तक, गोंडा जिले का इतिहास मुख्य रूप से स्थानीय कुलों का इतिहास है। इस अवधि के प्रारंभिक चरण के दौरान पूरे गोंडा पर आदिवासी डोम, थारू जनजाति, भर, पासी और इस तरह का शासन था। जिला अकबर (1556-1605) के साम्राज्य का एक अभिन्न अंग था।

आधुनिक इतिहास 
फरवरी 1856 में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा अवध प्रांत के कब्जे के साथ, गोंडा गोंडा-बहराइच कमिश्नरशिप में एक अलग जिला बन गया। अनुलग्नक चुपचाप पारित हो गया, हालांकि गोंडा राजा ने उपाय की कड़ी अस्वीकृति प्रदर्शित की और कठिनाई के साथ गोंडा में अपने किले को छोड़ने और जिला अधिकारी से मिलने के लिए राजी किया।महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए असहयोग आंदोलन में जिले के नागरिकों ने सक्रिय रूप से भाग लिया। गोंडा के इतिहास में, 9 अक्टूबर 1929 को, महात्मा गांधी ने जवाहरलाल नेहरू के साथ जिले का दौरा किया। गोंडा ने स्वतंत्रता के लिए भारतीय संघर्ष में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें इस क्षेत्र के कई लोग सक्रिय रूप से शामिल थे: महाराजा अक्ष वाल्मीकन सहित, जो नेपाल भाग गए, श्री जैसे स्वतंत्रता सेनानी। चंद्रशेखर आजाद ने जिले में शरण ली और राजेंद्र लाहिड़ी को गोंडा जेल में कैद कर फांसी दे दी गई। भारत के 5वें राष्ट्रपति माननीय फखरुद्दीन अली अहमद ने भी गोंडा जिले के सरकारी हाई स्कूल में शिक्षा प्राप्त की थी।

जनसांख्यिकी –
2011 की जनगणना के आधार पर गोंडा की कुल जनसंख्या 34,02,376 है. यहां का स्त्री- पुरूष लिंगानपात 921 व बाल लिंगानुपात 926 है। गोंडा का जनसंख्या घनत्व 858 प्रति वर्ग कि.मी. व जनसंख्या वृद्धि दर 24.17% है। यहां की जनसंख्या उ.प्र. की कुल जनसंख्या का 1.72 प्रतिशत है। जिले की साक्षरता दर 58.71 प्रतिशत है, जिसके अंतर्गत पुरूष साक्षरता दर 69.41 % व महिला साक्षरता दर 47.09 % है। जिले का ज्यादातर भाग गांवों से जुड़ा हुआ है। अतः यहां ग्रामीण आबादी शहरी आबादी से काफी अधिक है। जिले की ग्रामीण जनसंख्या 32,09,542 व नगरीय जनसंख्या 1,95,834 है।

प्रशासनिक विभाजन –
प्रशासनिक आधार पर यह जिला काफी विस्तृत है। गोंडा को कुल चार तहसीलों (सदर, करनैलगंज, मनकापुर, तरबगंज) में विभाजित किया गया है। जिले का मुख्यालय गोण्डा है। इसके साथ ही जिले में तीन नगर पालिका परिषदें व 16 ब्लॉक हैं, जिनके अंतर्गत 1821 गांव शामिल हैं। जिले में 1054 ग्राम पंचायतें व 166 नगर पंचायतें हैं। वहीं राजनीतिक आधार पर भी प्रदेश में गोंडा का अपना अलग महत्व है। जिले में दो लोकसभा क्षेत्र गोंडा व कैसरंगज हैं। जिसमें गोंडा लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत पांच विधानसभा क्षेत्र (गोंडा, मनकापुर, उतरौला, गौरा व मेहनोन) आते हैं। वहीं कैसरगंज लोकसभा क्षेत्र को भी पांच विधानसभा क्षेत्रों (पयागपुर, तरबगंज, कैसरगंज, कटरा बाजार व कर्नलगंज) में विभाजित किया गया है। हालांकि इसमें गोंडा जिले के अंतर्गत सात विधानसभा क्षेत्र गोंडा, तरबगंज, मनकापुर, महनोन, कटरा बाजार, गौरा, करनैलगंज ही आते हैं। 

जलवायु –
जिले की जलवायु औसत है। यहां ग्रीष्म ऋतु काफी गर्म और शीत ऋतु सुखद रहती है। गोंडा में गर्मी का मौसम उत्तर भारत के अन्य जिलों की भांति मार्च से जून के मध्य रहता है। इस दौरान जिले का औसत तापनाम 34°C के आस- पास रहता है। यहां मानसून का आगमान जून के अंत में होता है तथा सितम्बर तक रहता है। जिले में वार्षिक आधार पर औसत वर्षा 1152 मि.मी. तक होती है। वहीं यहां सर्दी का मौसम नवम्बर से फरवरी तक रहता है। 

यातायात -
गोण्डा रेलवे स्टेशन यातायात के लिये एक महत्वपूर्ण स्टेशन है। यहाँ से देश की सभी दिशाओं के लिये ट्रेन मिलती है, गोण्डा पूर्वोतर रेलवे का एक महत्वपूर्ण स्टेशन है जो लखनऊ और गोरखपुर के बीच में पड़ता है। याती सुविधा के मामले में गोण्डा रेलवे स्टेशन अव्वल है।

शिक्षा -
शिक्षा की दृष्टि से गोण्डा जिला काफी समृद्ध है। यहाँ स्कूल कालेज से लेकर डिग्री कालेज स्तर तक के विद्यालय प्रचुर संख्या में हैं।

दर्शनीय स्थल -
गोण्डां मुख्यालय से दक्षिण 35 कि.मी. पर उमरी बेगमगंज में मां बाराही का विश्व का एकमात्र बड़ा ही पुरातन मंदिर है और इसी दिशा में गोण्डा से 37 कि. मी की दूरी पर पसका (सूूूकरखेत) मे प्रसिद्ध बाराह भगवान मन्दिर है। तथा तुुुलसीदास जी के गुुरू नरिहरदास जी का आश्रम भी यही है। गोंण्डा में श्री दुःख हरणनाथ मंदिर, काली भवानी, खैरा भवानी, हनुमानगढ़ी, सुरसा मंदिर प्रमुख मंदिर हैं व गोण्डा से 35 कि. मी उत्तर खरगुपुर में एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग बाबा पृथ्वीनाथ मंदिर का है जो पांडव द्वारा स्थापित है और गोण्डा का गौरव बड़ा रहै है इन्ही के समीप झाली धाम में कामधेनु गौ और विशालकाय कछुए देश विदेश के पर्यटको की उत्सुक्ता का केंद्र है गोण्डा के नवाबगंज में पार्वती अरगा पक्षी विहार है जहां देशी व विदेशी पक्षीयों का दर्शन होता है और मुख्यालय से उत्तर में धानेपुर के समीप एक बहुत बड़ी मनोरम सोहिला झील भी है जिसके पास धरमेई गाँव सुप्रसिद्ध कथाव्यास श्रद्धेय श्रीकृष्णानंद व्यास जी की जन्मस्थली भी है। गोंडा के बीचोंबीच गाँधी पार्क में गांधी जी की बहुत बड़ी मुर्ति स्थित है।
"बाबा बालेश्वर नाथ मंदिर "- ये मंदिर गोंडा शहर से 17 किलोमीटर दूर स्थित है बाबा बालेश्वर नाथ बहुत ही प्राचीन मंदिर है यह गोंडा फैजाबाद रोड पर स्थित डुमरियाडीह बाजार से तरबगंज रोड पर बाल्हाराई ग्राम सभा में स्थित है मान्यता है कि यहाँ स्थित शिवलिंग श्वायाम्भू है औरंगजेब के शाशन काल में इस शिवलिंग पर आरे से प्रहार किया गया था ज़िसका चिन्ह आज भी विद्यमान है।

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