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यूपी का एक ऐसा मंदिर जहां मेंढक की पीठ पर विराजमान हैं भोलेनाथ, जानिए प्रदेश के पौरणिक स्थल

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(Special Story) ब्रिटिश जमाने में यूनाइटेड प्रोविंस के नाम से पहचाना जाने वाले राज्य को आज उत्तर प्रदेश के नाम से जाना जाता है। जिसका इतिहास भारत के व्यापक इतिहास से काफी जुड़ा हुआ है उत्तर प्रदेश हिन्दुओं की प्राचीन सभ्यता का उदगम स्थल है। यह उत्तराखंड के अलग होने से पहले देश का सबसे बड़ा राज्य माना जाता था। यहां हिंदुओं के लगभग सभी धार्मिक तीर्थ स्थान हैं। यहां की सभ्यता और संस्कृति अपने आप में विशेष स्थान रखती है और यहां के प्राचीन स्थल बहुत अनुठे हैं। आइए विस्तार से जानते हैं प्रदेश के पौराणिक मंदिरो को।

  •  मेंढक मंदिर

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जनपद में भगवान शिव का अनूठा मंदिर है। यहां मेंढक की पीठ पर भगवान भोलेनाथ विराजमान हैं। इस मंदिर में भगवान के साथ मेंढक की भी पूजा होती है। ओयल कस्बे में मंडूक तंत्र और श्री यंत्र के आधार पर निर्मित नर्मदेश्वर महादेव मंदिर अपनी अनूठी और अद्भुत वास्तु संरचना के लिए देशभर में प्रसिद्ध है। इसे मेंढक मंदिर भी कहा जाता है। मान्यता है कि सूखे और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा से प्रजा को बचाने के लिए ओयल स्टेट के शासकों ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। यह मंदिर सुख-समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। यहां देशभर से हजारों भक्त दर्शन को आते हैं और भगवान शिव से परिवार की सुख समृद्धि की कामना के लिए करते हैं। हिमालय की तलहटी में बसा पूरा तराई क्षेत्र शैव संप्रदाय का प्रमुख केंद्र था। यह क्षेत्र 11वीं सदी से 19वीं सदी तक चाहमान शासकों के आधीन रहा। चाहमान वंशी ओयल स्टेट के शासक राजा बख्त सिंह ने करीब दो सौ साल पहले प्राकृतिक दैवीय आपदा से बचाव के लिए मंडूक तंत्र और श्री यंत्र पर आधारित अनूठे मंदिर का निर्माण शुरू कराया था। मंदिर राजा बख्त सिंह के उत्तराधिकारी राजा अनिरुद्ध सिंह के समय में बनकर तैयार हुआ। 

  • झाँसी स्थित शिवालय

यूपी का झांसी अपने शिवालयों के लिए मशहूर है. शहर में एक शिवालय ऐसा भी जहां एक शिवलिंग पर जल चढ़ाने से 1100 शिवलिंगों के बराबर पुण्य मिलता है. इस मंदिर का नाम है हजारिया महादेव मंदिर, जो प्रसिद्ध पानी वाली धर्मशाला के पास स्थित है. यहां वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई भी पूजा करने आती थीं

  • कालिंजर किला, बुंदेलखंड

कालिंजर उत्तर प्रदेश के बुंदेलखण्ड क्षेत्र में बांदा ज़िले में स्थित पौराणिक संदर्भ वाला एक ऐतिहासिक दुर्ग है। भारतीय इतिहास में सामरिक दृष्टि से यह क़िला काफ़ी महत्त्वपूर्ण रहा है। यह विश्व धरोहर स्थल प्राचीन नगरी खजुराहो के निकट ही स्थित है।
 

  • गंगोला शिवाला

संगम के आस -पास ऐसे कई मठ मंदिर हैं जिसकी अपनी पहचान और महत्ता दुनिया भर में विख्यात है । उन्ही आस्था के केन्द्रों में एक है गंगोली शिवाला है। जो प्रयागराज के झूंसी क्षेत्र में स्थित है। मंदिर के पुजारी की मानें तो यह मंदिर सैकड़ों वर्ष पूर्व आगरा के एक ब्राह्मण व्यापारी गंगा प्रसाद तिवारी के द्वारा बनवाया गया था । पुजारी के अनुसार यहां देश भर के लोग आते है ।वर्ष भर यहाँ आने वालों का ताँता लगा रहता है। जिनकी मनोकामनाएं पूरी होती है। यहाँ दर्शन करने जरुर आता है । वैसे तो प्रयागराज को तीर्थों का राजा कहा जाता है। यहां पर स्थित सभी धर्म स्थलों का अपना एक महत्व और पहचान है । संगम तट के इशान कोण पर स्थित गंगोली शिवालय अपने आप में एक अद्भुत दार्शनिक स्थल है।

  • अनोखी है तांडव नृत्य करती शिव प्रतिमा

महोबा जिले में गोरखगिरि पहाड़ के नीचे स्थापित तांडव नृत्य करती शिव प्रतिमा उत्तर भारत में अपने किस्म की अनोखी प्रतिमा है। मान्यता है कि शिव प्रतिमा के दर्शन कर माथा टेकने से भक्तों की झोली भरती है। यहां महाशिवरात्रि व सावन के सोमवार को भक्तों की भारी भीड़ जुटती है। शिव प्रतिमा का निर्माण दसवीं से 11वीं शताब्दी के बीच चंदेल शासक ने कराया था। ग्रेनाइट शिला पर 15 फीट ऊंची दसभुजी तांडव नृत्य करती शिव प्रतिमा सहज ही भक्तों को आकर्षित करती है।

  • पांडेश्वर नाथ मंदिर

फर्रुखाबाद के रेलवे स्टेशन मार्ग पर स्थित पाडेश्वर नाथ मंदिर की अलग मान्यता है. बताया जाता है कि इस मंदिर को महाभारत काल के दौरान माता कुंती द्वारा बनवाया गया था। जब फर्रुखाबाद की स्थापना नहीं हुई थी उस दौरान इस क्षेत्र में बड़े रकबे में जंगल हुआ करता था। उस समय यहां पर प्राचीन पीपल का पेड़ मौजूद था। जिसके पास एक चबूतरे पर पांडवों द्वारा शिव ज्योतिर्लिंग स्थापित किया गया था।

  • टि‍क्सी महादेव मंदिर

टि‍क्‍सी  महादेव लोक मानव  की असीम श्रद्धा का केन्‍द्र है। इटावा के  इस सुवि‍ख्‍यात मंदि‍र को टि‍क्‍सी  नाम से पुकारे  जाने के सम्‍बन्‍ध  मे वि‍द्वान  एकमत नहीं है। इस मंदि‍र की बनावट की तुलना शि‍व की टि‍करी से की गयी है। प्राय: ग्रीष्‍मकाल  में शि‍वलि‍गं  को लगातार शीतलता  प्रदान करने के लि‍ये  उसके ऊपर एक ति‍पाई पर  मि‍ट्टी पर घड़ा  रख दि‍या जाता है। जि‍सकी पेंदी में एक लधु छेद में लगी कपड़े  की बत्‍ती  से बूंद बूंद पानी टपकता रहता है। शि‍वलि‍गं के ऊपर वाली ति‍पाई को टि‍करी कहते हैं। उसी का वि‍कृत रूप  टि‍क्‍सी भी प्रचलन में है। मंदि‍र की बनावट भी टि‍क्‍सी  के समान ही है। ऊपर लधु वृत्‍ताकार  एवं प्रारम्‍भ  में दीर्घ वृत्‍ताकार।

By Ankit verma 

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