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खूबसूरती बेशुमार, इरादे बेमिसाल, बदलाव की उम्मीदें, नई राजनीतिक दिशा की ओर बढ़ रहे हैं ये युवा सांसद

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(Special Story )

अठारहवीं लोकसभा में इस बार राजनीति का एक नया अध्याय लिखा गया है, जहां पारंपरिक राजनीतिज्ञों के साथ-साथ देश की विविधता और तरक्की की नई तस्वीर भी उभरी है। 542 सांसदों में से 280 ने पहली बार संसद में कदम रखा है। यह वह पीढ़ी है, जिसने किसानों की मेहनत से लेकर पेशेवरों की कुशलता तक, राजघरानों की शान से लेकर मनोरंजन की चमक तक, और जमीनी कामगारों की मेहनत से लेकर धनी व्यापारियों की दूरदृष्टि तक हर अनुभव को अपने भीतर समेटा है। इन युवा सांसदों की उम्र चाहे कम हो, लेकिन उनकी सोच, जोश और संकल्प इतने बड़े हैं कि वे उम्र के हर बंधन को पार कर देश की दिशा बदलने का साहस रखते हैं।

आइए नजर डालते हैं 18वीं लोकसभा की युवा महिला सांसदों पर, जो बेशुमार खूबखूरती की मालकिन हैं और इसके साथ ही इनके मन में बदलाव की उम्मीद भी है।

1-प्रिया सरोज, 25 वर्ष, समाजवादी पार्टी, मछलीशहर (अनुसूचित जाति), यूपी

दिल्ली यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद प्रिया सरोज सुप्रीम कोर्ट में वकालत करते हुए संतुष्ट थीं। लेकिन राजनीति के प्रति उनकी दिलचस्पी तब बढ़ी जब समाजवादी पार्टी ने राज्य में भाजपा की पकड़ को कमजोर करने के लिए युवा और होनहार चेहरों पर भरोसा जताया। प्रिया तीन बार के सांसद तूफानी सरोज की बेटी हैं, जो पहले सैदपुर और फिर मछलीशहर का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में प्रिया ने अपने पिता का प्रचार अभियान सफलतापूर्वक संभाला और अब खुद भाजपा के दिग्गज बी.पी. सरोज को पराजित कर सांसद बनी हैं।

महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने का इरादा-

प्रिया का कहना है कि वे अपने निर्वाचन क्षेत्र में महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के साथ-साथ युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने पर ध्यान देंगी। उनके लिए राजनीति केवल विरासत नहीं, बल्कि समाज में वास्तविक परिवर्तन लाने का जरिया है।

2-शांभवी चौधरी, 26 वर्ष, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), समस्तीपुर (एससी), बिहार

बिहार की राजनीति में एक और युवा चेहरा उभरा है—शांभवी चौधरी। उनके दादा महावीर चौधरी नौ बार कांग्रेस के विधायक रहे और पिता अशोक चौधरी नीतीश कुमार सरकार में मंत्री हैं। लेकिन शांभवी ने अपने राजनीतिक सफर के लिए लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) का दामन थामा, जिसे उनके ससुर, पूर्व आईपीएस आचार्य किशोर कुणाल से गहरा संबंध है।

समाजशास्त्र में डॉक्टरेट हैं शांभवी-

एलएसआर कॉलेज से स्नातक और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से समाजशास्त्र में डॉक्टरेट हासिल करने वाली शांभवी ने "बिहार की राजनीति में लिंग और जाति के अंतर्संबंध" पर शोध किया है। वे समस्तीपुर में बुनियादी ढांचे और सड़कों की स्थिति को सुधारने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उनका मानना है कि राज्य की तरक्की के लिए इन क्षेत्रों में सुधार अत्यंत आवश्यक है।

3-संजना जाटव, 26 वर्ष, कांग्रेस, भरतपुर (अनुसूचित जाति), राजस्थान

भरतपुर की युवा सांसद संजना जाटव ने राजनीति में कदम रखने के बाद एक अलग पहचान बनाई है। वे केवल 17 साल की उम्र में शादीशुदा हो गई थीं, लेकिन उनके ससुराल वालों और शौहर के समर्थन ने उन्हें शिक्षा पूरी करने के लिए प्रोत्साहित किया। कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद संजना ने अपने ताया की प्रेरणा से जिला परिषद का चुनाव लड़ा और जीतीं। हालांकि विधानसभा चुनाव में वे थोड़े अंतर से हार गईं, लेकिन उनके जज़्बे ने कांग्रेस हाईकमान का ध्यान खींचा।

वरिष्ठ नेता को हराकर दर्ज की बड़ी जीत-

2024 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा के वरिष्ठ नेता राम स्वरूप कोहली को हराकर बड़ी जीत दर्ज की। अब उनकी प्राथमिकता जाट समुदाय को ओबीसी का दर्जा दिलाना है, जो उनके क्षेत्र के जाटों की लंबे समय से चली आ रही मांग है।

4-प्रियंका सतीश जारकीहोली, 27 वर्ष, कांग्रेस, चिक्कोडी, कर्नाटक

प्रियंका सतीश जारकीहोली कर्नाटक के जारकीहोली परिवार की वंशज हैं, जो राजनीति और व्यापार दोनों में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। वे अठारहवीं लोकसभा की सबसे युवा सांसदों में से एक हैं और अनारक्षित सीट से जीतने वाली पहली आदिवासी महिला भी हैं। प्रियंका ने एमबीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद राजनीति में कदम रखा और बीजेपी के गढ़ माने जाने वाले क्षेत्र में कांग्रेस का परचम लहराया। 

परिवार व्यवसायी, प्रियंका ने चुनी राजनीति-

प्रियंका का परिवार स्थानीय चीनी मिलों और अन्य व्यवसायों का संचालन करता है, लेकिन उन्होंने राजनीति को अपने करियर के रूप में चुना। वे अपने निर्वाचन क्षेत्र में महिला सशक्तिकरण और आर्थिक सुधारों के लिए काम करना चाहती हैं। उनकी जीत ने सिद्ध कर दिया कि कड़ी मेहनत और संकल्प के साथ किसी भी चुनौती को पार किया जा सकता है।

5-इकरा हसन, 29 वर्ष, समाजवादी पार्टी, कैराना, यूपी

इकरा हसन राजनीति की नई पीढ़ी का वह चेहरा हैं, जिनसे देश को बड़ी उम्मीदें हैं। इकरा का सियासी सफर परिवार की धरोहर से जुड़ा हुआ है। उनके दादा, पिता और मां, सभी सांसद रह चुके हैं। कैराना की राजनीति में उनका परिवार एक मजबूत आधार रखता है। इकरा ने दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से स्नातक और लंदन के स्कूल ऑफ ओरिएंटल ऐंड अफ्रीकन स्टडीज से अंतरराष्ट्रीय राजनीति और कानून की पढ़ाई की है।

जरूरी सुविधाओं को अपने क्षेत्र में लाने के लिए करेंगी काम-

उनका कहना है कि कैराना, दिल्ली-एनसीआर के पास होते हुए भी अब तक बुनियादी उद्योगों, मेडिकल कॉलेजों और सार्वजनिक उपक्रमों से वंचित है। वे इन सुविधाओं को अपने क्षेत्र में लाने के लिए काम करेंगी और साथ ही महिला सशक्तिकरण को भी प्राथमिकता देंगी। 18वीं लोकसभा में चुनी गईं 24 मुस्लिम सांसदों में से एक इकरा, अपने क्षेत्र के विकास के लिए पूरी तरह समर्पित हैं।

एक नई राजनीतिक दिशा की ओर बढ़ रहे हैं युवा सांसद-

18वीं लोकसभा में युवा सांसदों का एक नया चेहरा उभर कर सामने आया है, जो न केवल नई ऊर्जा और विचारधारा लेकर आए हैं, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व भी कर रहे हैं। चाहे वह प्रिया सरोज का महिला सशक्तिकरण का मिशन हो, शांभवी चौधरी का बिहार के बुनियादी ढांचे को सुधारने का सपना, संजना जाटव की जाट समुदाय की ओबीसी मांग, प्रियंका जारकीहोली का कर्नाटक की राजनीति में बदलाव का प्रयास हो या फिर इकरा हसन का कैराना के विकास का विजन—ये सभी युवा सांसद एक नई राजनीतिक दिशा की ओर बढ़ रहे हैं।

By Ankit Verma 

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