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लोकसभा चुनाव से पहले बसपा का यह ऐलान क्या पार्टी को देगा नया मोड

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आगामी चुनाव से पहले आज राजनीति में कई बड़े ऐलान किये गए। जहां एक तरफ भाजपा ने छत्तीसगढ़ में नए सीएम का ऐलान किया तो वहीं दूसरी तरफ बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी बनाने की घोषणा करते हुए सभी को चौका दिया। हांलाकि इसे लेकर अभी तक कोई राजनीतिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। लेकिन यह अपने आप में ही एक बड़ा सवाल है कि पार्टी ने इतने अनुभवी नेताओं को दरकिनार कर युवा चेहरे पर दांव क्यों लगाया?

क्या पार्टी के लिए वरदान होगा नया चेहरा-

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ऐसे में गौरतलब है कि ऐसा ही एक ऐलान 22 साल पहले भी पार्टी में किया गया था जिसके बाद पार्टी ने 2012 तक अपना जलवा दिखाया था। ठीक वैसा ही बदलाव आज मायावती ने भी आकाश आनंद को उत्तराधिकारी घोषित करने के बाद किया है। ऐसे में देखना होगा कि पार्टी फिर से 2001 की तरह धार पकड़ती है या नहीं। यदि ऐसा होता है तो यह पार्टी के लिए एक वरदान साबित होगा। 

आकाश आनंद को बनाया उत्तराधिकारी- 

Akash Anand: MBA Graduate From London And Mayawati's Political Heir

आपको बता दें कि लोकसभा चुनाव को अब कुछ ही महीने बाकी रह गए हैं ऐसे में बसपा पार्टी के बड़े एलान ने एक बार फिर से राजनीतिक गलियारों में हड़कंप मचा दी है। बसपा मायावती ने आज लखनऊ की एक बैठक में अपने भतीजे आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया है। आकाश आनंद पिछले 6 सालों से राजनीति में काफी सक्रिय हैं। वह 2017 में सहारनपुर में मायावती की एक जनसभा में उनके साथ मंच पर दिखे थे। इसके बाद, वह पार्टी के विभिन्न कार्यक्रमों और गतिविधियों में शामिल होते रहे हैं।  इससे पहले वह आकाश आनंद को पार्टी के नेशनल कोऑर्डिनेटर की जिम्मेदारी सौंप चुकी हैं। 

2014 से काफी खराब रहा पार्टी का प्रदर्शन-

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आकाश आनंद मायावती के छोटे भाई आनंद कुमार के बेटे हैं। उन्होंने विदेश से अपनी पढ़ाई पूरी की है। आकाश आनंद ने लंदन से मास्टर आफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की पढ़ाई की है। बहुजन समाज पार्टी का प्रदर्शन 2014 से काफी खराब रहा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई। साथ ही 2017 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी को महज 19 सीटों पर जीत मिली। जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान बीएसपी ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया और उसके 10 लोकसभा सांसद जीते। हालांकि यह गठबंधन कुछ महीनों बाद टूट गया। 2022 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी अकेले लड़ी और पार्टी को महज एक सीट पर जीत हासिल हुई।

करिश्माई नेता कांशीराम ने रखी थी नींव-

कांशीराम ने कैसे बहुजन समाज पार्टी को खड़ा किया, दलित मायावती को यूपी में  मुख्यमंत्री बनाने का लक्ष्य साधा | How Kanshiram organised movement to form  Bahujan Samaj ...

दलित (बहुजन समाज) की राजनीति में यकीन रखने वाली बहुजन समाज पार्टी की 14 अप्रैल 1984 को करिश्माई नेता काशीराम ने नींव रखी थी। जिसके बाद दलितों ने इस पार्टी को अपना मसीहा मान लिया। इस पार्टी का चुवान चिन्ह हाथी और इसका मुख्य रुप से जनाधार उत्तर प्रदेश है। इसकी वर्तमान मुखिया मायावती है जोकि चार बार यूपी की मुख्यमंत्री भी रह चुकी है। बता दे कि बसपा की स्थापना से पहले कांशीराम ने दबे कुचले लोगों का हाल जानने के लिए पूरे देश की यात्रा की और पिछड़े वर्गों के लोगों के साथ बातचीत की। इस दौरान उन्होंने महसूस किया कि इन लोगों को अन्याय और भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए उन्होंने पिछड़े वर्ग के लोगों को अन्याय और भेदभाव से बचाने के लिए 1978 में बामसेफ और फिर डीएस-4 नाम का संगठन बनाया। इसके बाद उन्होंने अंत में एक राजनीतिक पार्टी की भी स्थापना की जिसका नाम बसपा रखा गया। जिसके पहले अध्यक्ष वह स्वंय बने। उन्होंने बसपा को एक प्रमुख राष्ट्रीय राजनीतिक दल के रूप में विकसित किया। बसपा ने कई राज्यों में सरकार बनाई और पिछड़े वर्गों के लोगों के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।

 प्रथम भारतीय दलित महिला के रुप में ली सीएम की शपथ-

1995 में प्रथम भारतीय दलित महिला के रुप में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री के पद पर शपथ लेने वाली मायावती की पहली मुलाकात काशीराम से उनके घर में हुई थी जब कांशीराम स्वयं मायावती से मिलने उनके घर गए थे। यह बात तक की है जब केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद मायावती ने एक भाषण दिया था। इस भाषण में उन्होंने दलितों के लिए हरिजन शब्द का इस्तेमाल करने पर आपत्ति जाहिर की थी। ये बात जब कांशीराम तक पहुंची, तो वह सीधे मायावती से मिलने उनके घर पहुंच गए और उन्हें अपने संगठन से जुड़ने का ऑफर दिया। यहीं से मायावती की किस्मत बदली और उनकी जिंदगी का सफर एक नए उद्देश्य के साथ नई राह पर मुड़ गया।

बचपन से था IAS बनने का सपना-

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हालांकि वह शुरु से ही एक IAS ऑफिसर बनना चाहती थीं। मायावती ने कभी राजनीति में आने का सोचा भी नहीं था, लेकिन कहते हैं हम चाहे पहले से जितना भी प्लान कर लें लेकिन अंत में वहीं होता है जो भगवान चाहते हैं। किसी को क्या पता था कि पढ़ लिखकर अफिसर बनने का सपना देखने वाली लड़की अपने एक शब्द से मुख्यमंत्री बन जाएगी। उन्होंने सन् 1975 में दिल्ली यूनिवर्सिटी के कालिंदी कॉलेज से अपनी ग्रेजुएशन की डिग्री लेने के बाद। 1976 में उन्होंने बीएड की पढ़ाई की और  LLB भी किया।

पूर्व पीएम पी.वी.नरसिम्हा ने बताया 'लोकतंत्र का जादू'

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लेकिन उन्होंने कांशीराम के सम्पर्क में आने के बाद एक पूर्ण कालिक राजनीतिज्ञ बनने का निर्णय ले लिया। कांशीराम के संरक्षण के अन्तर्गत वे उस समय उनकी कोर टीम का हिस्सा रहीं और जून 1995 में मायावती पहली बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। यह अपने आप में एक ऐतिहासिक घटना थी। वह देश की पहली दलित महिला थीं, जो मुख्यमंत्री के पद पर पहुंची थी। उस वक्त प्रधानमंत्री पी.वी.नरसिम्हा राव ने उन्हें 'लोकतंत्र का जादू' कहा था। मायावती जून 1995 से अक्टूबर 1995 तक, मार्च 1997 से सितंबर 1997 तक और 2002-2003 तक तीन बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। 1997 और 2002 में वह बीजेपी के बाहरी समर्थन से मुख्यमंत्री बनीं। 2003 में बीजेपी के समर्थन वापस लेने के कारण उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था। इसके बाद उन्होंने 2007 से 2012 तक मुख्यमंत्री का पूर्ण पद संभाला।  

दलितों और महिलाओं को दिया बढ़ावा-

21वीं सदी में दलित महिलाएं - The Womb

इस बीच साल 2001 में बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशी राम ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। वह साल 2003 में पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष भी चुनी गईं और सन् 2012 में वह उत्तर प्रदेश की पहली मुख्यमंत्री बनीं जिसने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। मायावती को आज भी लोग एक दलित आइकन के रूप में देखते हैं। उन्होंने दलितों का साथ देने के साथ साथ महिलाओं को भी खूब बढ़ावा दिया। 

 

 

 

 

 

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