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कौन थे लचित बोरफुकन, जिनकी मूर्ति का PM मोदी ने किया अनावरण

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(Special Story) भारत का इतिहास राजाओं की कहानियों से भरा पड़ा है। इन कहानियों में अक्सर आपको ऐसा देखने को मिलेगा कि एक राजा के पास एक बड़ी सी सेना होती थी। ढेर सारे संसाधन होते थे तो ऐसे में वो राजा कम संसाधन वाले राजा को या कम सैन्य शक्ति वाले राजा को हराने में सफल हो जाता था। हालांकि कुछ कहानियां इसकी अपवाद भी हैं, जिसमें कम सैन्य संसाधन के साथ एक राजा सिर्फ अपनी बहादुरी और जज्बे के बल पर अपने से बड़े राजा के ऊपर हावी हो गया हो। एक ऐसे ही एक नायक थे लचित बोरफुकान।

कौन थे लाचित बारफुकन-

बात अगर असम की राजनीति की करें तो यहां 'सरायघाट के युद्ध' का अक्सर जिक्र आता है। इसी युद्ध से जुड़ा हुआ है वीर लाचित बारफुकन का नाम, जिन्हें मुगलों को धूल चटाने के लिए याद किया जाता है। अभी एक बार ये फिर सुर्ख़ियों में हैं क्योंकि आज यानि 9 मार्कोच को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्वी असम के जोरहाट में अहोम जनरल लाचित बोरफुकन की 125 फुट की कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया। 16.5 एकड़ में फैले इस क्षेत्र को एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है। प्रतिमा की नींव फरवरी 2022 में पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने रखी थी। 

असम या आसाम पूर्वोत्तर भारत में एक बेहद ही उपजाऊ, खूबसूरत और महत्वपूर्ण राज्य है। चारों ओर से सुरम्य पर्वत श्रेणियों से घिरे इस राज्य का क्षेत्रफल 78,438 वर्ग किमी है। इसे 26 जनवरी 1960 को राज्य का दर्जा दिया गया।

पूर्वोत्तर भारत के इस राज्य पर साल 1225 से लेकर 1826 तक अहोम साम्राज्य का शासन था। अहोम साम्राज्य की स्थापना म्यांमार के शान प्रांत से आये सुकफ़ा (Sukaphaa) नाम के राजा ने की थी। इस साम्राज्य का विस्तार पश्चिम में मानस नदी तक और पूरब में पटकई पहाड़ी क्षेत्र तक हुआ करता था। हालाँकि भले ही अहोम साम्राज्य की स्थापना बाहर से आए लोगों ने की थी, लेकिन इसके शासकों ने बेहद ही आत्मीय तरीके से यहां के स्थानीय लोगों के साथ अपने आपको जोड़ लिया। इसके शासकों ने असम के बाहुल्य हिंदू जनता के धर्म के मुताबिक ही अपना शासन किया और खुद को हिंदू धर्म से जोड़कर ही पेश किया।

पूरब की ओर बढ़ना चाहते थे मुगल-

दूसरी तरफ मध्यकाल में मुगल साम्राज्य का विस्तार कूच बिहार तक हो गया था और अब वे पूरब की ओर बढ़ना चाहते थे, जिसके लिए मुगलों ने अपनी नजदीकी कूच साम्राज्य के साथ बढ़ानी शुरू कर दी। जब कभी अहोम और कूच साम्राज्य के बीच कोई संघर्ष होता तो मुगल हमेशा कूच साम्राज्य का साथ देते थे। ध्यान दीजियेगा कि अहोम का सबसे ज्यादा तनाव इसके पड़ोसी राज्य कूच साम्राज्य से ही रहता था। 

सवाल उठता है कि मुग़ल पूरब की ओर क्यों बढ़ना चाहते थे। तमाम इतिहासकारों का मानना है कि मुगल दो वजहों से पूरब की ओर बढ़ना चाहते थे। इनमें से पहला है अहोम साम्राज्य के उपजाऊ जमीन पर मुगलों का नियंत्रण और दूसरा उनके साम्राज्य का विस्तार।

साल 1615 में कूच बिहार साम्राज्य के राज परिवार में आपसी कलह शुरू हो गई और धीरे-धीरे यह कलह सत्ता के लिए संघर्ष के रूप में बदल गई। इस संघर्ष में एक गुट का समर्थन मुगलों ने किया तो दूसरे का अहोम ने। इसी क्रम में मुगलों और उनके बीच कई लड़ाइयां लड़ी गईं। साल 1661 में मुगलों की विशाल सेना ने उनको काफी बुरी तरीके से हराया और उन्हें एक बेहद अपमानजनक संधि करने के लिए मजबूर कर दिया। गुवाहाटी का कण्ट्रोल अहोम के हाथों से निकलकर मुगलों के हाथों में आ गया। गुवाहाटी अहोम के हाथ से जा चुकी थी, लेकिन साल 1667 में लाचित बारफुकन की अगुवाई में अहोम ने एक बार फिर से गुवाहाटी को वापस छीन लिया। औरंगजेब को जैसे ही इसके बारे में पता चला तो उसने आमेर के राजा राम सिंह की अगुवाई में एक बड़ी सेना अहोम पर आक्रमण करने के लिए भेज दिया। उस वक्त उनके राजा चक्रध्वज सिंह थे और इसके सेनापति लाचित बारफुकन। बता दें कि इस साम्राज्य के सेना प्रमुख को बारफुकन कहा जाता है।

साल 1671 में, गुवाहटी के पास सरायघाट में मुगलों और अहोम के बीच एक भयानक लड़ाई हुई जिसे इतिहास में ‘सरायघाट के युद्ध’ के नाम से जाना जाता है। इस लड़ाई में अहोम सेनापति लाचित बारफुकन ने बहादुरी का गजब मिसाल पेश किया और उनकी अगुवाई में छोटी सी अहोम आर्मी ने मुगलों के छक्के छुड़ा दिए। तभी से लाचित बारफुकन का नाम असम के इतिहास में अमर हो गया। 

 

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