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क्या होती है DRI अवैध स्मगलिंग पर कैसे लगाती है लगाम?

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अभी हाल ही में लखनऊ एयरपोर्ट से 36 तस्करों के पास से 3.12 करोड़ रुपये की विदेशी सिगरेट बरामद की गई थी। बाद में पता चला कि तस्कर पेट में सोना छिपाकर भी लाए हैं। DRI ने इन तस्करों को पकड़ कर कस्टम वालों को सौंप दिया लेकिन अगले ही दिन एक तस्कर ने बीमारी का बहाना किया। इसका फायदा उठाकर 29 तस्कर कस्टम की कस्टडी से भाग गए। कस्टम विभाग के सहायक आयुक्त ने एक नामजद समेत 36 पर एफआईआर दर्ज कराई। इसी मामले में कार्रवाई करते हुए 8 कस्टम ऑफिसर को सस्पेंड किया गया। आइए आपको विस्तार से बताते हैं क्या DRI, इसका गठन क्यों किया गया और यह कैसे काम करती है?

DRI की क्यों पड़ी जरूरत- 

सोना और मोना 80 के दशक की जंजीर मूवी के दो इम्पोर्टेन्ट टर्म हैं। उस समय जहां मोना के बिना सिनेमा इंडस्ट्री सूनी थी वहीं सोना और तस्करी के बिना मुंबई के अंडरवर्ल्ड का पूरा कारोबार चौपट था। या यूं कहें कि उन दिनों अपराध के मसीहा रहे हाजी मस्तान से लेकर करीम लाला, दाऊद इब्राहिम और छोटा राजन समेत कई डॉन इसकी स्मगलिंग के कारोबार के बिना सड़क पर थे। आजादी के बाद मुंबई पोर्ट स्मगलिंग का बड़ा अड्डा हुआ करता था और मस्तान गैंग और पठान गैंग इसके बड़े कारोबारी। ये वो समय था जब ब्रिटिशर्स तो जा चुके थे, लेकिन इनकी लूट अपने पीछे छोड़ गयी थी गरीबी और पिछड़ापन। हालाँकि इस समय तक बड़ी औपनवेशिक शक्तियों के अलावा भी दुनिया के कई देश इतने विकसित हो चुके थे कि वो सात समंदर पार से भी व्यापार कर सकें और इन सभी व्यापारी देशों के लिए भारत सबसे बड़ा कंज्यूमर था। भारत भी इस तरह की चालाकियों और ऐसे देशों के शोषण को 200 सालों तक झेल चुका था। देश ने इस समय न केवल रिसोर्सेस का ड्रेनेज देखा था, बल्कि देसी कारोबार का पतन भी देखा था। ऐसे में घरेलू व्यापार को सरंक्षण देने और अपने विदेशी रिज़र्व को बचाने के लिए देश में आयात होने वाले कुछ खास सामानों पर हाई टैरिफ लगा दिया गया। इसका मतलब यह हुआ कि हाई टैरिफ की वजह से आयात कम होंगे जिससे घरेलू व्यापार फलेगा-फूलेगा और विदेशी मुद्रा भंडार भी बेवजह का खर्च नहीं होगा।

कब हुआ DRI का गठन-

हाई टैरिफ की वजह से एक नई समस्या ने जन्म लिया और वो थी अवैध स्मगलिंग। शुरुआत में इसको रोकने का काम केंद्रीय उत्पाद शुल्क एवं सीमा शुल्क प्रशासन को दे दिया गया। बता दें कि इस संस्था को आजादी के पहले से ही अंग्रेजों द्वारा बनाया गया था और इसका मुख्य काम ज्यादा से ज्यादा टैक्स की उगाही करना था। खैर … समस्या बढ़ती गई और केंद्रीय उत्पाद शुल्क एवं सीमा शुल्क प्रशासन इस अवैध आयात को ठीक से रोक नहीं पा रहा था। ऐसे में जानकारी, रिसोर्सेज और संसाधनों के अभाव में समुद्री और जमीनी बॉर्डर इकनोमिक क्राइम सेंसिटिव जोन बन गए। इस तरह सीमाशुल्क और अपराध की समस्यायों से निपटने के लिए भारत में एक केंद्रीकृत एजेंसी की आवश्यकता महसूस की गई। इसलिए 1953 में सेंट्रल रेवेन्यू इंटेलिजेंस ब्यूरो (CRIB) नाम की एक न्यूक्लियस सेल गठित की गई।

CRIB के गठन के बाद पता चला कि अपराध की जड़ें काफी गहरी हो चुकी थीं और इसे कंट्रोल करना इतना आसान नहीं है। इसके लिए एक इंटेलिजेन्स बेस्ड यूनिट चाहिए जो बेस्ट मेथड यूज करके क्राइम कण्ट्रोल कर सके। तो इसी क्रम में 4 दिसंबर 1957 को Directorate of Revenue Intelligence (DRI) का गठन किया गया। यह भारत की सर्वोच्च तस्करी विरोधी एजेंसी है जो भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के मातहत केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड के दिशा निर्देशन में काम करती है।

DRI, Director General, Addl. Director General, Joint Director जैसे कई अधिकारियों से मिलकर बनती है। इस एजेंसी का मुख्य काम ड्रग्स, सोना, हीरे, इलेक्ट्रॉनिक्स, विदेशी मुद्रा और नकली भारतीय मुद्रा, वन्यजीव और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील वस्तुओं के अवैध व्यापार और तस्करी की जाँच करना और उन पर रोक लगाना है। यह न केवल देश में होने वाली इलीगल एक्टिविटीज को ऑब्ज़र्व करती है बल्कि इंटरनेशनल ट्रेड से जुड़ी कमर्शिएल धोखाधड़ी और सीमा शुल्क की चोरी पर भी पैनी नजर रखती है। DRI अंतर्राष्ट्रीय तस्करी विरोधी संगठन यानी ESCAP के अलावा इंटरपोल और सीबीआई के साथ मिलकर भी काम करती है। अपराधियों की सीक्रेट निगरानी के अलावा यह एजेंसी खुफिया जानकारी भी इकट्ठा करती है। इसके अलावा, ख़ुफ़िया जानकारी हासिल करने के लिए DRI अपने सीक्रेट इनफॉर्मर को रिवॉर्ड भी देती है। 

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