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सत्ता से बाहर हुई ऋषि सुनक की पार्टी, इस हार से भारत पर क्या होगा असर?

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ब्रिटेन की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया है, जहां प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की कंजरवेटिव पार्टी ने हाल के आम चुनावों में सत्ता खो दी है। भारतवंशी सुनक की कंजर्वेटिव पार्टी को अब तक सिर्फ 72 सीटें मिल सकी हैं, वहीं लेबर पार्टी को 341 सीटें मिल चुकी हैं। अब ये बात आइने की तरह साफ हो चुकी है कि तख्त-ए-लंदन पर लेबर पार्टी के कीर स्टार्मर काबिज होने जा रहे हैं। आए हुए इन नतीजों  के भारत के नजरिए से कई मायने हो सकते हैं। 

ऐसा रहा चुनाव का नतीजा 

ब्रिटेन के आम चुनाव में लेबर पार्टी ने जीत दर्ज कर ली है। 650 में से 488 सीटों पर आए नतीजों में लेबर पार्टी को 341 सीटें मिल चुकी हैं। सरकार बनाने के लिए संसद में 326 सीटों की जरूरत होती है। वहीं भारतीय मूल के ऋषि सुनक की कंजर्वेटिव पार्टी को अब तक सिर्फ 72 सीटें मिल पाई हैं। ब्रिटेन में 4 जुलाई को आम चुनाव हुए थे। 44 साल के ऋषि सुनक ब्रिटेन में भारतीय मूल के पहले प्रधानमंत्री हैं। उन्होंने अक्टूबर 2022 में पदभार ग्रहण किया था। यहां जनवरी 2025 में आम चुनाव होने की संभावना थी। सुनक ने 7 महीने पहले ही चुनाव करवा दिए।

जब पीएम बने भारतीय मूल के ऋषि सुनक

लगभग 2 साल पहले जब सात समंदर पार उस मुल्क की गद्दी पर एक भारतीय मूल का शख्स आसीन होने के लिए चुना गया था, जिसने भारत पर करीब 200 साल तक शासन किया था, वह शख्स थे- ऋषि सुनक। कंजर्वेटिव पार्टी में ऋषि सुनक को प्रधानमंत्री पद के लिए चुना गया तो पूरे हिंदुस्तान ही नहीं बल्कि दुनिया में जहां जहां भारतीय रहते हैं, उनके लिए ये जीत ऐतिहासिक पैगाम लेकर आई थी। लेकिन आज की तारीख में ऋषि सुनक चुनावी रेस में पिछड़ गए। ब्रिटेन के अखबारों के पन्ने पलटें तो पता चलता है ऋषि सुनक को ब्रिटेन में बसे भारतीयों की ही सबसे ज्यादा नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है यहां करीब 25 लाख भारतीय वोटर हैं।

ब्रिटेन चुनाव में क्यों पिछड़े ऋषि सुनक?

ऋषि सुनक की लोकप्रियता में गिरावट की कई वजहें हैं। वे गैरकानूनी घुसपैठ को रोकने में असफल रहे, कोरोना महामारी के दौरान कमजोर हुई अर्थव्यवस्था को मजबूती नहीं दे सके, इमिग्रेशन के मुद्दे पर लेबर पार्टी की नीतियों का प्रभावी जवाब नहीं दे पाए, और ब्रेक्जिट समझौते का घरेलू व्यापार पर कोई सकारात्मक असर नहीं पड़ा। ब्रिटेन में बढ़ी महंगाई ने आम लोगों के साथ-साथ लग्जरी जीवन जीने वालों के लिए भी नई समस्याएं खड़ी कर दीं। बहुत से लोग जो पहले लग्जरी कारों में सफर करते थे, अब पब्लिक बसों का उपयोग करने लगे और महंगे रेस्टोरेंटों में खाना खाने वालों ने भी अपने खर्चों में कटौती करनी शुरू कर दी। इन परिस्थितियों ने ऋषि सुनक की शासन पद्धति पर सवाल खड़े कर दिए। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आते गए और  विरोधी दल उनके खिलाफ मुखर होते गए, नतीजतन, उन्हें दो उपचुनावों में हार का सामना करना पड़ा और साल 2025 में निर्धारित समय से पहले ही आम चुनाव कराने पड़े।

आए हुए इन नतीजों  के भारत के नजरिए से कई मायने हो सकते हैं क्योंकि यह परिणाम ब्रिटेन और भारत के बीच द्विपक्षीय संबंधों पर कई प्रभाव डाल सकता है, जिससे व्यापार, शिक्षा और सामरिक सहयोग पर नए दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी। 

व्यापारिक संबंधों पर असर:

कंजरवेटिव पार्टी के शासनकाल में भारत और ब्रिटेन के बीच व्यापारिक समझौतों पर गहन बातचीत हुई थी। अब, नई सरकार के साथ इन समझौतों की पुनः समीक्षा की जा सकती है। इससे भारत-ब्रिटेन व्यापार में अस्थिरता आ सकती है, जो कि दोनों देशों के आर्थिक सहयोग को प्रभावित कर सकती है।

शैक्षिक क्षेत्र में प्रभाव:

भारत और ब्रिटेन के बीच शिक्षा के क्षेत्र में भी कई सहयोगी योजनाएं चल रही हैं। नई सरकार की नीतियों के तहत इन योजनाओं में बदलाव आ सकता है, जिससे भारतीय छात्रों को ब्रिटेन में पढ़ाई करने के लिए नए नियम और शर्तें झेलनी पड़ सकती हैं।

सामरिक सहयोग:

भारत और ब्रिटेन के बीच सामरिक सहयोग और रक्षा संबंध भी महत्वपूर्ण हैं। नई सरकार की विदेश नीति में बदलाव होने से इन संबंधों पर प्रभाव पड़ सकता है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि नई सरकार भारत के साथ किस प्रकार का सामरिक संबंध बनाए रखती है।

आव्रजन नीतियों में परिवर्तन:

ब्रिटेन की नई सरकार की आव्रजन नीतियां भी भारतीयों के लिए महत्वपूर्ण होंगी। कंजरवेटिव पार्टी की तुलना में नई सरकार की नीतियों में बदलाव भारतीय नागरिकों के लिए आव्रजन प्रक्रिया को कठिन या आसान बना सकते हैं।

नए अवसर और चुनौतियाँ:

इस राजनीतिक परिवर्तन के साथ, भारत को नए अवसर और चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। नई सरकार के साथ संबंध स्थापित करना और आपसी विश्वास बढ़ाना आवश्यक होगा ताकि द्विपक्षीय हितों की सुरक्षा हो सके।

यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत और ब्रिटेन के बीच भविष्य में संबंध किस दिशा में आगे बढ़ते हैं। इस समय, दोनों देशों के नेताओं के लिए यह आवश्यक है कि वे नए हालात के अनुसार अपने संबंधों को मजबूत करने के लिए नए कदम उठाएं।

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