लाखों स्कूली छात्राओं के लिए केंद्र सरकार की नई नीति वरदान साबित होने जा रही है। हाल ही में, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक ऐसी मासिक धर्म स्वच्छता नीति को मंजूरी दी है, जो देश की छात्राओं के शैक्षिक और स्वास्थ्य से जुड़े मसलों को ध्यान में रखते हुए बनाई गई है। इस नीति के तहत, अब कक्षा 6 से 12 तक की छात्राओं को मुफ्त सैनिटरी पैड्स उपलब्ध कराए जाएंगे और स्कूलों में छात्राओं के लिए स्वच्छ और सुरक्षित शौचालयों की व्यवस्था की जाएगी।
क्या है इस नई नीति का संदर्भ?
10 अप्रैल 2023 को कांग्रेस नेता और सोशल एक्टिविस्ट जया ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी। इस याचिका में केंद्र और राज्य सरकारों से छात्राओं के लिए मुफ़्त सैनिटरी पैड्स और स्कूलों में अलग शौचालय की व्यवस्था का अनुरोध किया गया था। इसके बाद, महीनों की विचार-विमर्श और दस्तावेजी प्रक्रिया के पश्चात्, सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत सरकार ने इस दिशा में आवश्यक कदम उठाते हुए 2 नवंबर 2024 को इस नीति को मंजूरी दी।
क्यों है इस नीति की आवश्यकता?
एक शोध के अनुसार, भारत में शौचालयों की कमी और मासिक धर्म से जुड़े सामाजिक संकोच के चलते लाखों लड़कियाँ स्कूल जाने से वंचित रहती हैं। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, इस वजह से एक चौथाई छात्राएं मासिक धर्म के दौरान स्कूल नहीं जाती हैं। ऐसी परिस्थिति केवल एक छात्रा की शिक्षा को ही नहीं, बल्कि उसके आत्मविश्वास और मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है। सरकार के अनुसार, इस नीति का उद्देश्य छात्राओं को मासिक धर्म से जुड़ी जागरूकता और स्वच्छता के प्रति संवेदनशील बनाना है। इसके माध्यम से मासिक धर्म को एक मुख्यधारा की चर्चा का विषय बनाकर इससे जुड़े सामाजिक संकोच और मिथकों को समाप्त करने का प्रयास किया जा रहा है।
वर्तमान स्थिति और सुधार-
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, देश के 97.5% स्कूलों में छात्राओं के लिए अलग शौचालयों की व्यवस्था है, लेकिन पूर्वोत्तर राज्यों और अन्य कुछ क्षेत्रों में अभी भी सुधार की आवश्यकता है। इस पॉलिसी के तहत 10 लाख से अधिक स्कूलों में 17.5 लाख लड़कियों के शौचालय बनाए गए हैं, जिससे स्वच्छता की स्थिति में सुधार हो सके।
स्वच्छता उत्पाद मुफ्त में उपलब्ध कराना-
इस नई पॉलिसी के तहत सभी छात्राओं को मुफ्त सैनिटरी पैड्स जैसी स्वच्छता सामग्री उपलब्ध कराई जाएगी। इससे छात्राएं मासिक धर्म के दौरान भी बिना किसी असुविधा के स्कूल जा सकेंगी। सरकारी रिपोर्टों के अनुसार, भारत में लगभग 50 करोड़ महिलाएं आज भी मासिक धर्म के दौरान सैनिटरी पैड्स का उपयोग नहीं कर पाती हैं। यह नीति इस संख्या को कम करने और मासिक धर्म स्वच्छता को बढ़ावा देने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
मासिक धर्म से जुड़ी शिक्षा और जागरूकता-
इस नीति के अंतर्गत स्कूलों में मासिक धर्म से संबंधित शिक्षा और जागरूकता अभियानों को भी बढ़ावा दिया जाएगा। इस नीति के तहत स्कूली छात्राओं को मासिक धर्म के बारे में सही जानकारी दी जाएगी, जिससे वह बिना किसी झिझक और संकोच के इस विषय पर बात कर सकेंगी और अपने स्वास्थ्य का ध्यान रख सकेंगी।
अन्य देशों के उदाहरण-
स्कॉटलैंड ने 2020 में ‘पीरियड प्रोडक्ट्स फ्री प्रोविजन एक्ट’ लागू किया था, जिसके तहत स्कूलों और अन्य सार्वजनिक स्थानों में महिलाओं को मुफ्त पीरियड प्रोडक्ट्स की सुविधा दी जाती है। भारत में केंद्र सरकार की यह नीति भी इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है और इससे लाखों लड़कियों के शैक्षणिक जीवन में सुधार होने की उम्मीद है।
जीवनस्तर को सुधारने की दिशा में सरकार का सराहनीय कदम-
यह नई मासिक धर्म स्वच्छता नीति छात्राओं की शिक्षा में आने वाली बाधाओं को कम करने और उनके जीवनस्तर को सुधारने की दिशा में सरकार का सराहनीय कदम है। उम्मीद है कि इस नीति के लागू होने से न केवल छात्राओं को सुविधा मिलेगी, बल्कि समाज में मासिक धर्म से जुड़े संकोच और मिथकों को भी दूर करने में मदद मिलेगी।