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पकी फसलों को काटकर मनाते हैं बैसाखी का त्योहार, जानिए क्या है इसका इतिहास?

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बैसाखी का त्योहार आज पूरे देश में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। हर साल बैसाखी का त्यौहार 13 या 14 अप्रैल को मनाया जाता है। वैशाख माह के पहले दिन सूर्य मेष राशि में गोचर करते हैं। और इस साल यह त्योहार 13 अप्रैल यानि आज मनाया जा रहा है। पंजाबी नववर्ष की शुरूआत बैसाखी के दिन से ही मानी जाती है। बैसाखी को वैशाखी भी कहा जाता है। इस मौके पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेशवासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं दी हैं। उन्होंने कहा कि "बैसाखी का त्योहार हमारी गौरवशाली परम्परा एवं समृद्ध विरासत का प्रतीक है। नई फसल के कटने से जुड़ा यह त्योहार हमारे देश की कृषक परम्पराओं और समृद्ध संस्कृति का भी परिचायक है।"

सीएम योगी आदित्‍यनाथ ने बैशाखी के अवसर पर शनिवार को लखनऊ के नाका हिंडोला गुरुद्वारे में पहुंचकर माथा टेका और आर्शीवाद लिया। 

बैसाखी पर फसलों की कटाई-

बैसाखी मौसम बदलने का प्रतीक भी है क्योंकि इस दिन से सर्दियां पूरी तरह समाप्त हो जाती हैं और गर्मियों का आगमन माना जाता है। विशाखा नक्षत्र पूर्णिमा में होने के कारण इस माह को बैसाख कहते हैं। बैसाखी प्रमुख कृषि पर्व है। इस दिन फसल पक कर तैयार होती है ओर चारों और खुशी का माहौल होता है। इसके साथ ही बैसाखी पर रबी की फसलों की कटाई भी की जाती है। वैसे तो ये त्योहार पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है लेकिन पंजाबी समुदाय के बीच बैसाखी का एक अलग ही महत्व है। यह पर्व मुख्य रूप से दिल्ली, पंजाब और हरियाणा में मनाया जाता है।

क्यों मनाते हैं बैसाखी ?

बैसाखी को ऋतु परिवर्तन का प्रतीक ही नहीं माना जाता बल्कि यह पंजाबी समुदाय द्वारा नववर्ष की शुरुआत भी माना जाता है। रबी की फसल कटाई करने के अलावा बैसाखी का ऐतिहासिक महत्व भी कम नहीं है। साल 1699 में सिखों के दसवें और आखिरी गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी ने सिखों के लिए एक विशेष समुदाय खालसा पंथ की स्थापना भी की थी।

कैसे मनाई जाती है बैसाखी? 

पंजाबी नववर्ष होने के कारण बैसाखी के दिन उत्सव मनाया जाता है। इस दिन कई मेले, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, का आयोजन भी किया जाता है। और गुरुद्वारों को लाइटों से सजाया जाता है।और सिख समुदाय के लोग गुरुवाणी सुनते हैं। खीर, शरबत आदि पकवान बनाए जाते हैं। इस दिन शाम के समय घर के बाहर लकड़ियां जलाई जाती हैं।  जलती हुई लकड़ियों का घेरा बनाकर गिद्दा और भांगड़ा कर अपनी प्रसन्नता जाहिर करते हैं। लोग गले लगकर एक दूसरे को बैसाखी की शुभकामनाएं देते हैं। इसके अलावा नगर कीर्तन या शोभायात्राओं का आयोजन भी किया जाता है।

क्या है बैसाखी का इतिहास?

जब मुगलकालीन के क्रूर शासक औरंगजेब ने मानवता पर बहुत जुल्म शुरू किए थे। खासकर सिख समुदाय पर क्रूरता करने की औरंगजेब ने सारी ही सीमाएं पार कर दी थी। अत्याचार की पराकाष्ठा तब हो गई, जब औरंगजेब से लड़ाई लड़ने के दौरान श्री गुरु तेग बहादुरजी को दिल्ली में चांदनी चौक पर शहीद कर दिया गया। औरंगजेब के इस अन्याय को देखकर गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने अनुयायियों को संगठित करके खालसा पंथ की स्थापना की।

इस पंथ का लक्ष्य हर तरह से मानवता की भलाई के लिए काम करना था। खालसा पंथ ने भाईचारे को सबसे ऊपर रखा। मानवता के अलावा खालसा पंथ ने सामाजिक बुराइयों को समाप्त करने के लिए भी काम किया। इस तरह 13 अप्रैल,1699 को श्री केसगढ़ साहिब आनंदपुर में दसवें गुरु गोविंदसिंहजी ने खालसा पंथ की स्थापना कर अत्याचार को समाप्त किया। इस दिन को तब नए साल की तरह माना गया, इसलिए 13 अप्रैल को बैसाखी का पर्व मनाया जाने लगा

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