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चिंताजनक स्थिति: प्रदूषण बन रहा शहरी बच्चों के विकास में रुकावट, अस्थमा और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा असर

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शहरों में वायु और ध्वनि प्रदूषण, हरियाली की कमी, और सीमित खुली जगहें शहरी बच्चों के समग्र विकास में बड़ी बाधा बन रही हैं। सिडनी के यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक ताजा अध्ययन में 41 देशों के 235 शोधों का विश्लेषण किया गया। इस अध्ययन में बच्चों के विकास पर पड़ने वाले पर्यावरणीय खतरों का गहराई से मूल्यांकन किया गया है।

बढ़ता वायु प्रदूषण और बच्चों के स्वास्थ्य पर प्रभाव-

शोध के अनुसार, शहरी क्षेत्रों में वाहनों और उद्योगों से निकलने वाले सूक्ष्म कण (पार्टिकुलेट मैटर) और विषाक्त पदार्थों के लगातार संपर्क में आने से बच्चों में अस्थमा और श्वसन संबंधी समस्याएं बढ़ रही हैं। इसके अलावा, ये प्रदूषक बच्चों के न्यूरोलॉजिकल विकास को भी प्रभावित कर सकते हैं। लंबे समय तक इस तरह के प्रदूषण के संपर्क में रहने से मस्तिष्क की कार्यक्षमता और विकास पर प्रतिकूल प्रभाव देखा गया है।

शहरी जीवन में हरियाली की कमी-

शहरीकरण के चलते पार्कों और बगीचों जैसी प्राकृतिक हरियाली तक बच्चों की पहुंच लगातार घट रही है, जो उनके मानसिक और शारीरिक विकास के लिए जरूरी है। अध्ययन में यह स्पष्ट किया गया है कि प्राकृतिक वातावरण में समय बिताने से बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है और वे अधिक सक्रिय रहते हैं। शहरी इलाकों में हरियाली की अनुपस्थिति के कारण बच्चों के विकास में बाधाएं उत्पन्न हो रही हैं। 

बच्चों की परवरिश पर नकारात्मक असर-

माता-पिता के समय की कमी

शहरी जीवन की तेज रफ्तार माता-पिता को बच्चों की परवरिश के लिए पर्याप्त समय नहीं दे पा रही है। यह स्थिति बच्चों के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है। सामाजिक अलगाव, सीमित सामुदायिक समर्थन और पारिवारिक समय की कमी बच्चों के विकास को धीमा कर रही है, जिससे उनके भावनात्मक और सामाजिक कौशल बाधित हो रहे हैं।

सुरक्षा चिंताएं: खेल और स्वतंत्रता में बाधा-

शहरों में बच्चों के खेलने के लिए सुरक्षित स्थानों की कमी भी उनके विकास में बाधक बन रही है। परिवारों में सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं के कारण बच्चे स्वतंत्र रूप से बाहर खेलने से वंचित हो रहे हैं, जिससे उनकी सामाजिकता और आत्मविश्वास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। खेल बच्चों के विकास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन शहरी जीवन में इसकी संभावना कम होती जा रही है।

डिजिटल निर्भरता: बच्चों की बुद्धिमत्ता पर असर-

स्क्रीन समय में वृद्धि

शहरीकरण के साथ ही डिजिटल निर्भरता भी बढ़ रही है। बच्चों में स्क्रीन के प्रति अत्यधिक लगाव देखा जा रहा है, जिससे उनकी आमने-सामने की बातचीत और संचार कौशल पर असर पड़ रहा है। स्क्रीन पर अधिक समय बिताने से बच्चों की भावनात्मक बुद्धिमत्ता और संचार क्षमता कमजोर हो रही है। इसके कारण बच्चों का मानसिक विकास बाधित हो रहा है, जो उनके भविष्य के लिए चिंताजनक है।

डिजिटल जगत में बढ़ती सहभागिता

शोधकर्ताओं का कहना है कि बच्चों का वास्तविक दुनिया से दूरी बनाना और डिजिटल दुनिया में बढ़ती सहभागिता उनके सामाजिक विकास को कमजोर कर रही है। बच्चों का अत्यधिक तकनीकी उपकरणों पर निर्भर होना, उनकी स्वाभाविक रचनात्मकता और कौशल विकास के लिए हानिकारक है।

समाधान: हरियाली और सुरक्षित स्थानों की आवश्यकता-

बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास के लिए जरूरी हैं खुली जगहें

विशेषज्ञों का सुझाव है कि शहरी क्षेत्रों में बच्चों के लिए खुली और हरियाली से भरपूर जगहों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए। बच्चों को खेल के लिए सुरक्षित स्थान उपलब्ध कराना उनके विकास के लिए अनिवार्य है। इसके साथ ही, बच्चों को शारीरिक और मानसिक विकास के लिए प्रकृति से जोड़ने की जरूरत है।

माता-पिता की सहभागिता बढ़ाने की सलाह-

माता-पिता को अपने बच्चों के साथ अधिक समय बिताने और उनके विकास में सक्रिय भूमिका निभाने की सलाह दी गई है। शहरी जीवन की तेज गति के बावजूद, बच्चों की परवरिश के लिए समय निकालना बेहद जरूरी है। बच्चों को समाजिक और मानसिक रूप से मजबूत बनाने के लिए माता-पिता की सहभागिता एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

शहरीकरण से बच्चों के विकास को हो रहा नुकसान-

शहरी जीवनशैली और प्रदूषण बच्चों के समग्र विकास के लिए गंभीर खतरा बनते जा रहे हैं। वायु और ध्वनि प्रदूषण, हरियाली की कमी, और डिजिटल निर्भरता जैसी चुनौतियां बच्चों की शारीरिक और मानसिक सेहत पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही हैं। ऐसे में, जरूरी है कि शहरी योजना में बच्चों के विकास को ध्यान में रखते हुए बदलाव किए जाएं, ताकि आने वाली पीढ़ी का भविष्य सुरक्षित और स्वस्थ हो।

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