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12 साल की मेहनत और कई अड़चनों के बाद बनी जेड मोड़ टनल, सेना की रणनीतिक ताकत में होगी बढ़ोतरी

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को सामरिक और पर्यटन दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण जेड मोड़ सोनमर्ग सुरंग का उद्घाटन कर इसे राष्ट्र को समर्पित किया। जम्मू-कश्मीर में नई सरकार के गठन के बाद प्रधानमंत्री का यह पहला दौरा है, जो कई मायनों में ऐतिहासिक है। 6.5 किलोमीटर लंबी यह सुरंग श्रीनगर-कारगिल-लेह राजमार्ग पर, समुद्र तल से 8,650 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और इसे क्षेत्र की जीवनरेखा कहा जा रहा है। इस सुरंग से न केवल रणनीतिक दृष्टि से क्षेत्र की सुरक्षा सुनिश्चित होगी, बल्कि पर्यटन को भी नई ऊंचाइयां मिलेंगी। इस सुरंग से यात्रा का समय घंटों से घटकर मात्र 15 मिनट रह जाएगा।

सुरक्षा के किए गए कड़े इंतजाम-

प्रधानमंत्री के इस दौरे के चलते पूरी घाटी में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं, विशेषकर सुरंग के आसपास के संवेदनशील क्षेत्रों में सेना और अर्धसैनिक बलों ने गश्त तेज कर दी है। एसपीजी ने समारोह स्थल को पूरी तरह से अपनी निगरानी में ले लिया है, जिससे यह कार्यक्रम सुचारू रूप से संपन्न हो सके। श्रीनगर के विभिन्न इलाकों में शार्प शूटर तैनात किए गए हैं और ड्रोन से निगरानी की जा रही है। वाहनों की जांच के अलावा रोड ओपनिंग पार्टी और अत्याधुनिक उपकरणों से विस्फोटक की आशंका को समाप्त करने के लिए जांच की जा रही है।

पीएम मोदी ने श्रमिकों से की मुलाकात-

उद्घाटन समारोह के दौरान पीएम मोदी ने सुरंग निर्माण में लगे श्रमिकों से मुलाकात की और उनके साथ फोटो खिंचवाई। इस अवसर पर उपराज्यपाल मनोज सिन्हा, मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी मौजूद थे।

जनसभा में उमड़ा जनसैलाब-

सर्दी के बावजूद बड़ी संख्या में लोग पीएम मोदी को सुनने के लिए सुबह से ही कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे। स्थानीय निवासी अख्तर खटाना ने बताया कि प्रधानमंत्री के प्रयासों से यह सुरंग जल्द बनकर तैयार हुई है और इससे सर्दियों के दौरान सड़क खुली रहेगी।

नितिन गडकरी और जितेंद्र सिंह की उपस्थिति-

केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह भी श्रीनगर पहुंचे। जेड मो१ड सुरंग के खुलने से सोनमर्ग और लद्दाख के लिए सदाबहार सड़क संपर्क का पहला चरण पूरा होगा।

आतंकियों के मंसूबों को विफल बनाने की तैयारी-

श्रीनगर से लेकर कुपवाड़ा तक औचक तलाशी अभियान चलाए जा रहे हैं ताकि किसी भी आतंकी गतिविधि को नाकाम किया जा सके। अल्पसंख्यकों की बस्तियों और प्रवासी श्रमिकों के इलाकों में भी सुरक्षा के विशेष प्रबंध किए गए हैं।

12 साल की मेहनत और कई अड़चनों के बाद बनी ऐतिहासिक टनल-

जेड मोड़ टनल प्रोजेक्ट की कहानी 2012 में शुरू हुई जब बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन (BRO) को इसका जिम्मा सौंपा गया। लेकिन बाद में इसे प्राइवेट कंपनी के हवाले किया गया। पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल पर आधारित इस महत्वाकांक्षी परियोजना को अगस्त 2023 तक चालू होना था, लेकिन कोरोना महामारी ने निर्माण में देरी कर दी। इसी बीच जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के दौरान आचार संहिता लागू होने से उद्घाटन कुछ और समय के लिए टल गया। आखिरकार, 12 साल की लंबी यात्रा के बाद, इस टनल का निर्माण पूरा हुआ। 2700 करोड़ रुपये की लागत से बने इस प्रोजेक्ट में 36 करोड़ रुपये भूमि अधिग्रहण और इंफ्रास्ट्रक्चर प्लानिंग में खर्च हुए।

समुद्र तल से 5652 फीट की ऊंचाई पर बनी-

यह टनल समुद्र तल से 2600 मीटर यानी 5652 फीट की ऊंचाई पर बनाई गई है, जो मौजूदा जेड शेप सड़क से करीब 400 मीटर नीचे स्थित है। इस टनल को न्यू ऑस्ट्रियन टनलिंग मेथड (NATM) से बनाया गया है, जो इसे भूस्खलन और एवलांच से सुरक्षित बनाता है। NATM तकनीक के तहत, टनल बनाने के दौरान पहाड़ों की मिट्टी और जलवायु का गहन अध्ययन किया जाता है, जिससे निर्माण के दौरान पहाड़ के बेस को नुकसान न पहुंचे और हादसे से बचा जा सके।

2028 में एशिया की सबसे लंबी टनल बनने का खिताब-

इस टनल के आगे बन रही जोजिला टनल के 2028 में पूरा होने के बाद, यह 12 किलोमीटर लंबी होगी, जिसमें 2.15 किलोमीटर की सर्विस रोड भी शामिल होगी। इसके बाद यह एशिया की सबसे लंबी टनल बन जाएगी, जो बालटाल, कारगिल और लद्दाख को हर मौसम में कनेक्टिविटी प्रदान करेगी। फिलहाल, हिमाचल प्रदेश में स्थित 9.2 किलोमीटर लंबी अटल टनल इस खिताब की मालिक है, जो मनाली को लाहौल-स्पीति से जोड़ती है।

सेना की रणनीतिक ताकत में बढ़ोतरी-

यह टनल सेना के लिए रणनीतिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण है। सर्दियों में भारी बर्फबारी के चलते सेना का सामान और हथियार LAC तक पहुंचाना मुश्किल हो जाता है, जिससे आर्मी पूरी तरह से एयरफोर्स पर निर्भर हो जाती है। लेकिन इस टनल के शुरू होने से सेना कम खर्च में सामान पहुंचा सकेगी, साथ ही चीन से लगी LAC से लेकर पाकिस्तान बॉर्डर तक बटालियन की मूवमेंट भी सुगम होगी।

आतंकी हमले की काली छाया-

इस टनल के निर्माण के दौरान, 20 अक्टूबर 2024 को आतंकियों ने गगनगीर में मजदूरों के कैंप पर हमला किया था। इस हमले में निर्माण कंपनी के 6 मजदूर और एक स्थानीय डॉक्टर सहित कुल 7 लोग मारे गए थे। यह घटना इस प्रोजेक्ट की चुनौतियों और सुरक्षा की गंभीरता को रेखांकित करती है। अब, यह टनल न केवल एक इंफ्रास्ट्रक्चर की उपलब्धि है बल्कि सामरिक और आर्थिक दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगी।

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