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(Special story) राजस्थान के दक्षिण-मध्य में स्थित एक रियासत का वह वीर योद्धा जिसने मुगलिया सल्तनत की आंखो में आंखे डालकर मुगलों के घमंड को चूर किया और उनके हमलों से अपनी रियासत की डटकर निगहबानी की। ऐसा वीर और पराक्रमी योद्धा जिसने 85 हजार सेना के सामने हथियार नहीं डाले बल्कि उन्हें पस्त किया। मेवाड़ के वीर योद्धा महाराणा प्रताप आज भी अपने शौर्य, पराक्रम और साहस के लिए जाने जाते हैं। हर साल देशभर में महाराणा प्रताप की जयंती धूमधाम और हर्षोल्लास से मनाई जाती है। आज 484वीं जयंती मनाई जा रही है। मेवाड़ का चप्पा-चप्पा उस वीरगाथा, वीर राणा और उनके बेहद खास चेतक को अपने यादों में समेटे हुए है।
पीएम मोदी का वीडियो संदेश-
पीएम मोदी ने महाराणा प्रताप की जयंती पर वीडियो संदेश जारी करते हुए कहा- उस नाम में क्या जादू होगा उस व्यक्तित्व में क्या ताकत है कि आज भी महाराणा प्रताप का नाम लेते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। वो कैसा जीवन जी गए होंगे, किस प्रकार से जीवन को खपाया होगा कि 400 साल के बाद भी राणा प्रताप का नाम लेते ही जवानी उमड़ पड़ती है। वो कौन सा सामर्थ्य है, वो जीवन कि कौन सी आहूति है जो आज भी हमें प्रताप दे रही है। आगे का मार्ग प्रशस्त कर रही है। हमें ये सोचना होगा कि क्या कारण है कि महाराणा प्रताप का नाम लेते सिर झुकाने का मन करता है। घास की रोटी खा सकते हैं लेकिन आत्म सम्मान से समझौता नहीं कर सकते है। ये संस्कार महाराणा प्रताप ने हमें दिए हैं।
मेवाड़ अपने महान योद्धा को देता है श्रद्धांजलि
09 मई 1540 को राजस्थान के मेवाड़ में जन्में वीर योद्धा महाराणा प्रताप के पिता का नाम उदय सिंह द्वितीय और माता का नाम महारानी जयंवता बाई था। महाराणा प्रताप मेवाड़ के 13वें राजा थे और वह 25 भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। यह दिन राजस्थान के लोगों के लिए काफी महत्वपूर्ण दिन है। मेवाड़ शासक को सबसे बहादुर राजपूत योद्धाओं में से एक माना जाता था और वह मुगलों के खिलाफ अपनी यादगार लड़ाइयों के लिए जाने जाते थे। 9 मई के दिन को उनकी वीरता और साहस को याद करते हुए जश्न के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन, राजस्थान के लोग उनके योगदान को याद करने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों और कार्यक्रमों का आयोजन करके महान योद्धा को श्रद्धांजलि देते हैं।
संघर्षों से भरा महाराणा प्रताप का जीवन
साल 1572 में महाराणा प्रताप ने अपने पिता की गद्दी संभाली और मेवाड़ पर शासन किया। पिछले राजपूत सम्राटों के विपरीत, महाराणा प्रताप ने अपनी आखिरी सांस तक बहादुरी से लड़ते हुए, अपने सामने आने वाली विशाल मुगल सेना का विरोध किया था। महाराणा प्रताप का जीवन संघर्षों से भरा रहा और उन्हें जीवन भर कई लड़ाइयों का सामना करना पड़ा था। जब मुगलों ने चित्तौड़गढ़ पर हमला किया तो उनके पिता को भागना पड़ा और महाराणा प्रताप को कठिन परिस्थितियों में बड़ा होना पड़ा। महाराणा प्रताप एक बहादुर योद्धा थे, और उन्होंने अपने राज्य और अपने लोगों की आजादी की रक्षा के लिए मुगलों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी।
हल्दीघाटी के युद्ध में किसकी हुई थी जीत
18 जून 1576 को मेवाड़ के राणा महाराणा प्रताप की सेना और आमेर के महाराजा मानसिंह प्रथम के नेतृत्व में मुगल सम्राट अकबर की सेनाओं के बीच लड़ी गई थी। हल्दीघाटी असल में एक दर्रा है, अरावली पर्वत श्रृंखला से गुजरने वाला दर्रा, जो राजस्थान में उदयपुर से करीब 40 किमी दूर है, इस दर्रे की मिट्टी हल्दी की तरह पीली है, इसलिए प्रचलित नाम हल्दीघाटी पड़ा। यह राजस्थान में राजसमंद और पाली जिलों को जोड़ता है। लड़ाई की शुरुआत उस वक्त से हुई जब अकबर राजपूत क्षेत्रों पर नियंत्रण हासिल करके अपने शासन क्षेत्र को बढ़ाने की योजना बना रहा था। इस युद्ध को लेकर दोनों पक्ष जीत का दावा करते हैं लेकिन इसके पीछे कई तथ्य हैं। इतिहासकारों के अनुसार कहा गया है कि मेवाड़ ने भी जीत का दावा किया था, क्योंकि कोई आत्मसमर्पण नहीं हुआ था, वहीं, मुगलों ने भी जीत का दावा किया क्योंकि वो अंत समय तक मैदान में थे। इसलिए ज्यादातर इतिहासकार इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि महाराणा प्रताप की सेना हल्दीघाटी की लड़ाई से कभी पीछे नहीं हटी और इसका मतलब है युद्ध महाराणा प्रताप ने जीता था। इसके अलावा कई ऐसे इतिहासकार हैं, जो दोनों तरफ से अलग अलग तर्क रखते हैं, ऐसे में साफ तौर पर किसकी जीत हुई थी ये स्पष्ट नहीं है। लेकिन ये बात बिल्कुल साफ है महाराणा प्रताप ने इस यद्ध में अदम्य साहस का परिचय दिया।
महाभारत जैसा था हल्दी घाटी का युद्ध
महाराणा प्रताप और मुगलों के बीच कई युद्ध हुए और उन्होंने हमेशा मेवाड़ की रक्षा की। लेकिन 1576 में महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हुआ हल्दी घाटी युद्ध बहुत ही भयावह था।इस युद्ध की तुलना महाभारत युद्ध से की जाती है। कहा जाता है कि हल्दी घाटी युद्ध में अकबर के 85 हजार वाली विशाल सेना का सामना महाराणा प्रताप ने अपने 20 हजार सैनिकों से किया। बुरी तरह से जख्मी होने के बाद भी महाराणा प्रताप अकबर के हाथ नहीं आए। इस तरह से महाराणा प्रताप ने अपने कौशल और युद्ध कला का परिचय दिया।
आखिरी सांस तक वीरता दिखाई-
महाराणा प्रताप सिंह की मृत्यु 19 जनवरी, 1597 को 56 वर्ष की आयु में चावंड में एक शिकार दुर्घटना में लगी चोटों के कारण हो गई। उनके सबसे बड़े बेटे, अमर सिंह प्रथम, उनके उत्तराधिकारी बने। प्रताप ने अपनी मृत्यु शय्या पर अपने बेटे से कहा कि वह मुगलों के सामने आत्मसमर्पण न करे और चित्तौड़ पर पुनः अधिकार करें।
Baten UP Ki Desk
Published : 9 May, 2024, 11:53 am
Author Info : Baten UP Ki