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आज के इस डिजिटल युग में आप अक्सर अपने खाली समय में मोबाइल में रील या कुछ वीडियोज देखते होंगे। यहाँ तक तो सब कुछ ठीक है लेकिन अगर आप दिन भर में अपने मोबाइल का इस्तेमाल चार घंटे से ज्यादा करतें हैं तो यह एक गंभीर समस्या का रूप ले सकता है। जिसका नाम 'डिजिटल डिमेंशिया' है। यह एक ऐसा मुद्दा है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, खासकर अगर आप युवा हैं, तो बिलकुल भी नहीं। डिजिटल डिमेंशिया क्या है, इसके लक्षण क्या हैं, और इससे बचाव के उपाय क्या हैं ? इन सभी पहलुओं पर आज हम विस्तार से चर्चा करेंगे।
क्या है डिजिटल डिमेंशिया
डिजिटल डिमेंशिया एक नई समस्या है जो हमारे दैनिक जीवन में स्मार्टफोन, लैपटॉप और अन्य डिजिटल उपकरणों के ज्यादा इस्तेमाल करने से होती है। डिमेंशिया एक मानसिक बीमारी है, जिसमें व्यक्ति अपनी याददाश्त खो बैठता है, और यह समस्या ज्यादातर बुजुर्गों में पाई जाती है। लेकिन जब हम "डिजिटल" शब्द जोड़ते हैं, तो इसका मतलब है कि डिजिटल उपकरणों के अत्यधिक उपयोग के कारण युवा लोग भी इस तरह की मानसिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं। इस शब्द को सबसे पहले जर्मनी के न्यूरोसाइंटिस्ट डॉ. मेनफ्रेड स्पिट्जर ने लोकप्रिय बनाया। उनका मानना है कि डिजिटल उपकरणों पर अत्यधिक निर्भरता से हमारे मस्तिष्क की संज्ञानात्मक क्षमताओं यानी की सोचने की क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। सीधे शब्दों में कहें, तो स्मार्टफोन और कंप्यूटर हमारे दिमाग को धीरे-धीरे कमजोर बना रहे हैं।
कैसे होते हैं डिजिटल डिमेंशिया के लक्षण?
डिजिटल डिमेंशिया के लक्षण धीरे-धीरे प्रकट होते हैं और इन्हें पहचानना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। इनके लक्षणों में कई सारी चीजें शामिल होती है जिन्हें अब हम बारी-बारी से समझेंगे-
क्या आप अपने दोस्तों और परिवार से ज्यादा अपने फोन के साथ समय बिताते हैं? जिससे आप लोगों का सामाजिक जीवन प्रभावित हो रहा है। अगर ऐसा है तो यह सभी डिजिटल डिमेंशिया के ही लक्षण हैं। स्मार्टफोन और डिजिटल उपकरणों पर अधिक निर्भरता के कारण लोगों की mathematical calculations और अन्य बौद्धिक कौशल कमजोर हो रहे हैं।
डिजिटल डिमेंशिया के कारण
डिजिटल डिमेंशिया के कई कारण हैं, जैसे बच्चे और युवा दिन में घंटों स्मार्टफोन, लैपटॉप और टैबलेट पर समय बिताते हैं। इससे उनके मस्तिष्क पर भारी दबाव पड़ता है, जिससे उनकी मानसिक क्षमता घटने लगती है। डिजिटल उपकरणों के साथ एक ही समय में कई काम करना, जैसे सोशल मीडिया पर स्क्रॉल करना, म्यूजिक सुनना और ईमेल चेक करना, दिमाग को थकान पहुंचाता है। सोशल मीडिया पर बार-बार नोटिफिकेशन और अपडेट्स चेक करना, दिमाग को एकाग्रता की कमी की ओर ले जाता है।
क्या हैं डिजिटल डिमेंशिया से बचाव के उपाय?
अब सवाल यह है कि इस समस्या से कैसे बचा जाए। इसके लिए कुछ आसान लेकिन प्रभावी उपाय हैं जैसे आपको कोशिश करनी होगी कि आप दिन में 2-3 घंटे से ज्यादा समय डिजिटल उपकरणों पर न बिताएं। विशेषकर सोने से पहले एक घंटे का डिजिटल डिटॉक्स करें। यानि फोने का इस्तेमाल ना करें। इससे आपको नींद भी अच्छी आएगी। ध्यान और मेडिटेशन जैसी चीजों को अपने डेली रूटीन में शामिल करें। यह न केवल आपकी एकाग्रता बढ़ाएंगे, बल्कि आपके मानसिक स्वास्थ्य में भी सुधार लाएंगे। आप परिवार और दोस्तों के साथ अपना समय बिताएं। यह आपके मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभदायक होगा। फोन की स्क्रीन की ब्लू लाइट से बचने के लिए स्क्रीन ब्राइटनेस कम करें या ब्लू लाइट फिल्टर का इस्तेमाल करें।
डिजिटल डिमेंशिया एक गंभीर समस्या-
डिजिटल डिमेंशिया एक वास्तविक और गंभीर समस्या है, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। हमें अपने जीवन में डिजिटल उपकरणों के उपयोग को सीमित करने की जरूरत है, ताकि हम अपने दिमाग को स्वस्थ और सक्रिय रख सकें। यदि आप भी इस समस्या का सामना कर रहे हैं, तो आज ही अपने डिजिटल उपकरणों के उपयोग को सीमित करने का प्रयास करें। अपने दिमाग की सेहत का ख्याल रखें, क्योंकि एक स्वस्थ दिमाग एक स्वस्थ जीवन के लिए बेहद जरूरी है।
Baten UP Ki Desk
Published : 26 August, 2024, 7:26 pm
Author Info : Baten UP Ki