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इतिहास का अब तक का सबसे मुश्किल 'तलाक़'?

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हमारे जीवन में घटनाओं का प्रवाह इतनी तेजी से होता है कि एक आम इंसान उसमें तिनके की तरह बहता चला जाता है। लेकिन कुछ कड़वी-मीठी यादें हमारे ज़ेहन में हमेशा बनी रहती हैं। इतिहास भी किसी देश या समाज की यादों की तरह ही होता है। और हमारे हिन्दुस्तान के बंटवारे का इतिहास की इन्हीं कड़वी यादों में से एक है। आखिर कैसे हिंदुस्तान के दो टुकड़े हो गए? आइए विस्तार से जानते हैं इसके पीछे की वजह।

मुस्लिम लीग बनी सबसे बड़ा रोड़ा-

साल 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो चुका था और ऐसे में अंग्रेजी हुक़ूमत भारत की तरफ से कोई नया बखेड़ा नहीं चाहती थी। उसे डर था कि अगर इन हालातों में कांग्रेस ने कोई नया जनान्दोलन खड़ा कर दिया, तो उसे रोकना बहुत ही मुश्किल हो जाएगा। यानी कांग्रेस को संतुलित रखना बहुत ज़रुरी था और इसके लिए सबसे सटीक हथियार मुस्लिम लीग ही थी। शायद इसीलिए अंग्रेजों ने जिन्ना को एक ‘वीटो पावर’ सा दे दिया। इस वीटो पावर का मतलब ये हुआ कि हिंदुस्तान के संबंध में कोई भी निर्णय बिना मुस्लिम लीग की सहमति के नहीं होगा। इस तरह, मुस्लिम लीग के लिए कांग्रेस के हर काम में रोड़ा अटकाना और आसान हो गया।
 
मुस्लिम लीग ने ‘एक अलग पाकिस्तान’ के नारे पर लड़ा चुनाव 
 
साल 1946 के चुनाव में मुस्लिम लीग ‘एक अलग पाकिस्तान’ के नारे पर चुनाव लड़ रही थी। अंग्रेजों ने अपनी ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति के तहत मुस्लिमों को पहले ही एक अलग निर्वाचन का अधिकार दे रखा था। अलग निर्वाचन का मतलब यह हुआ कि जहाँ अलग निर्वाचन की व्यवस्था होगी वहाँ सिर्फ़ मुस्लिम ही चुनाव लड़ेंगे और मुस्लिम ही वोट देंगे। यानी उस क्षेत्र में रह रहे दूसरी कौम के लोगों को चुनाव में कोई हक़ नहीं दिया जाएगा। अंग्रेजी सरकार फूट डालने में तो इतना माहिर थी कि 1885 से बनी कांग्रेस की मांगों को लेकर सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगती थी। लेकिन 1906 में बनी मुस्लिम लीग के अलग निर्वाचन की मांग को उन्होंने तुरंत मान लिया। बहरहाल 1946 की इस चुनाव में मुस्लिमों के लिए आरक्षित सीटों पर 84 फ़ीसदी सीटें मुस्लिम लीग के पाले में गईं और आने वाले वक़्त में इस जीत के कई मायने साबित हुए।

जब मुस्लिम लीग ने किया ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ का एलान
 
मुस्लिम लीग ने अब इस बात का प्रचार करना शुरू कर दिया कि 1946 का चुनाव ‘पाकिस्तान’ के मुद्दे पर एक जनमत संग्रह जैसा था। यानी चुनाव के जरिए मुसलमानों ने इस बात की पूरी तसदीक कर दी कि उन्हें किसी भी कीमत पर ‘एक अलग पाकिस्तान’ चाहिए। लीग अब इतना बेलगाम हो चुका था कि उसने 16 अगस्त 1946 को ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ का एलान कर डाला। डोमिनिक  लापिएर अपनी किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ में लिखते हैं कि इस ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ के दौरान कोलकाता में केवल 72 घंटों के भीतर तक़रीबन 26000 हिंदू मारे गए थे। इसी तरह से अन्य कौम के लोग भी मारे गए थे। इस घटना ने तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेटन को भी झकझोर कर रख दिया था। लीग ने संविधान सभा में भी भाग लेने से इनकार कर दिया और हिंसा का आरोप कांग्रेस के सिर मढ़ दिया। किसी तरह वे अंतरिम सरकार में तो शामिल हुए, लेकिन उन्होंने सरकार को पूरी तरह से चलने नहीं दिया और उसमें रोड़ा ही बने रहे। हुआ यूँ कि मुस्लिम लीग अंतरिम सरकार में शामिल हो कर कोई अहम पद चाहती थी। इसलिए कांग्रेस ने लीग के लियाकत अली खान को वित्त मंत्रालय दे दिया। अब दिक्कत यह हो गई कि सरकार जब कोई योजना या कार्यक्रम बनाती तो लियाकत साहब इसके लिए पैसे न होने की बात कहकर सारा खेल ही बिगाड़ देते थे। बिना पैसे के कोई सरकार कैसे चल पाती यानी इन हालातों में सरकार चलाना बिल्कुल ही मुश्किल हो गया था।
 

हिंदुस्तान को माननी पड़ी बंटवारे की शर्त-

हारकर कांग्रेस ने हिंदुस्तान के बंटवारे की शर्त को मान लिया। 3 जून 1947 को तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने ब्रिटेन की संसद में ‘पार्टीशन प्लान’ का ऐलान किया। इस पार्टीशन प्लान को जून प्लान या माउंटबेटन प्लान भी कहा जाता है। 3 जून को महज एक सरकारी प्लान का ऐलान नहीं हुआ था बल्कि भारत मां के कलेजे को दो टुकड़े कर देने का भी ऐलान कर दिया गया था। महात्मा गांधी समेत कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं ने भारी मन से इस योजना के लिए हामी भरी। उसके अगले दिन 4 जून को माउंटबेटन ने आज़ादी की तारीख भी मुकर्रर कर दी।

किया जाना था पंजाब और बंगाल का बँटवारा

इस प्लान में अंग्रेजी सरकार ने ब्रिटिश इंडिया के बँटवारे की बात मान ली थी। इसके मुताबिक़ पंजाब और बंगाल का बँटवारा किया जाना था, जिसके लिए रेडक्लिफ आयोग बनाए जाने की बात कही गई थी। साथ ही, पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत यानी NWFP और असम के सिलहट क्षेत्र में जनमत संग्रह भी किया जाना था। देसी रियासतों को इस बात की आज़ादी थी कि वे चाहे भारत में शामिल हो जाएं या फिर पाकिस्तान में। अगर वे इन दोनों में शामिल नहीं होना चाहते हैं तो वे खुद में एक स्वतंत्र राष्ट्र के तौर पर रह सकते हैं। इसके अलावा इस प्लान में बँटवारे के बाद बनने वाले नए मुल्कों को डोमिनियन स्टेटस (Dominion status) देने की बात भी कही गई थी। और दोनों नए मुल्क़ इस बात के लिए भी आज़ाद थे कि वे अपना संविधान खुद बनाएँ। 

इतिहास का अब तक का सबसे मुश्किल तलाक़
 
इतिहास का अब तक का सबसे बड़ा और सबसे मुश्किल तलाक़ होने जा रहा था। 40 करोड़ भारतीयों का संयुक्त परिवार अब टूटने जा रहा था और उसके साथ कई सदी तक धरती की एक ही टुकड़े पर रहकर उन्होंने तिनका-तिनका बीन के जो कुछ भी जुटाया था वह सब अब बंटने और बिखरने जा रहा था। शायद नियति को यही मंजूर था।  
 
आजादी के समय मिला डोमिनियन स्टेटस
 

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 में कहा गया था कि 15 अगस्त 1947 को भारत व पाकिस्तान दो डोमेनियन (Dominion) बनाए जाएंगें और ब्रिटिश सरकार उन्हें सत्ता सौंप देगी। इसके साथ ही 14 अगस्त को पाकिस्तान और 15 अगस्त को भारतीय संघ की स्थापना की गई थी। साल 2021 केंद्र सरकार ने स्वतंत्रता दिवस से ठीक एक दिन पहले यानी 14 अगस्त को 'विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस' (Partition Horrors Remembrance Day) के रूप में मनाने का ऐलान किया था। विभाजन के दौरान हुई हिंसा में करीब 10 लाख लोग मारे गए और करीब 1.45 करोड़ शरणार्थियों ने अपना घर-बार छोड़कर बहुमत संप्रदाय वाले देश में शरण ली। धर्म के आधार पर हुए इस बंटवारे का दंश आज भी दोनों देश झेल रहे हैं।

 

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