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1952 में, भारत ने परिवार नियोजन का पहला राष्ट्रीय कार्यक्रम शुरू किया, जिसका मकसद मातृ और शिशु स्वास्थ्य में सुधार लाना था। वर्षों के साथ, इस पहल ने जनसंख्या नियंत्रण और स्वास्थ्य सेवाओं में स्थायित्व की दिशा में प्रगति की। हालांकि, गर्भनिरोधक उपायों में पुरुष नसबंदी जैसे सरल और सुरक्षित विकल्प मौजूद होने के बावजूद, यह आज भी सामाजिक स्तर पर व्यापक स्वीकृति हासिल नहीं कर पाया है।
गर्भनिरोधक में पुरुषों की भागीदारी: आंकड़ों का सच
1966 से 1970 के बीच, नसबंदी प्रक्रिया अपनाने वाले पुरुषों का प्रतिशत 80% था। लेकिन इसके बाद की नीतियों और सामाजिक बदलावों ने इस हिस्सेदारी को लगातार कम किया। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के पांच दौरों ने यह दिखाया कि पिछले तीन दशकों में पुरुष नसबंदी की दर लगातार गिरती गई है।
पुरुष नसबंदी के कम आंकड़े और महिलाओं पर बढ़ता बोझ-
NFHS-4 (2015-16) और NFHS-5 (2019-21) के अनुसार, भारत में पुरुष नसबंदी का प्रतिशत केवल 0.3% पर स्थिर है, जबकि महिलाओं के मामले में यह आंकड़ा 37.9% है। इस भारी अंतर ने परिवार नियोजन का पूरा भार महिलाओं के कंधों पर डाल दिया है। यह स्थिति राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के उस लक्ष्य के विपरीत है, जिसमें पुरुष नसबंदी की हिस्सेदारी को 30% तक बढ़ाने की बात कही गई थी।
लैंगिक असमानता और सामाजिक बाधाएं-
गर्भनिरोधक जिम्मेदारी में असमानता केवल एक स्वास्थ्य समस्या नहीं है, बल्कि यह गहरी लैंगिक असमानता को भी दर्शाती है। सतत विकास लक्ष्य-5 के तहत 2030 तक महिलाओं और लड़कियों को सशक्त बनाने का लक्ष्य रखा गया है। लेकिन जब परिवार नियोजन का सारा बोझ महिलाओं पर डाल दिया जाता है, तो यह लक्ष्य अधूरा रह जाता है।
पुरुष नसबंदी को लेकर कई भ्रांतियां और सामाजिक बाधाएं-
भारत में पुरुष नसबंदी को लेकर कई भ्रांतियां और सामाजिक बाधाएं हैं। महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजी नगर के एक गाँव में किए गए सर्वेक्षण में महिलाओं ने माना कि नसबंदी उनकी जिम्मेदारी है। उनका कहना था कि पुरुष पहले से ही घर चलाने के लिए मेहनत करते हैं और इस प्रक्रिया से गुजरने से उनकी रोज़ की मज़दूरी छिन सकती है।
पुरुषों में नसबंदी को लेकर जागरूकता की कमी-
यह सोच पुरुषों में नसबंदी को लेकर जागरूकता की कमी और सामाजिक दबाव को दर्शाती है। कई पुरुष इसे अपनी "मर्दानगी" पर आघात मानते हैं। वहीं, पारंपरिक धारणाएँ और ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मियों की कमी ने भी इस प्रक्रिया को अपनाने में रुकावटें खड़ी की हैं।
पुरुष नसबंदी को प्रोत्साहन देने की पहल-
भारत में पुरुष नसबंदी को बढ़ावा देने के लिए 2017 में 'पुरुष नसबंदी पखवाड़ा' शुरू किया गया। इसका उद्देश्य पुरुषों के बीच जागरूकता फैलाना, भ्रांतियों को दूर करना और इसे परिवार नियोजन का एक सुरक्षित विकल्प के रूप में स्थापित करना था।
लेकिन केवल जागरूकता अभियान पर्याप्त नहीं हैं। जमीनी स्तर पर ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
शिक्षा और सामाजिक जागरूकता-
गर्भनिरोधक जिम्मेदारी को साझा करने की सोच किशोरावस्था से ही विकसित करनी होगी। स्कूलों में संवेदनशीलता कार्यक्रम और सहकर्मी चर्चाओं के माध्यम से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि नसबंदी को सिर्फ महिलाओं की जिम्मेदारी न माना जाए।
आर्थिक प्रोत्साहन
पुरुष नसबंदी को बढ़ावा देने के लिए नकद प्रोत्साहन योजनाओं को अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है। 2019 में महाराष्ट्र में एक अध्ययन ने दिखाया कि नकद प्रोत्साहन की पेशकश के बाद ग्रामीण आदिवासी क्षेत्रों में पुरुष नसबंदी को अपनाने की दर बढ़ी। मध्य प्रदेश ने 2022 में प्रोत्साहन राशि को 50% तक बढ़ाकर सराहनीय कदम उठाया। यह अन्य राज्यों के लिए एक मिसाल बन सकता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मियों की कमी भी एक बड़ी बाधा है। सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को नो-स्केलपेल नसबंदी (NSV) जैसी आधुनिक तकनीकों के बारे में प्रशिक्षित करना होगा। जब गाँव-गाँव में उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध होंगी, तो यह प्रक्रिया अधिक लोगों द्वारा अपनाई जाएगी।
दुनिया से सबक-
दक्षिण कोरिया और भूटान जैसे देशों ने पुरुष नसबंदी को सामाजिक रूप से स्वीकृत बनाने में उल्लेखनीय प्रगति की है। दक्षिण कोरिया में पुरुष नसबंदी का प्रचलन सबसे अधिक है, जहाँ प्रगतिशील सामाजिक मानदंड और लैंगिक समानता ने पुरुषों की भागीदारी सुनिश्चित की है।
भूटान ने इस प्रक्रिया को सामान्य बनाने के लिए सामाजिक और सरकारी समर्थन प्रदान किया। पुरुष नसबंदी को लोकप्रिय बनाने के लिए वहाँ जागरूकता अभियान, उच्च गुणवत्ता वाली सेवाओं और सरकारी सहायता का उपयोग किया गया।
साझा जिम्मेदारी की ओर पहला कदम-
पुरुष नसबंदी महिलाओं की तुलना में एक सरल और सुरक्षित प्रक्रिया है। इसे अपनाने से न केवल महिलाओं की स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ कम होंगी, बल्कि समाज में लैंगिक समानता को भी बढ़ावा मिलेगा। भारत को चाहिए कि वह शिक्षा, जागरूकता, और आर्थिक प्रोत्साहन के माध्यम से परिवार नियोजन को एक साझा जिम्मेदारी के रूप में स्थापित करे। परिवार केवल महिलाओं का दायित्व नहीं है। पुरुषों की भागीदारी से परिवार नियोजन अधिक सफल और संतुलित हो सकता है।
Baten UP Ki Desk
Published : 30 November, 2024, 2:02 pm
Author Info : Baten UP Ki