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(Special Story) दुनियाभर में करोड़ों लोग किसी न किसी बीमारी से पीड़ित हैं। कोई शारीरिक बीमारी से, तो कोई मानसिक बीमारी से परेशान है। आज हम आपको एक ऐसी ही बीमारी के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें व्यक्ति को बातचीत करने में, पढ़ने-लिखने में और समाज में मेलजोल बनाने में परेशानियां आती हैं। यह एक दिमागी बीमारी होती है, जो ज्यादातर बच्चों में देखने को मिलती है। तो आइए आपको इसके बारे में विस्तार से बताते हैं।
मेडिकल की भाषा में इसे ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम कहा जाता है। दुनियाभर में बहुत तेजी के साथ ऑटिज्म के मरीजों की संख्या बढ़ रही रहै। सरल शब्दों में कहा जाए तो ऑटिज्म के शिकार लोगों का दिमाग अन्य की तुलना में काफी अलग तरीके से काम करता है। हालांकि लोग इसे शुरुआत में समझ नहीं पाते हैं। इसीलिए सामाज में ऑटिज़्म के प्रति जागरुक करने के लिए हर साल 2 अप्रैल को विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस (World Autism Awareness Day) मनाया जाता है।
इस ऑटिज्म डिसऑर्डर पर अधिक रोशनी डालते हुए राम मनोहर लोहिया हॉस्पिटल (लखनऊ) के मनोचिकित्सक डॉ. देवाशीष शुक्ल कहते हैं कि यह बीमारी गर्भवती मां के द्वारा ध्यान न दिए जाने पर उसके बच्चे में होने का खतरा बढ़ जाता है। उनके अनुसार बच्चों में शुरूआती दिनों में इस बीमारी को समझ पाना मुश्किल है। लेकिन धीरे-धीरे बच्चे के अलग विहेविअर से यह बीमारी पकड़ में आ जाती है। उनका यह भी कहना है कि अगर इस बीमारी को किसी योग्य मनोचिकित्सक द्वारा ट्रीट किया जाए तो पीड़ित की सामान्य स्थिति हो सकती है। हालांकि अभी तक इसका कोई 100 फीसदी इलाज नहीं खोजा जा सका है। वहीं दूसरी तरफ उनका कहना है कि, कुछ इस बीमारी से पीड़ित लोग जीवन में एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी हो सकते हैं।
क्या है ऑटिज्म डिसऑर्डर?
ऑटिज्म एक न्यूरोलॉजिकल स्थिति है। इसको आसान भाषा में कहें तो इस बीमारी से जुड़े व्यक्ति का दिमागी विकास अन्य की तुलना में कम होता है। इसमें व्यक्ति के व्यवहार, सोचने-समझने की क्षमता दूसरों से अलग होती है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार ऑटिज्म मुख्य रूप से 3 प्रकार का होता है। अस्पेर्गेर सिंड्रोम, परवेसिव डेवलपमेंट और क्लॉसिक ऑट। आज ऑटिज्म के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ी जरूर है, लेकिन भारत में बढ़ रहे इसके मामले भी चिंता बढ़ाते हैं। साल 2021 में पब्लिश हुई एक स्टडी के अनुसार देश में हर 68 बच्चों में से एक बच्चा ऑटिज्म से ग्रसित है, जिनमें लड़कियों के मुकाबले लड़कों की संख्या तीन गुना ज्यादा है। इससे पीड़ित शख्स को बातें समझने में कठिनाई होती है, मन ही मन बड़बड़ाते हैं, शब्दों को समझ नहीं पाते हैं,उठने-बैठने, खाने-पीने का बर्ताव भी औरों से अलग होता है।
क्या होते हैं ऑटिज्म के लक्षण?
एक रिपोर्ट के मुताबिक, छोटे बच्चों में ऑटिज्म के लक्षण जन्म के 12 से 18 सप्ताह के बाद नजर आते हैं। कुछ मामलों में ऑटिज्म ठीक हो जाता है, तो वहीं, कुछ में यह बीमारी पूरे जीवनकाल तक रह सकती है। आइए जानते हैं इसके लक्षण..
क्या हैं ऑटिज्म के कारण ?
यह बीमारी बच्चों में अनुवांशिक कारणों से हो सकती है। कई बार लेट प्रेग्नेंसी के मामलों में भी बच्चे को ऑटिज्म जैसी बीमारी हो सकती है। वहीं, जो बच्चे समय से पहले जन्म लेते हैं उन्हें भी ऑटिज्म हो सकता है। जो बच्चे लो बर्थ वेट के साथ जन्म लेते हैं उनमें भी ये समस्या आ सकती है।
क्या है विश्व ऑटिज्म दिवस का इतिहास?
संयुक्त राष्ट्र अपनी स्थापना के साथ ही विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों और कल्याण को सुविधाजनक बनाने के लिए काम कर रहा है। संस्थान द्वारा ऑटिस्टिक लोगों को सुविधाजनक जीवन देने के लिए 1 नवंबर 2007 को एक प्रस्ताव पारित किया गया था। इस प्रस्ताव में कहा गया था कि ऑटिस्टिक लोगों को भेदभाव और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जिन्हें अक्सर दुनिया द्वारा मान्यता नहीं दी जाती है। संस्थान का कहना था कि ऑटिस्टिक लोगों को समाज से जोड़ने के लिए सबसे पहले इस बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करना जरूरी है। संयुक्त राष्ट्र महासभा के इस प्रस्ताव 18 दिसंबर 2007 को इसे स्वीकार कर लिया गया। तब से हर साल 2 अप्रैल को विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस मनाया जाता है।
क्या है विश्व ऑटिज़्म दिवस 2024 की थीम?
इस साल विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस की थीम ‘एम्पावरिंग ऑटिस्टिक वॉयस’ है। इस थीम का उद्देश्य पीड़ित व्यक्तियों को अधिक समर्थन और शक्ति प्रदान करना है। ताकि वह अपने जीवन जी सकें और सफल करियर भी बनाने में सक्षम रहे।
विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस का महत्व-
आज विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस मनाया जा रहा है। इसका महत्व हमारे सामाज में विशेष है। ऑटिज्म से संबंधित विकार से जुड़े मिथकों को दूर करने और लोगों को इसके बारे में जागरूक करने के लिए विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस मनाया जाता है। इसके साथ ही लोगों को इस बारे में शिक्षित करना कि ऑटिज्म कैसे लोगों को प्रभावित करता है, इससे जुड़े भेदभाव को दूर करना भी है. ऑटिज्म से पीड़ित लोगों को समर्थित महसूस करने में मदद करना है
आप भी दे सकते हैं योगदान-
* ऑटिज्म से पीड़ित लोगों के प्रति दयालु और सहायक बनें।
* अपने समुदाय में ऑटिज्म से पीड़ित लोगों और उनके परिवारों का प्रेम करें।
* सोशल मीडिया पर ऑटिज्म जागरूकता के बारे में पोस्ट कर सकते हैं।
Baten UP Ki Desk
Published : 2 April, 2024, 1:33 pm
Author Info : Baten UP Ki