एक ऐलान, और फिर 21 महीनों का स्याह दौर, 49 साल बाद सरकार ने किया 'संविधान हत्या दिवस' का ऐलान
"भाइयों और बहनों राष्ट्रपति जी ने देश में आपातकाल की घोषणा की है। इससे आतंकित होने का कोई कारण नहीं है।" ये बातें 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ऑल इंडिया रेडियो पर देश को संबोधित करते हुए कहीं थी। उसके बाद देश एक ऐसे स्याह दौर से गुजरा कि कई अनचाही घटनाओं का गवाह बना। हाईकोर्ट में ताले लगा दिए गए और प्रेस पर भी पाबंदी लगा दी गई। यह दिन एक न भूलने वाला दिन है, जब संविधान को पूरी तरह नकार दिया गया था और भारत को जेलखाना बना दिया गया था। यह परिचय 80 के दशक की उस काली पिक्चर का महज ट्रेलर मात्र है। केंद्र सरकार ने 25 जून को 'संविधान हत्या दिवस' घोषित कर दिया है। गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार 12 जुलाई को सोशल मीडिया पर पोस्ट कर इसकी जानकारी दी।
इस घोषणा के साथ ही सरकार ने इसे औपचारिक रूप से मान्यता देने के लिए नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया है। इस दिन को यादगार बनाने का मुख्य उद्देश्य देशवासियों को 1975 में इसी दिन लगी इमरजेंसी की याद दिलाना है, जिसे भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में देखा जाता है।
गृह मंत्री अमित शाह का सोशल मीडिया पोस्ट -
सरकार के फैसले को लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, "25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने तानाशाही मानसिकता का परिचय देते हुए देश पर आपातकाल थोपकर हमारे लोकतंत्र की आत्मा का गला घोंट दिया था। लाखों लोगों को बिना किसी गलती के जेल में डाल दिया गया और मीडिया की आवाज को दबा दिया गया।"
क्या है इमरजेंसी की पृष्ठभूमि-
25 जून, 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा देश में आपातकाल लागू किया गया था। यह आपातकाल 21 महीनों तक चला और 21 मार्च, 1977 को समाप्त हुआ। इस दौरान कई नागरिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया था और अनेक विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था। प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी गई थी और देशभर में भय का माहौल था।
केंद्र सरकार का उद्देश्य-
सरकार का कहना है कि 'संविधान हत्या दिवस' घोषित करने का मुख्य उद्देश्य जनता को लोकतांत्रिक मूल्यों की सुरक्षा और संवैधानिक अधिकारों के महत्व को समझाना है। इस दिन को मनाने से आने वाली पीढ़ियों को यह संदेश मिलेगा कि किसी भी स्थिति में लोकतंत्र और संविधान का उल्लंघन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
राजनैतिक प्रतिक्रिया-
इस घोषणा पर विभिन्न राजनैतिक दलों की प्रतिक्रियाएँ आई हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस निर्णय का स्वागत करते हुए कहा है कि यह एक सही कदम है जो देशवासियों को अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक करेगा। वहीं, कांग्रेस पार्टी ने इस कदम की आलोचना करते हुए इसे राजनैतिक फायदे के लिए उठाया गया कदम बताया है।
नागरिकों की प्रतिक्रिया-
देशभर में इस घोषणा पर नागरिकों की मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। कुछ लोग इसे सरकार का सही कदम मानते हैं जबकि कुछ का कहना है कि यह सिर्फ पुराने घावों को कुरेदने का प्रयास है। कई बुद्धिजीवियों और इतिहासकारों ने इसे एक महत्वपूर्ण कदम मानते हुए कहा है कि यह दिन लोगों को इतिहास से सबक लेने और भविष्य में ऐसी गलतियों से बचने की प्रेरणा देगा।
लोकतंत्र की रक्षा के लिए हमें रहना होगा सतर्क -
केंद्र सरकार द्वारा 25 जून को 'संविधान हत्या दिवस' घोषित करना भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक महत्वपूर्ण निर्णय के रूप में देखा जा रहा है। यह दिन न केवल हमें हमारे संवैधानिक अधिकारों की याद दिलाएगा बल्कि हमें यह भी सिखाएगा कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए हमें हमेशा सतर्क रहना होगा। सरकार का यह कदम आने वाले समय में कितना प्रभावी होगा, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन एक बात तय है कि इसने एक बार फिर से इमरजेंसी के उस काले अध्याय को लोगों के सामने ला दिया है।
भारत में संविधान के तहत तीन प्रकार की आपातकालीन स्थितियाँ होती हैं:
1-राष्ट्रीय आपातकाल (National Emergency):
- इसे संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत घोषित किया जाता है।
- यह आपातकाल तब लागू किया जाता है जब देश की सुरक्षा को बाहरी आक्रमण या आंतरिक विद्रोह के कारण खतरा होता है।
- राष्ट्रपति की घोषणा के बाद संसद की स्वीकृति आवश्यक होती है।
2-राज्य आपातकाल या राष्ट्रपति शासन (President's Rule):
- इसे संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत लागू किया जाता है।
- यह आपातकाल तब लागू किया जाता है जब किसी राज्य की सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुसार कार्य करने में असमर्थ हो जाती है।
- राष्ट्रपति की घोषणा के बाद संसद की स्वीकृति आवश्यक होती है।
3-वित्तीय आपातकाल (Financial Emergency):