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वीर सावरकर रिलीज, फिल्म पर क्या है विवाद, सुभाष चंद्र बोस के पड़पोते ने क्यों जताई आपत्ति?

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(Special Story) स्वातंत्र्य वीर सावरकर आज यानि 22 मार्च 2024 को रिलीज हो गई। यह फिल्म विनायक दामोदर सावरकर के जीवन पर आधारित है। जिनको एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, क्रांतिकारी, राजनेता, वकील, सामाजिक सुधारक और लेखक के रूप में फिल्म में दिखाया गया है। इस फिल्म में रणदीप हुड्डा ने सावरकर की भूमिका निभाई है। इसके साथ ही उन्होंने  फिल्म का निर्देशन भी किया है। यह फिल्म रिलीज होने से पहले ही विवादों में घिर चुकी है। कुछ लोग फिल्म के रिलीज होने से पहले ही इसे  प्रोपेगैंडा फिल्म करार दे चुके हैं। रिलीज होने के बाद भी विवाद कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं। लोग तरह-तरह की प्रतिक्रिया दे रहे हैं। आइए जानते हैं इस फिल्म को लेकर क्या है विवाद...

बतौर डायरेक्टर पहली फिल्म- 

फिल्म को रणदीप हुड्डा ने निर्देशित किया है। यह हुड्डा के निर्देशन में डेब्यू है। फिल्म को सावरकर के जीवन के विभिन्न पहलुओं को चित्रित करने के लिए सराहा गया है, जिसमें उनकी क्रांतिकारी गतिविधियाँ, सामाजिक कार्य और राजनीतिक कैरियर शामिल हैं। हालाँकि, फिल्म को सावरकर के कुछ विवादास्पद विचारों को चित्रित करने के लिए भी आलोचना भी की जा रही है। कुल मिलाकर, स्वातंत्र्य वीर सावरकर एक अच्छी तरह से बनी फिल्म है जो एक जटिल और विवादास्पद व्यक्ति के जीवन की एक झलक प्रदान करती है। 

फिल्म वीर सावरकर पर विवाद-

सुभाष चंद्र बोस के पड़पोते चंद्र कुमार बोस ने फिल्म के एक सीन पर आपत्ति जताई है। उन्होंने मेकर्स पर सुभाष चंद्र बोस की छवि धूमिल करने का आरोप लगाया है। इस सीन में वीर सावरकर सुभाष चंद्र बोस से कहते हैं- 'जर्मनी और जापान के आधुनिक हथियारों के साथ अंग्रेजों पर हमला कीजिए। चंद्र कुमार बोस ने सोशल मीडिया पर लिखा, ‘रणदीप हुड्डा- 'सावरकर' पर फिल्म बनाने के लिए आपकी सराहना करता हूं, लेकिन कृपया 'नेताजी सुभाष चंद्र बोस' का नाम सावरकर के साथ जोड़ने से बचें। नेताजी एक धर्मनिरपेक्ष नेता और देशभक्त थे।


1-अंबेडकर की भूमिका निभाने वाले एक्टर पर बहस-

इसके साथ ही फिल्म में भीमराव अंबेडकर की भूमिका निभाने वाले एक्टर के रंग पर भी सोशल मीडिया पर बहस छिड़ी हुई है। लोगों को इस बात पर आपत्ति है कि फिल्म में भीमराव अंबेडकर के कैरेक्टर की कास्टिंग अच्छी  नहीं हुई है। लोग एक्टर का रंग-रूप देखकर इस कास्टिंग  को जातिगत एंगल दे रहे हैं।

2-ऐतिहासिक तथ्यों की गलत व्याख्या-

कुछ इतिहासकारों ने फिल्म में दर्शाए गए कुछ ऐतिहासिक तथ्यों को गलत और भ्रामक बताया है।फिल्म में सावरकर को अंग्रेजों से लड़ने वाले क्रांतिकारी के रूप में चित्रित किया गया है, जबकि कुछ इतिहासकारों का दावा है कि उन्होंने अंग्रेजों के साथ सहयोग किया था।फिल्म में सावरकर को गांधीजी की हत्या का समर्थक दिखाया गया है, जबकि इस दावे का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है।

3- सावरकर की विचारधारा का महिमामंडन-

कुछ लोगों ने फिल्म को सावरकर की हिंदुत्ववादी विचारधारा का महिमामंडन करने वाला बताया है।
फिल्म में सावरकर को मुसलमानों के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण रखने वाला दिखाया गया है, जो कि उनकी विचारधारा का एक विवादास्पद पहलू है।फिल्म में सावरकर की जातिवादी विचारधारा को भी नजरअंदाज किया गया है।

4- राजनीतिक प्रचार-

कुछ लोगों का आरोप है कि फिल्म को लोकसभा चुनावों के लिए राजनीतिक प्रचार के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। फिल्म में सावरकर को एक राष्ट्रवादी नायक के रूप में चित्रित किया गया है, जो भाजपा की विचारधारा से मेल खाता है। इसके साथ ही फिल्म के रिलीज के समय को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं।

5-अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मुद्दा-

फिल्म के विरोधियों का कहना है कि फिल्म सावरकर की आलोचनात्मक आवाजों को दबाने का प्रयास है।फिल्म के समर्थकों का कहना है कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मामला है और फिल्म को रोकना गलत होगा।

6- रणदीप हुड्डा की भूमिका-

रणदीप हुड्डा ने फिल्म में सावरकर की भूमिका निभाई है।कुछ लोगों ने हुड्डा की अभिनय की प्रशंसा की है, जबकि कुछ ने उनकी आलोचना की है। हुड्डा पर सावरकर की छवि को गलत तरीके से पेश करने का आरोप भी लगाया गया है।

क्या होती है प्रोपेगैंडा फिल्म-

प्रोपेगैंडा फिल्में उन्हें कहा जाता है जिनके माध्यम से किसी तरह का एजेंडा सेट करने या प्रोपेगैंडा दिखाने की कोशिश की जाती है। ऐसी फिल्में जिनमें देश के अहम और विवादित मुद्दे, राजनीति या राजनीति से जुड़े व्यक्ति विशेष और सरकार की नीतियों का प्रचार या किसी पार्टी का प्रचार शामिल हो। इसके अलावा धर्म, समुदाय, दंगों और जातीय हिंसा और ऐतिहासिक विषयों पर बनी फिल्में, जिनमें एक धर्म विशेष को सही और दूसरे को गलत या क्रूर दिखाया जाए, तो वो प्रोपेगैंडा या एजेंडा मूवीज कहलाती हैं।

फिल्म वीर सावरकर फिल्म रिलीज के बाद भी विवादों में घिरी हुई है। फिल्म पर ऐतिहासिक तथ्यों, सावरकर की विचारधारा और फिल्म के राजनीतिक इस्तेमाल को लेकर कई सवाल जरूर उठाए गए हैं। हलांकि कि यह दर्शक की तय करेंगे कि उनको फिल्म कैसी लगी। 

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