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(Special story) 'छोड़ दो आंचल जमाना क्या कहेगा' और 'चाहे कोई मुझे जंगली कहे' ये ऐसे गानों की पंक्तियां हैं जिनको सुनते ही हर कोई गुनगुनाने लगता है और अंदाज ऐसा कि हर सुनने वाले की जुबां पर चढ़ जाए। ये उन फिल्मों के गाने हैं जिन्हे सिनेमा का वटवृक्ष कहा जाता है जिन्होंने अपनी शानदार फिल्मों के जरिए कई बड़े स्टार्स के करियर को बुलंदियों पर पहुंचाया उस शख्शियत का नाम सुबोध मुखर्जी है। उत्तर प्रदेश के झांसी में जन्मे सुबोध मुखर्जी ऐसे निर्माता-निर्देशक थे जिनके नाम पर लोग सिनेमाघरों में खिचे चले आते थे। आइए आज उनकी पुण्यतिथि के मौके पर जानते हैं उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से।
शम्मी कपूर को दिलाई कामयाबी
सुबोध मुखर्जी जिन्हें शम्मी कपूर और देव आनंद को कामयाबी दिलाने का क्रेडिट दिया जाता है। उनका जन्म 14 अप्रैल 1921 को झांसी में हुआ था। सुबोध पढ़ाई में अव्वल थे और टेनिस में भी इनका कोई जबाव नहीं था। बचपन से फिल्में बनाने का शौक रखने वाले सुबोध अपने सपनों को पूरा करने नहीं, बल्कि मजबूरी में मुंबई पहुंचे, लेकिन टैलेंट के दम पर इन्होंने नामी फिल्ममेकर्स में अपना नाम जोड़ लिया। सुबोध मुखर्जी को स्कूल के दिनों से ही खेलों का बहुत शौक रहा। खेलों में रुचि के कारण ही लिए वे झांसी से लखनऊ आ गए। लखनऊ आकर सुबोध ने टेनिस सीखा। सिनेमा में आने के बाद भी वह खेलों से जुड़े रहे।
फिल्मी करियर का आगाज-
सुबोध ने 1955 में फिल्म 'मुनीमजी' से डायरेक्टोरियल डेब्यू किया। ये फिल्म सुपरहिट साबित हुई, जिससे देव आनंद को भी खूब कामयाबी मिली। इस फिल्म में सदबहार अभिनेता देव आनंद के साथ निरूपा रॉय और प्राण जैसे सितारों ने काम किया था। शम्मी कपूर को स्टार बनाने वाली फिल्म जंगली में भी इन्हीं का निर्देशन था।
वह फिल्म जो सबसे बड़ी हिट रही-
मुनीमजी और लव मैरिज के बाद सुबोध ने 1961 में शम्मी कपूर और सायरा बानो को लेकर एक फिल्म बनाई जिसका नाम है जंगली। यह फिल्म उस समय की सबसे बड़ी हिट फिल्म रही और इस फिल्म ने शम्मी कपूर को रातोंरात सुपरस्टार बना दिया। इस फिल्म के लिए सायरा बानो को फिल्मफेयर बेस्ट एक्टर फीमेल का पुरस्कार भी दिया गया। इसके बाद सुबोध ने फिल्म शागिर्द में भी सायरा बानो को मुख्य अभिनेत्री के तौर पर जगह दी।
मनमोहक गानों से भरी फिल्में-
सुबोध मुखर्जी की फिल्मों के गाने इतने शानदार और मनमोहक होते थे कि फिल्म रिलीज होते ही लोगो के दिलो पर छा जाते थे। इन गानों में उनकी पहली फिल्म मुनीमजी का गाना 'जीवन के सफर में राही' फिल्म पेइंग गेस्ट का गाना 'माना जनाब ने पुकारा नही' और फिल्म जंगली का शंकर जयकिशन के संगीत और मोहम्मद रफ़ी के आवाज से सजा गाना 'चाहे कोई मुझे जंगली कहे' प्रमुख हैं।
निर्देशन के अलावा लेखन में भी रूचि-
फिल्म 'शार्गिद' से लेकर 'जंगली' और 'तीसरी आंख' जैसी फिल्में आज भी दर्शक बड़े चाव से देखते हैं। सुबोध मुखर्जी निर्देशन के अलावा अपनी फिल्मों के लिए लेखन का भी काम करते थे। 'शागिर्द' उनकी लिखी हुई फिल्म है। इस फिल्म में उनके भतीजे जॉय मुखर्जी और सायरा बानो ने काम किया था।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में काटी जेल-
केवल फिल्म निर्माता होना ही उनकी पहचान नहीं है। इसके अलावा सुबोध एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थे। टेनिस का शौक पूरा करने के लिए सुबोध झांसी से लखनऊ आ गए। यहां आजादी की लड़ाई लड़ रहे लोगों के बीच उठना-बैठना शुरू किया और खुद भी स्वतंत्रता सेनानी बन गए। 1942 में अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई तो इन्हें जेल भेज दिया गया। तीन महीने तक अंग्रेजों ने इन्हें जेल में रखा। जब घर खर्च चलाने का कोई जरिया नहीं बचा तो सुबोध मुंबई पहुंच गए, जहां इनके बड़े भाई शशधर मुखर्जी फिल्मिस्तान स्टूडियो का हिस्सा थे। सुबोध भी फिल्में बनाने लगे।
मुखर्जी परिवार में हैं कई सितारे
झांसी में जन्मे सुबोध मुखर्जी बॉलीवुड के नामी-गिरामी परिवार से आते थे। फिल्म निर्माता निर्देशक सुबोध मुखर्जी एक फिल्मी परिवार से ताल्लुक रखते थे। फिल्म निर्माता शषधर मुखर्जी उनके भाई थे। यह बात कम ही लोगों को पता है कि दिग्गज अभिनेता जॉय मुखर्जी से लेकर हिंदी सिनेमा के जाने माने चेहरे देब मुखर्जी, रानी मुखर्जी, काजोल और तनीषा मुखर्जी भी सुबोध मुखर्जी के खानदान से ताल्लुक रखते हैं। प्रसिद्ध अभिनेता जॉय मुखर्जी उनके भतीजे थे।
साल 1985 में फिल्मी दुनिया को कहा अलविदा
लगभग दो दशकों तक हिंदी सिनेमा में सुबोध मुखर्जी ने फिल्म निर्माण और निर्देशन में कई नए आयाम गढ़े और हिंदी सिनेमा को एक राह दिखाई ।इन दो दशकों में उन्होंने अपनी फिल्म निर्माण की कला से हिंदी सिनेमा को एक नए मुकाम तक पहुचाया। लेकिन 70 के दशक की असफलता से सुबोध दोबारा उबर नही सके और 1985 में फिल्म 'उल्टा सीधा' बनाकर उन्होंने फिल्मी दुनिया को अलविदा कह दिया।
साल 2005 में निधन
हिंदी सिनेमा में कई बड़े अभिनेताओं और अभिनेत्रियों को पहचान दिलाने वाले सुबोध कई सालो तक ब्लड कैंसर से पीड़ित रहे। 84 साल के सुबोध मुखर्जी का निधन 21 मई 2005 को मुंबई के एक अस्पताल में हुआ। इसी के साथ उन्होने इस दुनिया और हिंदी सिनेमा को अलविदा कह दिया।
Baten UP Ki Desk
Published : 21 May, 2024, 3:16 pm
Author Info : Baten UP Ki