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वाराणसी की मसान होली जहां मृत्यु में रस है ... आनंद है... उत्सव है?

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कहते हैं जहां पर रस बना रहता है उसे ही बनारस कहते हैं। यह शहर वास्तव में अद्मुत है इसके बारे में कुछ लिखना और कहना काफी कठिन है। ऐसा शहर दुनिया में शायद ही कहीं होगा जहां मौत का उत्सव मनाया जाता हो...ऐसा सिर्फ बनारस में ही संभव है...

जिस तरह ब्रज की होली पूरे देश में प्रसिद्ध है, उसी तरह काशी में मसान की होल भी बहुत प्रसिद्ध है इसे देखने के लिए देश की नहीं विदेशों से भी लोग आते हैं। काशी में फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी के अगले दिन हर साल मसान होली मनाई जाती है। आज के दिन काशी के मणिकर्णिका घाट पर मसान होली मनाई जा रही है। मसान होली चिता की राख और गुलाल से खेली जाती है। काशी के मणिकर्णिका घाट पर साधु-संत जमकर शिव भजन गाते हैं और नाचते-गाते एक-दूसरे को मसान की राख लगाकर इसे हवा में उड़ाकर जीवन और मृत्यु का उत्सव मनाते हैं। इस दौरान पूरी काशी शिवमय हो जाती है और चारों तरफ हर-हर महादेव का नाम ही सुनाई देता है। 

शिव की बारात में आए थे भूत-प्रेत, यक्ष, गंधर्व-

पौराणिक कहानी के अनुसार भगवान शिव ने अपने विवाह के बाद सबसे पहले मसान होली खेली थी। यहीं से इसकी शुरुआत हुई थी। भगवान शिव को वैरागी माना जाता है लेकिन देवी पार्वती की घोर तपस्या, आस्था और समर्पण भाव को देखकर भगवान शिव ने देवी पार्वती का विवाह निमंत्रण स्वीकार कर लिया था। भगवान शिव ने अपने विवाह में भूत-प्रेत, यक्ष, गंधर्व और प्रेतों को भी आमंत्रित किया था। भगवान शिव के बारे में कहा जाता है कि शिव अपने भक्तों में कभी भी भेदभाव नहीं करते हैं। अगर कोई उन्हें पूरी श्रद्धा और प्रेम के साथ याद करता है, तो भगवान शिव उसे आश्रय जरूर देते हैं। इस कारण से स्नेहवश भगवान शिव ने अपने विवाह में सभी देव, असुर, भूत-प्रेतों आदि जीवों को शामिल किया था। इन सभी लोगों को शिव-पार्वती विवाह में विशेष अतिथि गण माना जाता है। वहीं, शिव के विकराल रूप को देखकर सभी लोग बहुत डर गए थे, लेकिन जब पार्वती जी ने शिव से प्रार्थना की, कि वो अपने सुकुमार के रूप में आकर इस विवाह को सम्मपन्न होने दें, तो शिव ने एक सुंदर राजकुमार का रूप ले लिया। इसके बाद भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था।

शिव ने अपने भक्तों भूत-प्रेत के साथ खेली थी होली- 

विवाह के बाद भगवान शिव और पार्वती पहली बार काशी घूमने के लिए आए थे। ऐसी मान्यता है कि इस दिन रंगभरी एकादशी थी। रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव ने देवी पार्वती को गुलाल लगाकर होली मनाई थी। इसके अगले दिन भोलेनाथ के भक्तों जिनमें भूत-प्रेत, यक्ष, पिशाच और अघोरी साधु शामिल थे, उन्होंने आग्रह किया कि भगवान शिव उनके साथ भी होली खेलें। भगवान शिव जानते थे कि शिव के ये विशेष भक्त जीवन के रंगों से दूर रहते हैं, इसलिए उनका ध्यान रखते हुए भगवान शिव ने मसान में पड़ी राख को हवा में उड़ा दिया। इसके बाद सभी विशेष शिवगण मिलकर भगवान शिव को मसान की राख लगाकर होली खेलने लगे। तब से माना जाता है काशी में मसान की राख से होली खेलने के परम्परा शुरू हुई थी।

मृत्यु का उत्सव है मसान होली-

ऐसा माना जाता है कि मसान की होली मृत्यु का उत्सव मनाने जैसा है। मसान होली इस बात का प्रतीक है कि जब व्यक्ति अपने भय को काबू में करके मृत्यु के भय को पीछे छोड़ देता है तो वह जीवन का ऐसे ही आनंद मनाता है। वहीं, चिता की राख को अंतिम सत्य माना जाता है। इससे सीख मिलती है कि व्यक्ति चाहे कितना भी अंहकार, लोभ जैसे विकारों से घिरा रहे, लेकिन अंत में उसकी जीवन यात्रा मसान में ही खत्म होनी होती है। 

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