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Subrata Roy Sahara: आखिर कैसे भारत के बड़े कारोबारी सुब्रत रॉय बने लाख से खाक

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सहारा इंडिया समूह के प्रमुख सुब्रत रॉय का मंगलवार को निधन हो गया। उन्होंने 75 साल की उम्र में मुंबई के एक निजी अस्पताल में  अंतिम सांस ली। वह लम्बें समय से गंभीर बीमारी से ग्रसित थे और मुंबई के एक निजी अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था और मंगलवार रात को उनका निधन हो गया। आज उनके पार्थिव शरीर को लखनऊ के सहारा स्टेट में लाया जाएगा, जहां उन्हें अंतिम श्रद्धांजलि दी जाएगी। माना जा रहा है कि उनके अंतिम संस्कार में राजनीतिक और फिल्मी समेत कई हस्तियां शामिल हो सकती हैं।                              

आपको बता दे कि सुब्रत रॉय सहारा इंडिया परिवार के संस्थापक थे। उन्होंने अपनी कंपनी के माध्यम से लाखों लोगों को निवेश का अवसर प्रदान किया था। एक समय ऐसा भी था जब सहारा ग्रुप को देश के सबसे ताकतवर कारोबारी घरानों में गिना जाता था। सहारा का बिजनेस रियल एस्टेट से लेकर मीडिया, हॉस्पिटैलिटी, फाइनेंशियल सर्विसेज और एयरलाइन तक फैला था। इतना ही नहीं बल्कि सहारा के पास IPL की टीम भी थी, लेकिन कहते हैं ना कि एक गलती इंसान को लाख से खाक बना देती है। ऐसा ही कुछ सुब्रत रॉय के साथ भी हुआ जिस वजह से सहारा की किस्मत ही पलट गई और सुब्रत रॉय सहारा को 3 साल जेल में बिताने पड़े। 

आखिर क्यों जाना पड़ा जेल-

दरअसल, बात साल 2010 की है, जब एक चिट्ठी ने सुब्रत रॉय के सहारा में चल रही कथिक गड़बड़ियों का सारा काला चिट्ठा खोल दिया था। 4 जनवरी, 2010 को रोशन लाल नाम के एक व्यक्ति ने नेशनल हाउसिंग बैंक को एक चिट्ठी भेजी थी। जिसमें उन्होंने लिखा था कि वह इंदौर में रहते हैं और पेशे से सीए हैं। इस चिट्ठी में उन्होंने लखनऊ के सहारा ग्रुप की दो कंपनियों सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉरपोरेशन और सहारा हाउसिंग इनवेस्टमेंट कॉरपोरेशन द्वारा जारी बॉन्ड्स की जांच करने का अनुरोध एनएचबी से किया था। उनका कहना था कि बड़ी संख्या में लोगों ने सहारा ग्रुप की कंपनियों के बॉन्ड खरीदे हैं लेकिन ये नियमों के मुताबिक जारी नहीं किए गए हैं. 

SEBI तक पहुंचा मामला-

जिसके बाद नेशनल हाउसिंग बैंक के पास इस तरह के आरोपों की जांच करने का अधिकार नहीं था, इसलिए उन्होंने यह चिट्ठी कैपिटल मार्केट रेगुलेटर SEBI को फॉरवर्ड कर दी। एक महीने बाद SEBI को अहमदाबाद की के एक एडवोकेसी ग्रुप प्रोफेशनल ग्रुप फॉर इनवेस्ट प्रोटेक्शन की तरफ से भी इसी तरह का एक नोट मिला। जिसके बाद सेबी ने 24 नवंबर, 2010 को सहारा ग्रुप के किसी भी रूप में पब्लिक से पैसा जुटाने पर पाबंदी लगा दी, और यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। कोर्ट ने मामले में सुनवाई करने के बाद सहारा ग्रुप को निवेशकों के पैसे 15 फीसदी सालाना ब्याज के साथ लौटाने का आदेश दिया। यह रकम 24,029 करोड़ रुपये थी।

अगस्त 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने दोनों कंपनियों को SEBI के साथ निवेशकों का पैसा तीन महीने के अंदर 15 फीसद ब्याज के साथ चुकाने का आदेश दिया। साथ ही सेबी को सभी ओएफसीडी धारकों की डिटेल प्रदान करने को भी कहा गया। एक समय ऐसा भी था जब सुब्रत रॉय फाइलों से भरे 127 ट्रक लेकर सेबी पहुंच गए थे। जिसमें निवेशकों की डिटेल्स थीं। लेकिन इन फाइल्स में निवेशकों की पूरी जानकारी नहीं थी, इससे मनी लॉन्ड्रिंग का शक बना रहा। सहारा सेबी को तीन महीने में 15 फीसद ब्याज के साथ पैसा जमा कराने में नाकाम रहा और साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सहारा समूह की कंपनियों ने सेबी कानूनों का उल्लंघन किया। कंपनियों ने कहा कि उन लाखों भारतीयों से पैसे जुटाए गए जो बैंकिंग सुविधाओं का लाभ नहीं उठा सकते थे। सहारा ग्रुप की कंपनियां निवेशकों को भुगतान करने में विफल रहीं, तो अदालत ने रॉय को जेल भेज दिया. वह करीब 3 साल तक जेल में रहे। छह मई 2017 को अपने मां के निधन पर वह बाहर निकले थे जिसके बाद वह दोबारा जेल नहीं गए, और उनके समय बाद में बढ़ा दिया गया।

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