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शहीद दिवस पर अमर शहीदों को नमन, साल में दो बार क्यों मनाया जाता है शहीद दिवस?

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(Special Story) देश के इतिहास में आज का दिन बेहद खास है। आज ही के दिन देश की आजादी के लिए स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी। शहीदों के सम्मान और उनके बलिदान की याद में शहीद दिवस (Martyrs' Day) हर साल 23 मार्च को मनाया जाता है। सन 1931 में आज ही के दिन अंग्रेजों ने भारत के युवा स्वतंत्रता सैनानी  भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर को फांसी पर लटकाया था। आजादी की लड़ाई में हंसते-हंसते अपनी जान कुर्बान करने वाले अमर शहीदों की याद में यह दिन मनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारे देश में साल में 2 बार शहीद दिवस मनाया जाता है ऐसा क्यों है आइए जानते हैं विस्तार से....

PM मोदी और सीएम योगी ने दी श्रद्धांजलि-

शहीद दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शहीदों को नमन करते हुए श्रद्धांजलि दी है। पीएम मोदी ने कहा है कि राष्ट्र आज मां भारती के सच्चे सपूत वीर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की शहादत को श्रद्धापूर्वक स्मरण कर रहा है। शहीद दिवस पर देशभर के अपने परिवारजनों की ओर से उन्हें नमन और वंदन करता हूं। जय हिंद! इसके साथ ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शहीद दिवस के मौके पर शहीदों को नमन करते हुए श्रद्धांजलि दी है। सीएम ने सोशल मीडिया अकाउंट पर लिखा है कि माँ भारती के सच्चे आराधक, अमर क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को उनके बलिदान दिवस पर विनम्र श्रद्धांजलि अपने अद्वितीय संघर्ष से स्वाधीनता आंदोलन को नई ऊर्जा देने वाले इन हुतात्माओं के अतुल्य त्याग और बलिदान के लिए कृतज्ञ राष्ट्र उनका सदैव ऋणी रहेगा।

क्यों मनाया जाता है शहीद दिवस?

गौरतलब है कि ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठाने और देश की आजादी की लड़ाई लड़ने के लिए भारत माता के वीर सपूत भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु महज 23 साल की उम्र में फांसी पर चढ़ गए थे। देश के लिए अपना बलिदान देने वाले इन वीर स्वतंत्रता सैनानियों की याद में हर साल 23 मार्च को शहीद दिवस मनाया जाता है। इस मौके पर विभिन्न संस्थायों और सरकारी तथा गैर सरकारी संगठनों में अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। 

भगत सिंह और उनके साथियों के बारे में जानें-

भगत सिंह का  जन्म 28 सितंबर, 1907 को पंजाब के लायलपुर में हुआ था। भगत सिंह ने अपने साथियों राजगुरु, सुखदेव, आज़ाद और गोपाल के साथ मिलकर लाला लाजपत राय की हत्या के लिए लड़ाई लड़ी। भगत सिंह अपने साहसिक कारनामों के कारण युवाओं के लिए प्रेरणा बन गये। उन्होंने और उनके साथियों ने 8 अप्रैल ,  1929  को "इंकलाब जिंदाबाद" का नारा पढ़ते हुए सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली पर  बम फेंके और इसके लिए उन पर हत्या का मामला चलाया गया। 23 मार्च, 1931  को लाहौर जेल में उन्हें फांसी दे दी गई। उनके शवों का सतलज नदी के तट पर अंतिम संस्कार किया गया।  

शहीद भगत सिंह के विचार जानिए-

  • मैं एक मानव हूं और जो कुछ भी मानवता को प्रभावित करता है उससे मुझे मतलब है।
  • जिंदगी तो अपने दम पर ही जी जाती है, दूसरों के कंधों पर तो सिर्फ जनाजे उठाए जाते हैं।
  • कानून की पवित्रता तभी तक बनी रह सकती है, जब तक वह लोगों की इच्छा की अभिव्यक्ति करे।
  • सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजु-ए-कातिल में है।
  • राख का हर एक कण, मेरी गर्मी से गतिमान है, मैं एक ऐसा पागल हूं, जो जेल में भी आजाद है।
  • इस कदर वाकिफ है मेरी कलम मेरे जज्बातों से अगर में इश्क लिखना भी चाहूँ तो इंकलाब लिखा जाता है।
  • जो भी विकास के लिए खड़ा है उसे हर चीज की आलोचना करनी होगी, उसे आत्मविश्वास रखना होगा और चुनौती देनी होगी।
  • जो नौजवान दुनिया में तरक्की करना चाहते हैं, उन्हें वर्तमान युग में महान और उच्च विचारों का अध्ययन करना चाहिए।

भारत में 2 बार मनाया जाता है शहीद दिवस-

भारत में शहीद दिवस एक नहीं, बल्कि दो बार मनाया जाता है। पहला शहीद दिवस 30 जनवरी को बापू यानि महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर मनाया जाता है, जबकि साल का दूसरा शहीद दिवस हर साल 23 मार्च को भारत के वीर सपूतों भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को समर्पित है। इस मौके पर जानते हैं शहीद दिवस का इतिहास। 

30 जनवरी को क्यों मनाया जाता है शहीद दिवस?

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 30 जनवरी , 1948 को शाम की प्रार्थना के दौरान बिड़ला हाउस में नाथूराम गोडसे द्वारा हत्या कर दी गई थी। गांधीजी एक स्वतंत्रता सेनानी, महान दृढ़ संकल्प वाले एक सरल व्यक्ति थे। एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता, कल्याण और विकास के लिए अपना जीवन दे दिया था। नाथूराम गोडसे गांधीजी को पकड़कर अपने अपराध को सही ठहराने की कोशिश कर रहा था और कह रहा था कि वह देश के विभाजन और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हजारों लोगों की हत्या के लिए जिम्मेदार हैं। उन्होंने गांधीजी को ढोंगी कहा और किसी भी तरह से अपने अपराध के लिए दोषी महसूस नहीं किया। 8 नवंबर को गोडसे को मौत की सजा सुनाई गई। 30 जनवरी को बापू ने आखिरी सांस ली और शहीद हो गए। भारत सरकार ने इस दिन को शहीद दिवस या शहीद दिवस के रूप में घोषित किया। इसीलिए भारत में साल में दो बार शहीद दिवस मानाया जाने लगा। 

 

 

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