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राष्ट्र की नि:स्वार्थ सेवा के लिए हमेशा याद किये जाएंगे श्रद्धेय 'बाबू जी', कल्याण सिंह कैसे बने हिन्दू ह्रदय सम्राट?

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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यपाल श्रद्धेय कल्याण सिंह की जयंती पर उन्हे श्रद्धांजलिअर्पित की। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मंदिर आंदोलन के अग्रदूत, राजस्थान के पूर्व राज्यपाल एवं उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री, 'पद्म विभूषण' श्रद्धेय कल्याण सिंह 'बाबूजी' की जयंती पर लखनऊ में आयोजित कार्यक्रम में उनके चित्र पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी। इसके साथ ही श्रद्धेय 'बाबूजी' को शत-शत नमन किया। इस कार्यक्रम में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, ब्रजेश पाठक, मंत्री स्वत्रंत देव सिंह, संदीप सिंह और मेयर सुषमा खर्कवाल सहित बीजेपी के कई नेता मौजूद थे। सीएम योगी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर श्रद्धेय कल्याण सिंह को याद करते हुए लिखा कि समाज और राष्ट्र की नि:स्वार्थ सेवा के लिए श्रद्धेय 'बाबू जी' को हमेशा याद किया जाएगा। एक इंटर कॉलेज के शिक्षक से लेकर सूबे के मुख्यमंत्री व राज्यपाल तक के संघर्षों भरा रहा कल्याण सिंह का सफर। अपने दम पर वे हिंदू हृदय सम्राट तक कैसे कहलाए आइए विस्तार से  जानते हैं। 

किसान परिवार से राजनीति के शिखर पर कैसे पहुंचे कल्यांण सिंह-

राममंदिर आंदोलन के सबसे बड़े चेहरे और दो बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे स्व. कल्याण सिंह की आज 92वीं जयंती है। वे बेशक दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। मगर देश की राजनीति में हिंदुत्व के नायक का खिताब उन्होंने यूं ही नहीं पाया। उन्होंने कभी पद पर बने रहने के लिए अपने उसूलों से समझौता किया और राजनीति में कभी सौदेबाजी नहीं की। मूल रूप से जिले की अतरौली तहसील के गांव मढ़ौली गांव में एक साधारण किसान परिवार में जन्मे कल्याण सिंह प्रदेश की राजनीति के शिखर पर पहुंचे। बचपन से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखाओं में जाते थे। उच्च शिक्षा हासिल कर अतरौली के एक इंटर कॉलेज में अध्यापक बने। 1967 में पहली बार अतरौली से विधायक बने और 1980 तक लगातार जीते। आपातकाल में 21 महीने तक अलीगढ़ व बनारस की जेल में रहे। जनसंघ से बीजेपी के गठन के बाद प्रदेश संगठन महामंत्री व प्रदेशाध्यक्ष तक बनाए गए। इस दौरान गांव-गांव घूमकर भाजपा की जड़ें मजबूत कीं। विशाल वट वृक्ष बन चुकी बीजेपी को कल्याण सिंह व उनके सहयोगियों ने ही शुरुआती दिनों में सींच था। जब देश में भाजपा का उभार हुआ तो 1991 में प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी तो वो मुख्यमंत्री बने। कल्याण सिंह के साथ काम कर चुके लोगों के मुताबिक उन्होंने भाजपा को खड़ा करने में दिन रात एक किया। आज उसी मेहनत का परिणाम है कि  बीजेपी इस मुकाम पर पहुंच चुकी है। 

अधूरी रह गई रामलला के दर्शन की अंतिम इच्छा-

कल्याण सिंह ने  पद पर बने रहने के लिए कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। इसी का परिणाम रहा कि अयोध्या में कार सेवकों पर गोली चलवाने से इंकर कर दिया। विवादित ढांचे के विध्वंस की नैतिक जिम्मेदारी लेत हुए उन्होंने मुख्यमंत्री पद को ठोकर मार दी और कहा कि राम मंदिर के लिए एक नहीं सैकड़ों सत्ता कुर्बान हैं। हालांकि, अयोध्या के निर्माणाधीन मंदिर में विराजमान रामलला के दर्शन करने की उनकी इच्छा अधूरी रह गई। 89 वर्ष की उम्र में 21 अगस्त 2021 की देर शाम बीमारी के चलेत उनका लखनऊ में देहांत हो गया। और अब 22 जनवरी को भव्य राम मंदिर में रामलला विराजमान होंगे लेकिन उनकी भगवान राम को अपने मंदिर में देखने की इच्छा अधूरी ही रह गई। 

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