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"राजनीति एक ऐसी समावेशी प्रक्रिया है। जिसमें नेता को जनता की सूक्ष्म छलनी से गुजरना होता है। जिसके चलते बदलते परिदृश्य में हर राजनेता को निरंतर संघर्ष, श्रम के जरिये और जनता के परीक्षण में पास होकर जनभावनाओं से और जन आकांक्षाओं से जुड़ना पड़ता है।" यह पंक्तिया महज एक उद्धरण नहीं है बल्कि वह सच्चाई है जिसे भारतीय संविधान ने DPSP की तरह खुद में समावेशित किया है। इतना ही नहीं भारतीय निर्वाचन आयोग ने भी इस आदर्श को अपना रखा है। आयोग भी उसी दल को मान्यता देता है जिसे कम से कम कुछ प्रतिशत जनता अपना नेता मानती हो। अब तक तो आप समझ ही चुके होंगे कि किस मुद्दे पर बात चल रही है। दरअसल हाल ही में केंद्रीय चुनाव आयोग ने कुछ पार्टियों को राष्ट्रीय दल की मान्यता दी है तो कुछ दलों से राज्य पार्टी भी बनने का अधिकार छीन लिया गया है। आइये जानते हैं कि पूरे मामले में क्या हुआ है।
चुनाव आयोग ने देशभर में 6 % से कम वोट शेयर होने के चलते तृणमूल कांग्रेस, NCP और CPI से नेशनल पार्टी का दर्जा वापस ले लिया है जबकि आम आदमी पार्टी यानी AAP को राष्ट्रीय पार्टी का तमगा प्रदान किया गया है। इस प्रकार अब देश में BJP, BSP कांग्रेस, माकपा, NPP और AAP यानी कुल 6 राष्ट्रीय पार्टियां हैं। राष्ट्रीय लोक दल यानी रालोद से यूपी की राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा वापस ले लिया गया है। रालोद के अलावा आंध्र प्रदेश से बीआरएस, मणिपुर से पीडीए, पुडुचेरी से पीएमके, बंगाल से आरएसपी व मिजोरम से एमपीसी का भी राज्य पार्टी का दर्जा ख़तम कर दिया गया है।
कैसे बनती है नेशनल या राज्य पार्टी
दरअसल राष्ट्रीय पार्टी बनने के लिए तीन नियम बनाये गए हैं। जिसमें किसी एक नियम को पूरा करना जरुरी है।
अगर AAP की बात करें तो यह पार्टी पहले 3 राज्यों यानी दिल्ली, पंजाब और गोवा में 6% से ज्यादा वोट शेयर हासिल कर चुकी है। अभी गुजरात में इसे 13% के करीब वोट मिलने से यह राष्ट्रीय पार्टी के नॉर्म्स पूरे कर चुकी है। जिसके चलते इसे मान्यता मिल गयी।
अब राज्य स्तर के दल की बात करें तो इसके लिए भी कुछ शर्ते रखी गयी है जिसमें मान्यता पाने के लिए कोई एक शर्त पूरी करनी होती है- इसमें शर्त के मुताबिक किसी दल को मान्यता के लिए-
मान्यता के लाभ
अब आपका यह ख्याल भी जायज है कि इस तरह की मान्यता के लिए राजनीतिक पार्टियां इतना परेशान क्यों होती है। दरअसल इस मान्यता से पार्टियों को कई लाभ और विशेषाधिकार मिलते हैं। जैसे मान्यता प्राप्त पार्टियों का सिंबल देशभर में आरक्षित रहता है। चुनाव प्रचार के दौरान इन्हे अधिकतम 40 स्टार प्रचारक रखने की इजाजत होती है जिनके यात्रा खर्च को उम्मीदवार के चुनाव खर्च में भी नहीं जोड़ा जाता है और तो और आम चुनावों के दौरान राष्ट्रीय पार्टियों को आकाशवाणी पर प्रसारण के लिए ब्रॉडकास्ट और टेलीकास्ट बैंड्स भी मिलते हैं। दिल्ली में पार्टियों को सब्सिडी दर पर पार्टी अध्यक्ष और पार्टी कार्यालय के लिए एक सरकारी बंगला किराए पर मिलता है। जहाँ अन्य पार्टियों को 2 प्रस्तावक चाहिए होते हैं वहीँ राष्ट्रीय पार्टियों को नामांकन दाखिल करने के लिए केवल एक प्रस्तावक की जरूरत पड़ती है।
Baten UP Ki Desk
Published : 12 April, 2023, 12:33 pm
Author Info : Baten UP Ki