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यूपी की अर्थव्यवस्था के लिए कितनी जरूरी है शराब ?

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(Special Story) उत्तर प्रदेश में नई आबकारी नीति (New Excise Policy) लागू होने के बाद घमासान मचा हुआ है। विपक्ष के साथ ही सत्तापक्ष के सांसद भी योगी सरकार की नई आबकारी नीति पर सवाल खड़े कर रहे हैं। सरकार की नई आबकारी नीति में ऐसा क्या है जिस पर विपक्ष को घोर आपत्ति है। राज्य के राज्यव के लिए शराब कितनी जरूरी है इसे विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं।  

नई आबकारी नीति पर बवाल क्यों-

सीएम योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में नई आबकारी नीति 2024-25 को मंजूरी दी गई है। जिसके तहत अब उत्तर प्रदेश के रेलवे स्टेशन और मेट्रो स्टेशन पर एयरपोर्ट की तर्ज पर प्रीमियम ब्रांड की शराब बिक सकेगी। सरकार की तरफ से इस बार आबकारी विभाग को 50 हज़ार करोड़ के राजस्व का लक्ष्य दिया गया है। नई आबकारी नीति के मुताबिक़, योगी सरकार ने अब अंग्रेजी शराब, बियर, भांग, मॉडल शॉप की दुकानों की वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए वार्षिक लाइसेंस फीस 10 प्रतिशत बढ़ा दी है। देसी शराब की लाइसेंस फीस 254 रुपये प्रति लीटर और ड्यूटी 30 रुपये से बढ़ाकर 32 रुपये प्रति लीटर तय की गई है।

हंगामा क्यों है बरपा-

योगी सरकार की नई आबकारी नीति को लेकर सियासी घमासान मचा हुआ है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपने आधिकारिक एक्स हैंडल पर लिखा है कि ‘यूपी की भाजपा सरकार के पास 1 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए क्या एक रास्ता बचा है, कि शराब रेलवे, मेट्रो स्टेशन व क्रूज़ पर बेची जाय। इसका मतलब यह हुआ कि लाखों-करोड़ों के निवेश के जो दावे किये गए थे, वो सब झूठे साबित हुए हैं, तभी तो सरकार ऐसे अनैतिक रास्तों को अपना रही है। उन्होंने कहा कि ‘आज शराब बिक रही है, कल को और भी मादक पदार्थ सार्वजनिक जगहों पर बेचे जाएंगे। इसके अलावा अक्सर अपनी बयानबाजी को लेकर चर्चा में रहने वाले पीलीभीत से बीजेपी सांसद वरुण गांधी ने भी एक्स पर सवाल पूछते हुए लिखा है कि ‘क्या ‘रामराज्य’ में सरकार के पास राजस्व बढ़ाने के लिए इससे (शराब से) बेहतर विकल्प नहीं है?’सरकार के सार्वजनिक जगहों पर शराब बेचने की मंजूरी पर सबसे ज्यादा सवाल उठाए जा रहे हैं। 

यूपी में नहीं महंगी होगी शराब-

उत्तर प्रदेश में शराब के शौकीनों के लिए राहत की खबर है। यूपी में नई आबकारी नीति (New Excise Policy) लागू होने के बाद प्रदेश में ना सिर्फ कंट्री मेड शराब की कीमतों में कमी आएगी, बल्कि सरकार के खजाने को भी समृद्ध किया जा सकेगा। प्रदेश के आबकारी आयुक्त सेंथिल पांडियन सी ने नई आबकारी नीति को स्पष्ट करते हुए कहा कि राज्य में कंट्री मेड शराब की विभिन्न कैटेगरीज को संक्षिप्त करते हुए इन्हें अब केवल 4 हिस्सों में बांटा गया है। पहले ये 9 कैटेगरी में होती थीं और इनके दाम भी अलग-अलग होते थे।  शराब की कीमतों में कमी लाने का सबसे बड़ा कारण यूपी में ग्रेन अल्कोहल को बढ़ावा देने की नीति है। नई आबकारी नीति में राजस्व बढ़ाने के उपाय किए जाने के बावजूद शराब के रेट में कोई बढ़ोतरी नहीं होगी, बल्कि अनाज से बनाई जाने वाली 42.8 प्रतिशत तीव्रता वाली देशी शराब पहले जहां 90 रुपये की मिलती थी उसके दाम घटकर 85 रुपए हो जाएंगे। यह जानकारी आबकारी आयुक्त द्वारा दी गई है। 

यहां बैठकर पी सकेंगे बीयर-

राज्य की फुटकर की दुकानों में अगर 100 वर्गमीटर अलग से जगह है, तो 5000 रूपए का शुल्क देकर लाइसेंस धारक वहां बैठने का भी इंतजाम कर सकेगा। इसके लिए जिलाधिकारी के अप्रूवल के लिए जिला आबकारी अधिकारी द्वारा अनुमति दी जाएगी। लेकिन इस परमिट रूम में कैंटीन की सुविधा की अनुमति नहीं होगी।

नई नीति के नियम व प्रावधान-

किसी बार के लाइसेंस परिसर से संबंधित भवन के दूसरे परिसर, टेरेस में लाइसेंसी द्वारा अतिरिक्त बार काउंटर की स्थापना भी की जा सकेगी। इसके लिए अनुमति लेनी होगी। इसके लिए बार लाइसेंस फीस का 25 प्रतिशत या ढाई लाख रूपए का शुल्क देना होगा। इतना ही नहीं इस नई नीति में यह भी प्रावधान किया गया है कि पुलिस या कोई अन्य एजेंसी अब बिना आबकारी विभाग की अनुमति के किसी भी शराब, भांग या बियर की दुकान बंद या सील नहीं करा सकेंगी और न ही बिना अनुमती के दुकान का निरीक्षण कर सकेगी। 

दुनिया के शीर्ष ब्रांड भी यूपी  में  ले सकेंगे फ्रेंचाइजी-

नई नीति में ऐसे कई प्रावधान किये गए हैं जिससे दुनिया में शराब के शीर्ष ब्रांड उत्तर प्रदेश में फ्रेंचाइजी स्थापित कर सकेंगे, इसके अलावा प्रदेश में अनाज से बनने वाली शराब के उत्पादन को बढ़ावा देने से उप्र की अन्य राज्यों पर निर्भरता कम होगी। आपको बता दें कि अनाज अल्कोहल, जिसे न्यूट्रल स्प्रिट या एथिाइल अल्कोहल के रूप में भी जाना जाता है। यह एक प्रकार का अल्कोहलिक पेय है जो जौ, मक्का या राई जैसे किण्वित (fermented) अनाज से बनाया जाता है। इस ग्रेन अल्कोहल से शराब बनाने से शराब सस्ती होगी। ग्रेन अल्कोहल से बनने वाली शराब को अच्छा भी माना जाता है। आबकारी आयुक्त सेंथिल पांडियन सी. बताते हैं कि बीयर निर्यात फीस को भी 50 पैसे प्रति लीटर कम किया गया है, जिससे प्रदेश को बियर निर्यात के क्षेत्र में और मजबूत स्थिति में लाया जा सके। सेंथिल पांडियन सी. ने बताया कि सरकार शीरे वाली शराब की जगह अनाज से बनने वाली शराब को बढ़ावा दे रही है। दुनियाभर में अनाज से तैयार की जाने वाली शराब को सबसे ज्यादा गुणवत्तायुक्त माना जाता है। पहले अनाज वाली शराब को पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों से मंगाना पड़ता था, वहीं अब इनका निर्माण प्रदेश में ही हो रहा है। ऐसे में इस पर लगने वाली ड्यूटी तो बच ही रही है, जीएसटी में भी कमी आई है।

यूपी को शराब से मिला रिकॉर्ड राजस्व-

आबकारी विभाग द्वारा जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक यूपी ने  वर्ष 2022-23 में शराब से रिकॉर्ड राजस्व हासिल किया है। विभाग द्वारा रू. 41252.24 करोड़ राजस्व प्राप्त किया गया है जो अब तक का सर्वाधिक वार्षिक राजस्व है। संजय आर. भूसरेड्डी, अपर मुख्य सचिव, आबकारी के मुताबिक यह गतवर्ष प्राप्त 2 राजस्वर रू. 36,321.12 करोड़ से 4,931.12 करोड़ अर्थात् 13.58 प्रतिशत अधिक है। इसी क्रम में सेंथिल पांडियन सी., आबकारी आयुक्त, उत्त र प्रदेश द्वारा बताया गया कि आबकारी विभाग नकली शराब के उत्पादन पर पूरी तरह से नकेल कस चुका है और पिछले वित्तीय वर्ष में अवैध शराब के सेवन से अप्रिय घटना नहीं हुई हैं।

संविधान के तहत शराब से जुड़े नियम-

संविधान के भाग 4 में नीति निर्देशक सिद्धांतों का वर्णन किया गया है। इसकी अवधारणा आयरिश संविधान से आई है। नीति निर्देशक सिद्धांतों के तहत ही अनुच्छेद 47 का जिक्र किया गया है। इसके मुताबिक, सरकार का यह कर्तव्य है कि वह लोगों के पोषण स्तर और जीवन स्तर को ऊपर उठाने और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार लाने के लिए काम करें। यहीं से किसी भी राज्य सरकार को यह अधिकार मिलता है कि वो मादक पदार्थों, स्वास्थ्य के लिए हानिकारक औषधियों, औषधीय प्रयोजनों से भिन्न, उपभोग पर रोक लगा सकती है। 
हालांकि कुछ जानकारों का मानना है कि अनुच्छेद 47 शराब उपभोग पर सीधे तौर पर प्रतिबंध नहीं लगाता है, बल्कि ये राज्य को केवल उस दिशा में कोशिश करने के लिए कहता है। इसके पीछे तर्क यह दिया जाता है कि नीति निदेशक सिद्धांत बाध्यकारी प्रकृति के नहीं होते हैं। इसीलिए अनुच्छेद 47 के तहत राज्य इस बात के लिए बाध्य नहीं है कि वो शराब या अन्य मादक पदार्थों के उपभोग को प्रतिबंधित ही कर दे। 

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