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"दसवीं" नाम की मूवी का ज्वलंत उदाहरण- यूपी में 52 साल की उम्र में 12वीं पास हुए भाजपा के पूर्व विधायक

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साल 2022 में एक फिल्म आई थी जिसमें आठवीं पास एक राजनेता को दसवीं कक्षा पास करने के लिए कड़ी मेहनत और वापस किताबों की दुनिया में जाते हुए देखा गया था। इस फिल्म का नाम ही दसवीं था। फिल्म में एक मंझे हुए राजनेता को हाई स्कूल की परीक्षा पास करने के लिए कुछ वक्त अपनी कुर्सी से भी समझौता करना पड़ा था। अंत में फिल्म ने यह सबक दिया था कि अगर चाह हो तो सब कुछ मुमकिन होता है। ऐसी ही एक कहानी है उत्तर प्रदेश में बरेली के एक पूर्व विधायक की जिन्होंने यह साबित कर दिया है कि जीवन में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो उम्र मायने नहीं रखती। यही वजह है कि आज उनकी चर्चा न केवल बरेली बल्कि पूरे यूपी में हो रही है।

दरअसल, हाल ही में उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद ने 10वीं और 12वीं के रिजल्ट घोषित किए हैं। इसमें बरेली के बिथरी चैनपुर विधानसभा से भारतीय जनता पार्टी के पूर्व विधायक राजेश मिश्रा उर्फ़ पप्पू भरतौल ने भी बाजी मार ली है। उन्होंने 52 साल की उम्र में इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर अच्छे अंक हासिल कर लिए हैं। 

अंक को लेकर निराश हुए पूर्व विधायक

पूर्व विधायक राजेश मिश्रा की इस सफलता पर उनके दफ्तर में लोगों ने जमकर मिठाइयां बांटी लेकिन वे खुद तीन सब्जेक्ट में थोड़े कम अंक आने पर निराश हैं। हालांकि एक विषय में उन्हें उनकी उम्मीद से ज्यादा नंबर प्राप्त हुए हैं और दो अन्य विषय में उन्हें और अच्छा करने की उम्मीद थी। इसलिए उनकी कुछ शिकायते यूपी बोर्ड से भी हैं। वह कहते हैं कि मैं बोर्ड से अपील करूंगा कि उनकी कॉपी को फिर से चेक किया जाए क्योंकि मेरे पेपर अच्छे गए थे। अगर मेरी कॉपी दोबारा चेक होती है तो मैं फर्स्ट डिवीज़न से पास हो सकता हूं। 

कौन हैं राजेश मिश्रा 

राजेश मिश्रा उर्फ़ पप्पू भरतौल साल 2017 में विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर बिथरी चैतपुर से विधायक चुने गए थे। इसके बाद साल 2022 में भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया। 2 साल पहले उन्होंने विधायक रहते हुए 10वीं पास की थी लेकिन वह चर्चा में तब आये जब उनकी बेटी ने प्रेम विवाह किया।

आर्थिक तंगी के चलते छोड़ दी पढ़ाई 

पूर्व विधायक राजेश मिश्रा ने 37 साल पहले कक्षा 9वीं की पढ़ाई की थी लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी। उस वक्त उन्हें खेती का काम भी संभालना पड़ता था। इसके चलते उन्होंने पढ़ाई-लिखाइ छोड़ राजनीति शुरू कर दी। राजनीति में आने के बाद उन्होंने स्कूलों के लिए कई काम किए जिसके बाद उन्हें एजुकेशन के सही मायने समझ में आए।

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