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यूपी के किसानों को सरकार ने इस फसल के बीज पर दी 50 फीसदी की छूट, भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए वरदान है ये फसल

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उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने किसानों के हित में एक और महत्वपूर्ण कदम उठाया है। राज्य सरकार ने ढैंचे की फसल के बीज पर 45 रुपये प्रति किलो की छूट देने की घोषणा की है। इस निर्णय से राज्य के किसानों को बड़ी राहत मिलेगी और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। अभी ढैंचे के बीज की कीमत 90 रुपये प्रति किलोग्राम है। राज्य सरकार के इस कदम का मुख्य उद्देश्य किसानों को सस्ती दरों पर ढैंचा उपलब्ध कराना है, ताकि वे अपनी जमीन की उर्वरता बढ़ा सकें और रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम कर सकें।

ढैंचा बोने के लिए सरकार कर रही प्रोत्साहित-

किसानों को ढैंचे की फसल बोने के लिए सरकार प्रोत्साहित कर रही है और इस पर 50 प्रतिशत की सब्सिडी भी दी जा रही है। क्योंकि ढैंचा एक महत्वपूर्ण हरी खाद फसल है, जिसका  उपयोग मुख्य रूप से मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने और जैविक कृषि में किया जाता है। इस फसल की बुवाई से न केवल मिट्टी की गुणवत्ता सुधरती है, बल्कि फसलों की पैदावार में भी वृद्धि होती है। इसके अलावा, ढैंचे की फसल से मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ती है, जिससे रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता कम होती है।

ढैंचे की फसल लगाने से क्या होता है लाभ?

मृदा की उर्वरा शक्ति प्राकृतिक रूप से बढ़ाने को लेकर वैज्ञानिक नए-नए शोध कर रहे हैं। कृषि विज्ञानियों के अनुसार, भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए हरी खाद का प्रयोग किसानों के लिए एक वरदान है। हरी खाद के रूप में ढैंचा की फसल से मृदा में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा में वृद्धि होती है। इससे फसल का उत्पादन बढ़ता है और भूमि की उर्वरा शक्ति भी बनी रहती है।

हरी खाद के रूप में इस्तेमाल करने की प्रक्रिया?

हरी खाद के रूप में ढैंचा के प्रयोग से मिट्टी में पोषक तत्व कार्बनिक पदार्थ की मात्रा में वृद्धि होती है। ढैंचे की फसल में 20 से 25 दिनों के बाद से पौधों में गांठें बननी शुरू हो जाती हैं। इससे नाइट्रोजन का स्थिरीकरण होता है। फसल की 45 दिन की अवस्था होने पर इसकी जड़ों में बनीं गांठों की संख्या अधिकतम होती है। ऐसे में किसानों को कृषि वैज्ञानिक सलाह देते हैं कि जब ढैंचा की फसल 40 से 45 दिन की हो जाए, उस समय फसल को मिट्टी में मिला देना चाहिए। यही सर्वोत्तम समय होता है। खेतों में रबी फसल की कटाई और खरीफ फसल की बोआई के बीच का समय ढैंचा की हरी खाद के लिए सर्वोत्तम होता है। इस दौरान खेत अमूमन खाली रहते हैं तथा किसान आसानी से इसकी खेती कर खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ा सकते हैं।

क्या दी किसानों ने प्रतिक्रिया?

किसानों ने सरकार के इस कदम की सराहना की है। मेरठ के एक किसान, राजेश कुमार ने कहा, "ढैंचा की फसल पर छूट से हमें बहुत मदद मिलेगी। इससे न केवल हमारी मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार होगा, बल्कि हमारी लागत भी कम होगी। सरकार का यह कदम वास्तव में किसानों के लिए एक बड़ी राहत है।"

क्या कहती है कृषि विशेषज्ञों की राय?

कृषि विशेषज्ञों ने भी इस पहल की प्रशंसा की है। कृषि वैज्ञानिक डॉ. अनिल वर्मा ने बताया, "ढैंचा की फसल पर छूट देने से किसानों को लाभ होगा और उनकी उत्पादकता में वृद्धि होगी। यह निर्णय किसानों की आय में सुधार और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में सहायक होगा।"

योजनाओं का लाभ उठाने के तरीके?

सरकार ने इस योजना का लाभ उठाने के लिए एक सरल प्रक्रिया भी निर्धारित की है। किसानों को अपने निकटतम कृषि केंद्र या सरकारी पोर्टल पर जाकर पंजीकरण कराना होगा। इसके बाद, उन्हें रियायती दर पर ढैंचा के बीज प्राप्त होंगे।

क्या हैं सरकार की भविष्य की योजनाएं?

इस कदम के बाद, सरकार ने संकेत दिए हैं कि वे भविष्य में भी किसानों के हित में अन्य योजनाएं और कार्यक्रम लाने पर विचार कर रही है। कृषि मंत्री सुरेश राणा ने कहा, "हमारी सरकार किसानों की भलाई के लिए लगातार प्रयासरत है। इस योजना के माध्यम से हम चाहते हैं कि हमारे किसान खुशहाल और संपन्न बनें।"

किसानों को सशक्त बनाने का मार्ग 

योगी सरकार का यह निर्णय न केवल किसानों के लिए आर्थिक रूप से लाभदायक है, बल्कि यह पर्यावरण की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। ढैंचा की फसल से मिट्टी की उर्वरता में सुधार होगा और रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता कम होगी, जिससे पर्यावरण पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इस योजना से राज्य के किसानों को सशक्त बनाने और उनकी आय में वृद्धि करने का मार्ग प्रशस्त होगा।

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