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नहाय-खाय के साथ आज से शुरु हुआ छठ पूजा पर्व, जानिए कैसे हुई छठ पूजा की शुरुआत

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आज देशभर में नहाय- खाय के साथ छठ पूजा की शुरुआत हो गई है और हर साल की इस साल भी छठ पूजा त्योहार लखनऊ बड़ी धूमधाम से मनाया जाएगा। जिसकी पूरी तैयारी हो चुकी है। बता दे कि इस साल फिर गोमती नदी के किनारे छठ पूजा का आयोजन किया जाएगा। यह आयोजन लक्ष्मण घाट मैदान पर होगा और कार्यक्रम में सीएम योगी उपस्थित रहेंगे। यह पर्व 4 दिनों का होता है और इस बार छठ 20 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन किया जाएगा।

20 नवम्बर को छठ पूजा का होगा समापन-

आपको बता दे कि छठ पूजा एक हिंदू पर्व है जो सूर्य देव और छठी मैया की पूजा करने के लिए मनाया जाता है। छठी मैया को संतान प्राप्ति की देवी माना जाता है। जिन लोगों के परिवार में संतान नहीं होती है, वे पुत्र प्राप्ति के लिए छठ पूजा करते हैं। छठ पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है। इस साल छठ पूजा 19 नवंबर को है। इसका प्रारंभ 17 नवंबर को नहाय खाय से होता है और 18 नवंबर को खरना होगा है। खरना यानी लोहंडा छठ पूजा का दूसरा दिन होता है। इस दिन का सूर्योदय सुबह 06 बजकर 46 मिनट पर और सूर्यास्त शाम 05 बजकर 26 मिनट पर होगा।

छठ पूजा का तीसरा दिन संध्या अर्घ्य का होता है। इस दिन छठ पर्व की मुख्य पूजा की जाती है। तीसरे दिन व्रती और उनके परिवार के लोग घाट पर आते हैं और डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इस साल छठ पूजा का संध्या अर्घ्य 19 नवंबर को दिया जाएगा। 19 नवंबर को सूर्यास्त शाम 05 बजकर 26 मिनट पर होगा। चौथा दिन छठ पर्व का अंतिम दिन होता है। इस दिन उगते सूर्य उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और पारण करने के बाद छठ पूजा का समापन किया जाता है। इस दिन सूर्योदय 06 बजकर 47 मिनट पर होगा। 

छठी मैया की पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, राजा प्रियंवद को कोई संतान नहीं थी। शादी के काफी साल बाद भी उन्हें पुत्र प्राप्ति नहीं हुई इस बात पर उनकी पत्नी मालिनी दुखी रहती थीं। जिसके बाद एक दिन वे कश्यप ऋषि के पास पहुंचे और अपने मन की व्यथा बताई। तब ऋषि ने राजा प्रियंवद से  पुत्र सुख पाने के लिए एक यज्ञ करने को कहा।  और ऋषि के सुझाव को मानकर राजा ने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ पूरे विधि विधान से  यज्ञ पूर्ण किया। उसके बाद रानी मालिनी को यज्ञ का खीर प्रसाद के रूप में ग्रहण करने को दिया गया। उस यज्ञ और प्रसाद के शुभ प्रभाव से रानी मालिनी गर्भवती हो गईं। इस खबर को पाकर राजा समेत पूरे प्रजा में खुशी का माहौल था जिसके बाद समय पूर्ण होने पर रानी ने एक सुंदर से पुत्र को जन्म दिया। लेकिन वैद्य ने बताया कि पुत्र मृत पैदा हुआ है। इससे राजा प्रियंवद और भी दुखी हो गए। वे उस पुत्र के शव को लेकर श्मशान गए और पुत्र के वियोग में स्वयं के प्राण देने का भी फैसला कर लिया।

जैसे ही वे अपने प्राण त्यागने के लिए आगे बढ़े, वैसे ही देवी देवसेना प्रकट हुईं। उन्होंने राजा प्रियंवद को प्राण त्यागने से रोका और कहा कि उनका नाम षष्ठी है।  तुम देवी षष्ठी की पूजा करो और अपनी प्रजा को भी इसके लिए प्रेरित करो। देवी षष्ठी की आज्ञा से राजा प्रियंवद राजमहल में आ गए। फिर उन्होंने पुत्र प्राप्ति के उद्देश्य से कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि को छठ पूजा की और व्रत रखा। छठी मैया की कृपा से उनको पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। उसके बाद से हर साल राजा प्रियंवद के राज्य में छठ पूजा होने लगी। 

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