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हमारे देश में बहुत से ऐसे लोग हैं जो ठण्ड के दिनों में अपनी कई रातें बाहर फुटपाथों पर बीता रहे हैं। ना ही उनके पास कुछ पहनने को है और न ही ठंड से बचने के लिए कोई साधन। लेकिन आप सोचिये की अगर ठंड में उन्हें एक पतली सी चादर या गर्म कपड़े मिल जाये तो यह उनके लिए किसी संजीवनी से कम नहीं होगा। तो आपको बता दें ठंड में रात गुजारने वाले बेसहारा लोगों तक मदद पहुंचाने के उद्देश्य से इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सर सुंदर लाल (SSL) हॉस्टल के छात्र ने “कपड़ा बैंक” की शुरुआत की है। इस बैंक की शाखाएं सभी हॉस्टल, चंद्रशेखर आजाद पार्क, सुभाष चौराहा, हिंदू हॉस्टल जैसे प्रमुख स्थानों पर खोली गई हैं।
2018 में शुरू हुई मुहिम, आज बन चुका है अभियान-
चलिए अब जानते है कपड़ा बैंक की शुरुवात कब से हुई।सर सुंदर लाल छात्रावास के कमरा नंबर 72 के छात्र नितिन कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि इस कपड़ा बैंक की शुरुआत 2018 में हमारे सीनियर्स ने की थी। इसके बाद हम जैसे छात्र भी इस नेक मुहिम का हिस्सा बन गये। इसमें हम बाजार से कार्डबोर्ड खरीदते हैं और उस पर आकर्षक दिल को छू लेने वाले नारे लिखते हैं। इनपर कपड़ा बैंक के लिए पोस्टर चिपका कर तैयार करते हैं। इसके बाद हम इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हर हॉस्टल में, छात्रसंघ भवन पर एक एक कपड़ा बैंक यानी स्लोगन लिखे गत्तों को रख देते हैं। साथ ही शहर के प्रमुख भीड़भाड़ वाले चौराहों जैसे सिविल लाइंस सुभाष चौराहा, हिंदू हॉस्टल चौराहा, हनुमान मंदिर चौराहा पर एक एक कार्टून को रख देते हैं। इसके बाद अपने पुराने पहनने योग्य कपड़े दान करने की अपील करें।
फ़ोन कॉल के माध्यम से भी दान कर सकते हैं कपड़े-
नितिन ने बताया कि हम हर कार्टून पर अलग-अलग छात्रों के फोन नंबर्स भी लिखकर छोड़ते हैं। जो लोग कपड़ा बैंक में खुद जाकर कपड़ा नहीं डालना चाहते हैं, वे हमें फोन कर घर से कपड़ा उठाने की अपील करते हैं। हम छात्र अपने सीनियर्स के दो पहिया वाहनों से या फिर ई-रिक्शा करके जाते हैं और घरों से लोगों के पुराने कपड़े उठाकर कपड़ा बैंक में जमा करते हैं। बीच-बीच में जाकर यह देखते हैं कि कपड़ा बैंक यानी हमारा कार्टून फुल तो नहीं हो गया है। अगर कार्टून भर जाता है तो उसे उठाकर हम छात्रावास में ले आते हैं।
हर उम्र के हिसाब से कपड़े अलग किये जाते है।
कपड़ा बैंक में एकत्र किए गए कपड़ों को हम छात्र अलग अलग करते हैं। बच्चों के कपड़े अलग और बड़ों के अलग किए जाते हैं। महिलाओं के कपड़े भी अलग किए जाते हैं। इसके बाद रात में निकलकर हम उन स्थानों पर जाते हैं जहां गरीब खुले आसमान या आश्रय स्थलों में सोते हैं। जैसे रेलवे पुल के नीचे, बस अड्डों, ओवर ब्रिज के नीचे, झुग्गी-झाेपड़ी के पास जाकर जरूरतमंदों को ये कपड़े पैकेट में दान कर देते हैं।
Baten UP Ki Desk
Published : 9 December, 2023, 5:40 pm
Author Info : Baten UP Ki