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ज्ञानवापी के बाद अब श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह परिसर का होगा सर्वे, जानिए आगे क्या होगा?

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(Special Story) वाराणसी के ज्ञानवापी के सर्वे के बाद अब मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवादित परिसर का सर्वे कराया जाएगा। इसके लिए आज यानी गुरुवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया है। हिंदू पक्ष की याचिका को स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने सर्वे के लिए कोर्ट कमिश्नर नियुक्त करने का आदेश दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष यानी वक्फ बोर्ड की उन दलीलों को खारिज कर दिया है जिसमें उन्होंने याचिका को सुनने योग्य नहीं होने का दावा किया था। आइए विस्तार से जानते हैं पूरे मामले को....

18 में से 17 याचिकाओं पर हुई थी सुनवाई-

आपको बता दें कि हाईकोर्ट के जस्टिस मयंक कुमार जैन की सिंगल बेंच ने यह फैसला सुनाया। 16 नवंबर को इस अर्जी पर सुनवाई के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस दिन विवादित परिसर की 18 याचिकाओं में से 17 पर सुनवाई हुई थी। ये सभी याचिकाएं मथुरा जिला अदालत से इलाहाबाद हार्टकोर्ट में सुनवाई के लिए शिफ्ट हुईं थीं। 

कोर्ट कमिश्नर की टीम जुटाएगी साक्ष्य-

अब श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह के 13.37 एकड़ विवादित जमीन का कोर्ट कमिश्नर सर्वे करेंगे। यह सर्वे वाराणसी की ज्ञानवापी में मई 2021 में हुए कमिश्नर सर्वे की तरह ही होगा। इसमें कोर्ट कमिश्नर की टीम वहां जाकर साक्ष्य एकत्रित करके कोर्ट को रिपोर्ट सौंप देगी। 

हिंदू पक्ष के पक्ष वकील विष्णु शंकर जैन ने क्या कहा-

हाईकोर्ट के फैसले के बाद हिंदू पक्ष के पक्ष वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा, "आज हमने मांग की थी कि मथुरा में 13.37 एकड़ विवादित भूमि योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण की है। मस्जिद का गलत कब्जा है। उस कब्जे को हटाया जाए। 12 अक्टूबर 1968 के समझौते को अवैध घोषित किया जाए।'' उन्होंने कहा, ''हमने कोर्ट में मांग की थी कि कोर्ट कमिश्नर सर्वे बहुत जरूरी है इस पर कोर्ट ने आज आदेश दे दिया है। 

18 दिसंबर को तय होगा कोर्ट कमिश्नर का पैनल-

कोर्ट कमिश्नर की टीम में कितने सदस्य होंगे,  सदस्य कौन-कौन होंगे,  कब सर्वे करेंगे, कैसे फोटो-वीडियोग्राफी की जाएगी, ये सब आगामी 18 दिसंबर को हाईकोर्ट में होने वाली सुनवाई में तय हो जाएगा। 

किन-किन वकीलों ने दी दलीलें-

श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद को लेकर मथुरा कोर्ट में 18 याचिकाओं में से 17 पर सुनवाई हुई थी। इनमें से ज्यादातर याचिकाओं में कोर्ट कमिश्नर सर्वे की मांग की गई थी। मई 2023 में श्रीकृष्ण विराजमान की याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई थी। इस पर कोर्ट ने मथुरा कोर्ट में चल रहे सभी इस मामले से संबंधित मुकदमों को हाईकोर्ट में ट्रांसफर करवा लिया था। श्रीकृष्ण विराजमान की याचिका में हरिशकंर जैन, विष्णु जैन और रंजना अग्निहोत्री याचिककर्ता हैं। जस्टिस मयंक जैन ने बारी-बारी से मुकदमों की सुनवाई की। पक्षकारों की तरफ से अर्जियां और हलफनामे दाखिल किए गए। किसी ने पक्षकार बनाने, तो किसी ने संशोधन की अर्जी दी। इसके बाद कोर्ट ने दूसरे पक्ष यानी मुस्लिम पक्ष को सिविल वाद और अर्जियों पर जवाब दाखिल करने का समय दिया था।

भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र ने मथुरा मंदिर का कराया निर्माण-

एक पक्षकार ने मंदिर का पौराणिक पक्ष रखते हुए कहा था कि भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र ने मथुरा मंदिर का निर्माण कराया था। मंदिर के लिए जमीन दान में मिली। इसलिए जमीन के स्वामित्व का कोई विवाद नहीं है। मंदिर तोड़कर शाही मस्जिद बनाने का विवाद है। राजस्व अभिलेखों में जमीन अभी भी कटरा केशव देव के नाम दर्ज है।

मुस्लिम पक्ष ने दर्ज कराई आपत्ति-

शाही ईदगाह मस्जिद और यूपी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के वकील ने कोर्ट में आपत्ति दर्ज कराई थी। मुस्लिम पक्षकारों का कहना था कि यह याचिका सुनवाई योग्य नहीं है, इसको खारिज किया जाए। जिसे कोर्ट ने नहीं माना।

हिंदू पक्षकारों ने समझौते को बताया अवैध-

श्रीकृष्ण जन्मस्थान शाही ईदगाह मामले में 12 अक्टूबर 1968 को एक समझौता हुआ था। श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट के सहयोगी संगठन श्रीकृष्ण जन्मभूमि सेवा संघ और शाही ईदगाह के बीच  हुए इस समझौते में 13.37 एकड़ भूमि में से करीब 2.37 एकड़ भूमि शाही ईदगाह के लिए दी गई थी। हालांकि, इस समझौते के बाद श्रीकृष्ण जन्मभूमि सेवा संघ को भंग कर दिया गया। इस समझौते को हिंदू पक्ष अवैध बता रहा है। हिंदू पक्ष के अनुसार, श्रीकृष्ण जन्मभूमि सेवा संघ को समझौते का अधिकार था ही नहीं। 

वीर सिंह बुंदेला ने बनवाया था मंदिर, विवादित भूमि किसकी ? 

इस सारे विवाद की शुरुआत से पहले बताया जाता है कि 1618 में यहां ओरछा के राजा वीर सिंह बुंदेला ने एक मंदिर बनवाया था। यह मंदिर भगवान श्रीकृष्‍ण का था। इसके बाद के घटनाक्रम के मुताबिक शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण 1670 में औरंगजेब ने कराया था। माना जाता है कि इस मस्जिद का निर्माण एक पुराने मंदिर की जगह पर कराया गया था। इस इलाके को नजूल भूमि यानी गैर-कृषि भूमि माना जाता है। इस पर पहले मराठों और बाद में अंग्रेजों का आधिपत्य था। 1815 में बनारस के राजा पटनी मल ने 13.37 एकड़ की यह भूमि ईस्ट इंडिया कंपनी से एक नीलामी में खरीदी थी। जिस पर ईदगाह मस्जिद बनी है और जिसे भगवान कृष्ण का जन्म स्थान माना जाता है। बताया जा रहा है कि राजा पटनी मल ने ये भूमि जुगल किशोर बिड़ला को बेच दी थी और ये पंडित मदन मोहन मालवीय, गोस्वामी गणेश दत्त और भीकेन लालजी आत्रेय के नाम पर रजिस्टर्ड हुई थी। जुगल किशोर ने श्रीकृष्ण जन्म भूमि ट्रस्ट नाम से एक ट्रस्ट बनाया, जिसने कटरा केशव देव मंदिर के स्वामित्व का अधिकार हासिल कर लिया। 

क्या है पूरा विवाद संक्षेप में जानते हैं-

संक्षेप में कहें तो यह पूरा विवाद 13.37 एकड़ जमीन को लेकर है। इस जमीन के 11 एकड़ में श्रीकृष्‍ण जन्‍मभूमि बनी है। बाकी के 2.37 एकड़ में शाही ईदगाह है। हिंदू पक्ष का कहना है कि जिस जगह ईदगाह है। वहां भगवान कृष्‍ण के मामा राजा कंस की जेल थी। इसी जेल में भगवान कृष्‍ण का जन्‍म हुआ इसलिए जो मौजूदा ईदगाह है वही वास्‍तव में भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली है। 

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