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संकट में वाराणसी की 'TENT CITY'


हमारे समाज में अक्सर विकास की कीमत पर्यावरण को चुकानी पड़ती है। उदाहरण के तौर पर उत्तराखंड के जोशीमठ को ले लीजिए या फिर सालों पहले गंगा नदी में इंडस्ट्रियल वेस्ट डंप करने को,.. विकास की दौड़ में सबसे अग्रणी रहने के लिए हम शायद ज़रूरत से ज्यादा प्रकृति का दोहन करते हैं। पर्यावरण को अनदेखा करने वाले मुद्दों के साथ इस बार वाराणसी चर्चा में आ गया है। जहाँ विकास के चलते देश की सबसे पवित्र नदी गंगा को इस बार दांव पर है। 
दरअसल यूपी के वाराणसी में पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से यहां कई तरह की नई पहल, एक्टिविटीज और कई अन्य कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं.. इन्ही में से एक है बनारस टेंट सिटी.. इसे गुजरात के कच्छ और राजस्थान की टेंट सिटी की तर्ज पर डेवलप किया गया है.. वाराणसी की यह टेंट सिटी फिलहाल कुछ ही दिनों की मेहमान है। गंगा का जलस्तर बढ़ने पर यह टेंट सिटी कुछ महीनों के लिए हटा ली जाएगी.. लेकिन इससे पहले एक बड़ी समस्या और खड़ी हो गई है। गंगा किनारे बसी इस टेंट सिटी का आज ग्राउंड लेवल पर निरीक्षण होने जा रहा है। आइये विस्तार से जानते हैं क्या है पूरा मामला

लेकिन इससे पहले आपको लेकर चलते हैं कुछ महीने पीछे जब इस पूरे मुद्दे की शुरुआत हुई।। बीते मार्च महीने में वाराणसी के तुषार गोस्वामी ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) में एक याचिका दायर की थी। 
17 मार्च को इस मामले की सुनवाई में तुषार के वकील सौरभ तिवारी ने कहा था की टेंट सिटी को गंगा तट पर बसाना पर्यावरण और पर्यावरण कानून दोनों के खिलाफ है। भोग-विलास के लिए इस सिटी को गंगा के किनारे बसाया गया है। इससे गंदगी सीधे तौर पर गंगा में जाती है। जिससे जल जीवों की मौत के साथ ही पानी स्नान के लायक भी नहीं बचेगा। सुनवाई के बाद NGT ने मामले की गंभीरता को देखते हुए कमेटी का गठन किया और NGT द्वारा गठित 7 सदस्यों की टीम यह जांच करेगी की इस टेंट सिटी से गंगा इकोसिस्टम को कितना खतरा है और अभी तक क्या नुक्सान हुए हैं।  
हालांकि इस बात को डेढ़ महीने बीत गए हैं और इसकी कार्रवाई आज शुरू हो रही है। आपकी जानकारी के लिए बता दें की पर्यावरण कानून वे कानून है जो पर्यावरण की रक्षा के लिए बनाए गए हैं। इसमें एयर क्वालिटी, वाटर क्वालिटी और पर्यावरण के अन्य पहलुओं से संबंधित कानून और विनियमों (Regulations) का समूह शामिल है। इसके तहत जल (प्रदुषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के तहत जल के विभिन्न स्त्रोत में पानी की शुद्धता और शुद्धता को बनाए रखाना शामिल है। इसके अलवा भारत सरकार द्वारा पर्यावरण और जैव विविधता की रक्षा के लिए वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972, वायु अधिनियम 1981, पर्यावरण(संरक्षण)अधिनियम 1986, उर्जा संरक्षण अधिनियम 2001, जैविक विविधता अधिनियम 2002 लाया गया। 
इससे पहले वर्ष 1985 में महेश चंद्र मेहता ने भी गंगा प्रदूषण  का मुद्दा उठाया था। इसमें बहुत सी इंडस्ट्रियल यूनिट्स के नाम भी सामने आए थे जो गंगा में कचरा और रासायनिक स्राव बहाकर नदी को गंदा कर रही थी। महेश चंद्र मेहता की यह कोशिश रंग लेकर आई, और 2 वर्ष बाद 1987(सत्तासी) में सरकार ने उन 21 लेदर का कम करने वाली यूनिट्स को बंद कर दिया जो गंगा के किनारे बसी हुई थी। महेश चंद्र द्वारा उठाए गए इस मामले में तो पर्यावरण की जीत हुई थी  लेकिन वाराणसी में टेंट सिटी मामले में निष्कर्ष क्या होगा ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा.. लेकिन इस मामले पर आपका क्या कहना है हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताए..

 

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