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दीमकों का खतरा अब केवल स्थानीय सीमाओं तक सीमित नहीं रह गया है। अमेरिका के फोर्ट लॉडरडेल रिसर्च एंड एजुकेशन सेंटर (FLREC) की एक हालिया रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है—अब दीमक नावों के जरिए देशों की सीमाएं पार कर रहे हैं। यह न सिर्फ पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक गंभीर खतरा है, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी इसका गहरा असर पड़ रहा है।
नाव बनीं दीमकों के लिए ‘फ्लोटिंग ट्रांसपोर्ट’
अध्ययन में तीन प्रमुख आक्रामक दीमक प्रजातियों—फॉर्मोसन सबटेरेनियन टर्माइट, एशियाई सबटेरेनियन टर्माइट और वेस्ट इंडियन ड्राईवुड टर्माइट—के नावों के माध्यम से प्रसार पर विस्तृत जानकारी दी गई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि मनोरंजन और निजी उपयोग के लिए प्रयुक्त नावें इन दीमकों के लिए एक आदर्श माध्यम बन चुकी हैं। जब ये नावें किसी तटीय इलाके में रुकती हैं, तो दीमक वहां के पर्यावरण में घुलमिल जाते हैं और फिर स्थानीय वनस्पति और इमारतों को नुकसान पहुंचाते हैं।
अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ
अध्ययन के अनुसार, दीमकों के कारण वैश्विक स्तर पर हर वर्ष 40 अरब डॉलर से अधिक का नुकसान हो रहा है। अकेले फॉर्मोसन दीमक ही करीब 20.3 से 30 अरब डॉलर तक के नुकसान के लिए जिम्मेदार मानी जाती है। इस आर्थिक क्षति में भवनों की मरम्मत, संक्रमित पेड़ों की कटाई, भूमि पुनर्विकास और कीटनाशक उपायों पर होने वाला खर्च शामिल है।
पर्यावरणीय खतरा भी गंभीर
वैज्ञानिकों का मानना है कि यह केवल एक आर्थिक मुद्दा नहीं, बल्कि एक बड़ा पारिस्थितिकीय संकट भी है। दीमकों के इस तरह के अनियंत्रित प्रसार से जैव विविधता पर भी गहरा असर पड़ सकता है, क्योंकि ये स्थानीय प्रजातियों और पारिस्थितिकी तंत्र को सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं।
समाधान की तलाश जरूरी
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द ही नावों की नियमित जांच और संक्रमण नियंत्रण की व्यवस्था नहीं की गई, तो स्थिति और गंभीर हो सकती है। सरकारों और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों को इस मुद्दे पर एकजुट होकर काम करने की आवश्यकता है, ताकि पर्यावरण और अर्थव्यवस्था को होने वाले इस अदृश्य खतरे से बचाया जा सके।