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भारत में कहां है मानसून टेंपल ? बारिश आने से पहले देता है जानकारी

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सोने की चिड़िया कहें जाने वाला भारत अपने अन्दर कई रहस्य समेटें हुए है। यहां कई ऐसे मंदिर हैं जिनकी मान्याताओं के पीछे छुपे रहस्यों का लोग आज भी पता नहीं लगा पाएं हैं। जिन रहस्यों के बारें में जानकर ऐसा लगता है कि आज भी इन मंदिरों में कोई ऐसी अलौकिक शक्ति है, जिसने इन मंदिरों को दुनिया भर में विख्यात कर रखा है। आपको भी जान कर हैरानी होगी कि भारत के एक राज्य में ऐसा मंदिर है जहां बारिश होने से 7 दिन पूर्व लोगों को बारिश होने का पता चल जाता है। 

बारिश होने के 7 दिन पहले मिलती है सूचना-

उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर के गांव विकासखंड से तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यह चमत्कारिक मंदिर। यह मंदिर भगवान जगन्नाथ के मंदिरों में से एक है, जिसे मानसून टेम्पल भी कहते हैं। यहां लोग देश विदेश से दर्शन करने के लिए आते हैं। मंदिर के बारे में कई तरह की कहानियां और किंवदंतियां प्रचलित हैं। एक कहानी के अनुसार कहते है कि भगवान जगन्‍नाथ का यह मंदि‍र अपने चमत्‍कार‍िक भविष्यवाणी के लिए जाना जाता है। यहां बारिश होने के छह-सात दिन पहले से ही मंदिर की छत से पानी की बूंदें टपकने लगती हैं। ये बूंदे जिस आकार की टपकती हैं, उसी के आधार पर बारिश भी होती है।

 मंदिर की सबसे अनोखी बात ये है कि जैसे ही बारिश शुरू होती है, मंदिर की छत अंदर से पूरी तरह सूख जाती है।  इसी के साथ लोग यह भी कहते हैं कि इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ की मूर्ति है। और इसी मंदिर में भगवान विष्णु के 24 अवतार भी देखने को मिलते हैं। इन 24 अवतार में कलयुग में अवतार लेने वाले कल्कि भगवान की भी मूर्ति स्थापित है। वहीं दूसरी कहानी के मुताबिक, मंदिर में भगवान जगन्नाथ की मूर्तियां स्वयं प्रकट हुई थीं। एक अन्य कहानी के मुताबिक, मंदिर का निर्माण एक राजा ने अपनी बेटी की इच्छा को पूरा करने के लिए किया था। हांलाकि मंदिर के पीछे छुपी कहानियों को लेकर कुछ भी सटीकता के साथ नहीं कहा जा सकता। इसी के साथ बारिश के मौसम में इसकी छत से पानी कैसे टपकता है और कब बंद हो जाता है इस बात का पता भी अभी तक कोई नहीं लगा पाया है। 

वैज्ञानिक भी इसके रहस्य से अनभिज्ञ-

कहा जाता है कि पुरातत्व विभाग के लोग और वैज्ञानिक कई बार यहां आए, लेकिन इस रहस्य का पता लगाने में असफल रहे।मंदिर की दीवारें लगभग 14 फीट मोटी हैं। मंदिर के अंदर भगवान जगन्नाथ, बलदाऊ और बहन सुभद्रा की काले चिकने पत्थरों की मूर्तियां हैं। पुरातत्व विभाग के मुताबिक मंदिर का जीर्णोद्धार 11वीं शताब्दी के आसपास हुआ था। हालांकि, मंदिर की प्राचीनता के पुख्ता प्रमाण तो नहीं मिलते हैं। कुछ इतिहासकारों का मानना ​​है कि मंदिर का निर्माण 2000 ईसा पूर्व की संस्कृति से संबंधित है। वहीं मंदिर को लेकर कई तरह की रहस्यमयी बातें हैं। मंदिर के बारे में आज तक कोई पता नहीं लगा पाया कि यह मंदिर कितना पुराना है।

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