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क्या इसलिए स्वामी प्रसाद मौर्य ने दिया इस्तीफा?

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अपने बयानों को लेकर अक्सर चर्चा में रहने वाले सपा के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने महासचिव के पद से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने सपा नेतृत्व पर दलितों और पिछड़ों को उचित भागीदारी न दिए जाने का पार्टी पर आरोप लगाया है। इनके इस्तीफा देने का कारण राज्यसभा के टिकट वितरण में इनकी सुनवाई न होना बताया जा रहा है। इसके साथ ही मौर्य के इस्तीफे को पार्टी पर दबाव बनाने की रणनीति भी माना जा रहा है। हलांकि आज यानि बुधवार को स्वामी प्रसाद मौर्य की इस्तीफे के बाद पहली प्रतिक्रिया सामने आई है। जिसमें उन्होंने कहा है कि अब गेंद राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के पाले में है। 

इस्तीफे के बाद क्या बोले स्वामी-

सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने मंगलवार को पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। उन्होंने सपा अध्यक्ष को लंबा चौड़ा पत्र लिखते हुए अपनी बात रखी और इस्तीफ़े की वजह भी बताई, और कहा कि वो पार्टी के लिए काम करते रहेंगे। इस पूरे मामले पर जब मीडिया ने उनसे पूछा कि अब उनका अगला कदम क्या होगा और क्या वो पार्टी भी छोड़ सकते हैं इस पर उन्होंने खुलकर बात की और कहा कि अब गेंद अखिलेश यादव के पाले में है उनके निर्णय के बाद कोई निर्णय लिया जाएगा।

स्वामी की नाराजगी की कई वजहें-

आपको बता दें कि स्वामी प्रसाद मौर्य लंबे समय से सपा में खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। उनके हर बयान को समय-समय पर प्रो. रामगोपाल यादव और शिवपाल यादव निजी राय बता कर किनारे करते आए हैं। हद तो तब हो गई जब विधानसभा में पार्टी के मुख्य सचेतक मनोज पांडे ने तो उनका मानसिक संतुलन बिगड़ा हुआ ही बता दिया था। इसके बाद भी अखिलेश यादव उनके खिलाफ पार्टी से ही आ रहे बयानों पर कोई लगाम नहीं लगा रहे हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य राज्यसभा चुनावों में तीन में से दो टिकटों को सामान्य वर्ग को दे दिए जाने से भी नाराज हैं। टिकट वितरण में उनकी मानी जानी तो दूर की बात, महासचिव होने के बावजूद कोई जानकारी तक उनको नहीं दी गई। बताते हैं कि जया बच्चन को पांचवीं बार प्रत्याशी बनाए जाने के, स्वामी प्रसाद मौर्य खिलाफ थे। 

फर्रुखाबाद के टिकट से नाखुश हैं स्वामी!

सूत्रों का ऐसा भी कहना है कि स्वामी प्रसाद मौर्य नहीं चाहते थे कि फर्रुखाबाद से डॉ. नवल किशोर शाक्य को प्रत्याशी बनाया जाए। डॉ. शाक्य की शादी संघमित्रा से हुई थी। लेकिन बाद में तलाक हो गया था। स्वामी प्रसाद धार्मिक आडंबरों पर लगातार हमला बोल रहे हैं और प्रभु श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा को भी अवैज्ञानिक धारणा बता चुके हैं। ऐसे में सपा नेतृत्व के भगवान शालिग्राम की स्थापना से पहले पूजा-अर्चना का कार्यक्रम भी उन्हें रास नहीं आया है और इसी दिन उन्होंने महासचिव पद से इस्तीफे का ऐलान कर दिया। 

क्या अलग राह पर जाएंगे स्वामी ?
 
महासचिव पद से उनका इस्तीफा दोतरफा लिटमस टेस्ट की तरह है। देखना होगा कि सपा नेतृत्व उनके इस कदम से कितना दबाव में आता है। दूसरा, ये कि किसी अन्य दल की तरफ से उनको  कितना महत्व मिलता है। सूत्रों का कहना है कि सपा नेतृत्व के दबाव में आने पर आगामी लोकसभा टिकट वितरण में उनके कहने से कुछ टिकट दिए जा सकते हैं। आपको बता दें कि स्वामी प्रसाद मौर्या की पुत्री संघमित्रा बदायूं से बीजेपी सांसद हैं, जहां से सपा ने धर्मेंद्र यादव को टिकट दे दिया है। स्वामी प्रसाद अपनी पुत्री के लिए के लिए बरेली के आंवला से टिकट चाहते हैं।

 

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