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1 हजार साल पहले यूपी के इस शहर से शुरू हुई थी छठ पूजा, जानिए इसका वैज्ञानिक महत्व

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नहाय-खाय के साथ ही 4 दिनों तक चलने वाली छठ पूजा शुरू हो जाएगी। इस पावन मौके पर तीसरे दिन शाम को व्रतियां और उनके परिवार के करीब 10 लाख श्रद्धालु वाराणसी के 88 घाटों और कुंडो- तालाबों पर पहुंचेंगे। यहां डूबते सूरज को अर्घ्य दिया जाएगा। और इसके साथ ही चौथे दिन सुबह के बाद उगते सूरज को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाएगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसकी शुरूआत कब और कहां से हुई। जानिए विस्तार से...

यहां से हुई छठ पूजा की शुरूआत-

आपको बता दें कि भले ही लोग छठ पूजा को पारंपरिक तौर पर बिहार का लोक पर्व मानते हों लेकिन इसकी शुरूआत आज से 1 हजार साल पहले वाराणसी से हुई है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में जियो साइंटिस्ट रहे प्रो. राणा पीबी सिंह के मुाताबिक करीब 10वीं शताब्दी के अंत में काशी में सूर्यवंशी गहड़वाल वंश के राजाओं ने यह पूजा विधि-विधान से कराई। बनारस का सूरजकुंड तालाब इसका स्पष्ट प्रमाण है। वहीं, छठ पूजा की दूसरी खास बात ये है कि इस दौरान खगोलीय स्थितियां भी काफी बदल जाती हैं। जिसके कारण सूर्य से निकलने वाली खतरनाक अल्ट्रा वायलेट किरणें भी शरीर को नुकसान पहुंचाने के बजाय लाभ देती हैं।

शरीर के लिए फायदेमंद है छठ पूजा-

प्रो. राणा पीबी सिंह के का कहना है कि छठ पूजा प्रकृति की पहली और सबसे बड़ी पूजा है। इसका रास्ता आध्यात्मिक है। मगर, पूजा की पूरा विधि-विधान प्राकृतिक है। साथ ही खगोलीय स्थितियां भी बदलती हैं। इस सीजन में प्रकाश की किरणों की डेंसिटी बढ़ जाती है। यह मानव शरीर के लिए कई तरह से  फायदेमंद हैं। जब सूर्य की किरणें पानी से टकराकर हमारी बॉडी को छूती हैं या हम उन्हें अपनी आंखों से देखते हैं तो उसका प्रवाह पूरे शरीर में एक एनर्जी फोटान की तरह से होता है। अंजुल में जल लेकर सूर्य को देखते हैं, तो उससे आंखों को हेल्दी वाली किरणें भी मिलती हैं।

यहां स्नान करने पर कुष्ठ रोग से मिलती है राहत-

प्रो. सिंह के मुताबिक वाराणसी में गोदौलिया-नई सड़क पर सनातन धर्म इंटर कॉलेज के पास स्थित सूरजकुंड तालाब है। शास्त्रों और कई रिसर्च के मुताबिक इस कुंड की जियोमेट्री देखें तो इसमें सोलर लाइट कुछ खास तरह से पड़ती है। सूर्य का प्रकाश सबसे अधिक तीव्रता के साथ आता है। कुंड के पास ही गोल चक्र में एक सूर्य मंदिर है। मान्यता है कि यहां पर सूर्य की रोशनी में स्नान करने पर कुष्ठ रोग से भी राहत मिलती है।

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