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एक ऐसा गांव जहां के लोग दिवाली पर मनाते हैं शोक!

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जब पूरा देश में दिवाली पर गणेश और लक्ष्मी जी की पूजा कर रहा होता है तब एक गांव ऐसा भी जहां पर दिवाली की खुशियां न मना कर लोग शोक मनाते हैं। यूपी के मिर्जापुर के रहने वाले धनीराम दिवाली के दिन शोक मनाते हैं। ऐसा करने वाले अकेले धनीराम ही नहीं हैं बल्कि उनके समाज से जुड़े तमाम लोग दिवाली के दिन शोक मनाते हैं। दिवाली पर धनीराम के शोक मनाने के पीछे का कारण बहुत ही रहस्मयी और ऐतिहासिक है। तो चलिए जानते है दिवाली पर धनीराम के शोक मनाने के पीछे की कहानी...

दीवावली का इतिहास-

दीपावली हिंदू धर्म का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है। हर साल देशभर में दीपावली बड़ी ही धूमधाम से मनाई जाती है, और इस बार दीपावली 12 नवंबर को मनायी जा रही है। इस पर्व पर लोग अपने घरों को द्वीप से सजाते हैं। मिठाई बांटकर खुशी मनाते हैं, दिवाली हिंदू धर्म के ही लोग नही बल्कि जैन, बौद्ध और सिख समुदाय के लोग भी बड़े हर्षो उल्लास के साथ मनाते हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश में कई ऐसे गांव है जहा दिवाली नहीं मनाई जाती है। 

हिंदू धर्म में यह मान्यता है की इस दिन प्रभु श्री राम माता सीता और लक्ष्मण जी 14 साल बाद बनवास से वापस अयोध्या लौटे थे। जैन धर्म में दीपावली को लेकर मान्यता है, कि कार्तिक अमावस्या के दिन ही 24वें तीर्थकर महावीर स्वामी को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी,और सिख धर्म के लोग इसलिए दीपावली मनाते हैं क्योंकि कार्तिक अमावस के ही दिन साल 1577 में स्वर्ण मंदिर की नींव रखी गई थी,और साथ ही साल 1619 में इनके छठे गुरु हरगोविंद सिंह को कैद से रिहाई मिली थी। वहीं बौद्ध धर्म में दीवाली को उस दिन की स्मृति में मनाया जाता है जब सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में बौद्ध धर्म अपना लिया था।

धनीराम क्यों नहीं मनाते दिवाली ?

अब बात करते है के मिर्ज़ापुर के धनीराम की.... धनीराम के गांव के लोग दीपावली के दिन शोक मनाते हैं, इस दिन घरों में दीपक नहीं जलाते और न ही कोई जश्न मनाता है, तो शायद आपको विश्वास न हो। लेकिन ऐसा होता है। दरअसल मिर्जापुर में चौहान समाज इस दिन को शोक दिवस के रूप में मनाया जाता  है। जी हां, मड़िहान तहसील के राजगढ़ क्षेत्र के अटारी गांव और उसके आसपास स्थित मटिहानी, मिशुनपुर, लालपुर, खोराडीह समेत करीब आधा दर्जन गांवों में दिवाली नहीं मनाई जाती है। देश में जहा हर घर में दीये, पटाखे जलाये जाते है, खुशिया मनाई जाती है तो वही यहां बसे करीब 8 हजार चौहान समाज के लोग इस दिन शोक मनाते हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी दीपावली के दिन शोक मनाने की यह परंपरा सैकड़ों सालों से चली आ रही है। 

दरअसल, चौहान समाज के लोग खुद को अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान का वंशज बताते हैं। उनका मानना है कि दीपावली के दिन ही मुहम्मद गोरी ने सम्राट पृथ्वीराज चौहान की हत्या की थी, और उनके शव को गंधार ले जाकर दफनाया था। इसीलिए उनके समाज के लोग इस दिन शोक मनाते हैं। चौहान समाज के लोग सबसे अधिक अटारी गांव में रहते हैं। जहा के अध्यक्ष धनीराम का कहना है कि हमारे पूर्वज को इसी दिन मुहम्मद गोरी ने मारा था। यही वजह है कि हम लोग दीपावली पर अपने घरों में कोई रोशनी नहीं करते हम लोग दीपावली के बजाय देव दीपावली  मनाते हैं, और उस दिन घरों को रोशन करते हैं।

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