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बच्चों की एक याचिका ने बदल दी सरकार की चाल! स्कूल विलय पर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

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उत्तर प्रदेश के सीतापुर में परिषदीय प्राथमिक स्कूलों के एकतरफा विलय को लेकर हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक अहम आदेश जारी किया है। हाईकोर्ट ने इस मामले में “यथास्थिति बनाए रखने” का निर्देश दिया है, जिससे फिलहाल किसी भी स्कूल के विलय की प्रक्रिया पर रोक लग गई है।

क्या है मामला?

सीतापुर ज़िले के कई परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों को आपस में मिलाकर एकीकृत करने की योजना बनाई गई थी। इसका उद्देश्य संसाधनों के केंद्रीकरण और शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करना बताया गया था। लेकिन स्थानीय बच्चों और अभिभावकों का आरोप है कि इस कदम से बच्चों की पढ़ाई, पहुंच और सुरक्षा पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।इस मुद्दे को लेकर छात्रों की ओर से हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई, जिसमें स्कूलों के मनमाने विलय पर आपत्ति जताई गई थी।

कोर्ट ने क्या कहा?

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की दो सदस्यीय बेंच ने गुरुवार को सुनवाई की। याचिकाओं पर विचार करते हुए कोर्ट ने कहा कि अगली सुनवाई तक “विलय की प्रक्रिया पर यथास्थिति बरकरार रखी जाए।” इस आदेश का मतलब है कि जब तक अगली सुनवाई नहीं होती, तब तक सीतापुर के किसी भी प्राथमिक स्कूल को विलय की प्रक्रिया में शामिल नहीं किया जा सकेगा।

कब होगी अगली सुनवाई?

इस मामले की अगली सुनवाई की तारीख 21 अगस्त 2025 तय की गई है। तब तक राज्य सरकार को भी अपना पक्ष विस्तार से रखने का अवसर मिलेगा।

बच्चों और अभिभावकों को राहत

कोर्ट के इस आदेश से सीतापुर के हजारों बच्चों और उनके अभिभावकों को बड़ी राहत मिली है। स्कूलों के विलय के चलते कई छात्रों को दूर-दराज़ के स्कूलों में जाना पड़ रहा था, जिससे उनकी उपस्थिति और शिक्षा प्रभावित हो रही थी।

सवालों के घेरे में प्रशासन

इस पूरे प्रकरण ने शिक्षा विभाग और जिला प्रशासन की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। कोर्ट ने संकेत दिए हैं कि बिना व्यापक जनसुनवाई और प्रभाव मूल्यांकन के कोई फैसला बच्चों के हितों के खिलाफ माना जा सकता है।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

शिक्षाविदों का कहना है कि स्कूलों का विलय तभी कारगर हो सकता है जब इन्फ्रास्ट्रक्चर, ट्रांसपोर्ट और टीचर स्टाफ की पूरी व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। केवल प्रशासनिक सुविधा के लिए स्कूलों को मिलाना शिक्षा के अधिकार अधिनियम के मूल उद्देश्य के विरुद्ध है।

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