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रफ़्ता-रफ़्ता कैसे बदला कबूतर से डिजिटल तक भारतीय डाक का स्वर्णिम इतिहास!

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दुनिया में संवाद का इतिहास जितना पुराना है, उतना ही पुराना है डाक का महत्व। कभी कबूतरों के परों से लिपटे संदेश, तो कभी रेगिस्तानों और पहाड़ों को पार करते घुड़सवार संदेशवाहक-डाक का सफर मानवीय सभ्यता के साथ ही विकसित होता रहा है। राजा-महाराजाओं के दरबार से लेकर आम लोगों के घरों तक, डाक ने भावनाओं, आदेशों और विचारों को जोड़ने का काम किया है। आज जब हम ऑनलाइन मैसेजिंग और त्वरित संचार के दौर में हैं, तब भी डाक सेवा हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा बनी हुई है। 9 अक्टूबर को मनाया जाने वाला 'विश्व डाक दिवस' इस अनमोल धरोहर और इसके ऐतिहासिक सफर को सलाम करने का दिन है, जिसने कबूतर से लेकर आधुनिक तकनीक तक की अद्भुत यात्रा की है।

कबूतर से शुरू हुई डाक प्रणाली-

डाक प्रणाली की जड़ें प्राचीन काल में विद्यमान थीं। मौर्य वंश के राजाओं के समय (321–297 BCE) में डाक का पहला प्रमाण मिला। इस युग में संदेशों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाने के लिए कबूतरों का उपयोग किया जाता था। सम्राट अशोक के काल में भी प्रशिक्षित कबूतरों का उपयोग किया गया, जिन्हें संदेशों के साथ उड़ाया जाता था। यह प्रणाली अपनी सरलता और प्रभावशीलता के लिए जानी जाती थी।

मुगल साम्राज्य में डाक की सेवा का विकास-

मुगल साम्राज्य में डाक सेवा ने एक नई दिशा पकड़ी। मुगलों ने घोड़े और रनर्स का उपयोग शुरू किया। शेरशाह सूरी ने 2500 किलोमीटर लंबे ग्रांट ट्रंक रोड का निर्माण किया, जिससे डाक संचार की गति और बेहतर हुई। इसके साथ ही, सड़क के किनारे सराय के निर्माण से डाक सेवाओं को और भी मजबूती मिली।

अंग्रेजी हुकूमत का दौर: GPO का विकास-

मुगल साम्राज्य के बाद, अंग्रेजों ने भारत में जीपीओ (General Post Office) स्थापित किया। सबसे पहला जीपीओ 1774 में कोलकाता में स्थापित हुआ, उसके बाद 1784 में मद्रास और 1794 में मुंबई जीपीओ की स्थापना हुई। ये जीपीओ आधुनिक डाक प्रणाली के विकास के लिए महत्वपूर्ण आधार बने।

स्वतंत्र भारत और डाक प्रणाली में बदलाव-

1947 में स्वतंत्रता के बाद, भारतीय डाक ने अपनी पहचान और महत्व को और बढ़ाया। इस दौरान, भारत ने तीन स्वतंत्रता डाक टिकट जारी किए। 1986 में स्पीड पोस्ट की शुरुआत और 2012 में आईटी आधुनिकीकरण परियोजना के तहत डिजिटल सेवाओं का शुभारंभ हुआ।

भारतीय डाक का ऐतिहासिक सफर-

वर्ष घटना
321–297 BCE मौर्य वंश के दौरान कबूतर डाक प्रणाली का उपयोग
1504 मुगल साम्राज्य की शुरुआत
1727 ब्रिटिश काल की शुरुआत
1774 कोलकाता जीपीओ की स्थापना
1784 मद्रास जीपीओ की स्थापना
1794 मुंबई जीपीओ की स्थापना
1852 पहला डाक टिकट जारी हुआ
1854 मेल रनर की शुरुआत
1856 सेना डाक सेवा की स्थापना
1860 डाक मैनुअल का प्रकाशन
1876 भारत यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन में शामिल हुआ
1882 डाकघर बचत बैंक का उद्घाटन
1947 तीन स्वतंत्रता डाक टिकट जारी
1986 स्पीड पोस्ट की शुरुआत
2006 ई-भुगतान सेवाओं की शुरुआत
2012 आईटी आधुनिकीकरण परियोजना-2012 का शुभारंभ

डिजिटल युग की ओर-

आज भारतीय डाक प्रणाली ने एक नई ऊंचाई प्राप्त की है, जहां ऑनलाइन सेवाएं और ई-भुगतान का चलन आम हो चुका है। भारतीय डाक का यह सफर, कबूतरों से लेकर डिजिटल प्लेटफार्म तक, न केवल संदेश संप्रेषण का एक अद्वितीय इतिहास प्रस्तुत करता है, बल्कि भारतीय समाज में इसकी भूमिका और महत्त्व को भी रेखांकित करता है।

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