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यूपी की नई फ़िल्म सिटी: क्या बॉलीवुड को टक्कर दे पाएगा नोएडा

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अभी पिछले महीने ही उत्तर प्रदेश का अयोध्या, अपने यहां भव्य राम मंदिर निर्माण को लेकर विश्व भर में सुर्खियां बटोर रहा था. जबकि अब यकायक फिर से उत्तर प्रदेश अपने एक और भव्य निर्माण कार्य के लिए इतना चर्चित हो गया है कि उसकी गूंज देशभर में ही नहीं, दुनिया के कई हिस्सों तक पहुंच गई है.

हालांकि जब गत 19 सितंबर को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में नोएडा क्षेत्र में एक भव्य और विशाल फिल्म सिटी बनाने की घोषणा की तो लगा था कि अभी यह एक घोषणा ही है, जो न जाने कब शुरू और कब पूरी होगी. लेकिन फिल्म सिटी की इस योजना को पंख तब लगे जब 22 सितंबर को ही मुख्यमंत्री योगी ने इसकी मीटिंग के लिए कुछ फिल्म वालों को लखनऊ में लंच पर बुला लिया. इससे यह संदेश गया कि योगी फिल्म सिटी की योजना को लंबा न खींचकर जल्द से जल्द पूरा करने का मन बना चुके हैं. योगी ने फिल्म वालों के साथ अपनी इस मीटिंग में मुंबई के हिन्दी सिनेमा के लोगों को ही नहीं साउथ फिल्म इंडस्ट्री के कुछ लोगों को भी बुलाया. जो यह बताता है कि इस फिल्म सिटी को लेकर चाहे चर्चा यह है कि अब हिन्दी फिल्में, अपने हिन्दी प्रदेश की अपनी माटी पर बन सकेंगी.
लेकिन सरकार अपने इस प्रोजेक्ट को सिर्फ हिन्दी सिनेमा तक ही सीमित नहीं रखना चाहती वह दक्षिण के सिनेमा को भी इससे जोड़ना चाहती है.


फिल्म सिटी की पूरी योजना
सबसे बड़ी बात यह है कि इस घोषणा के दो दिन के भीतर और फिल्म वालों से मीटिंग से पहले ही यह तक तय कर लिया गया कि योगी की यह ड्रीम फिल्म सिटी कहां बनेगी, इसका मास्टर प्लान क्या है और वहां शूटिंग फ्लोर और स्टूडियो के साथ और क्या-क्या होगा. हालांकि फिल्म सिटी को लेकर कुछ बातें अभी भी साफ नहीं हैं. फिल्म सिटी की घोषणा के बाद ही उत्तर प्रदेश के या पूरे उत्तर भारत के अनेक लोगों ने ही नहीं मुंबई और दक्षिण के फिल्म उद्योग के भी बहुत से लोगों ने दिल खोलकर स्वागत किया है.

 इसका एक कारण तो यही है कि जब तमिल की फिल्में चेन्नई में बनती हैं तो तेलुगू की हैदराबाद में. कन्नड़ की भी ज़्यादातर फिल्में बेंगलुरु में बनती हैं. ऐसे ही मलयालम की ज़्यादातर फिल्में तिरुवनंतपुरम में, बांग्ला की फिल्में कोलकाता में. 

पंजाबी फिल्में पंजाब में, हरियाणवी फिल्में हरियाणा में और मराठी फिल्में महाराष्ट्र में बनती हैं, तो फिर हिन्दी की फिल्में उत्तर भारत के हिन्दी राज्यों या उत्तर प्रदेश में न बनकर मुंबई में क्यों बनती हैं?
दूसरा उत्तर प्रदेश के नोएडा में फिल्म सिटी बनने से रोज़गार के लाखों अवसर मिलने के साथ नई प्रतिभाओं को मौके भी मिल सकेंगे. हालांकि ये सब बातें देखने सुनने में जितनी अच्छी लगती हैं, हक़ीक़त में इतनी आसान नहीं.

यूं किसी काम को करने का संकल्प लेकर उसे शिद्दत से करने के लिए ठान लिया जाये तो मुश्किल तो कुछ नहीं, फिर भी आज सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या योगी का यह सपना पूरा हो सकेगा और पूरा होगा तो उसमें कितने बरस लगेंगे?

साथ ही यह भी कि हॉलीवुड की तर्ज पर बॉम्बे फिल्म उद्योग को जैसे बॉलीवुड कहा जाता है. ऐसे ही आने वाले कल में नोएडा की फिल्म सिटी को 'नॉलीवुड' कहा जा सकता है. फिर हमारे यहां बॉलीवुड के साथ क्षेत्रीय सिनेमा में कॉलीवुड और टॉलीवुड भी बन चुके हैं.

जिस तरह इस उत्तर प्रदेश की फिल्म सिटी की घोषणा के साथ ही सिनेमा और राजनीति से जुड़े लोग यह कहने लगे हैं कि इससे मुंबई की जगह हिन्दी फिल्में अब नोएडा में ही बनने लगेंगी. बहुत से आम लोगों के मन में भी कुछ ऐसी ही धारणा बनती दिख रही है.

इसलिए तब यह भी सवाल उठता है कि क्या 'नॉलीवुड' की यह फिल्म सिटी बॉलीवुड को टक्कर दे सकेगी? क्या इसके बाद बॉलीवुड ख़त्म होकर इतिहास में सिमट जाएगा?

पहले भी है नोएडा में एक फिल्म सिटी
असल में पिछले कुछ बरसों में उत्तरप्रदेश में फिल्म सिटी बनाने की बात अक्सर चलती रही है. जिसके लिए कभी आगरा, कभी लखनऊ, कभी कानपुर तो कभी उन्नाव के नाम प्रस्तावित होते रहे हैं.

लेकिन सरकारी योजनाओं पर आशंका के बादल इसलिए भी मंडराते हैं क्योंकि कुछ वैसी ही योजनाएं पहले दम तोड़ चुकी होती हैं. उत्तर प्रदेश में करीब 35 बरस पहले राज्य सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने भी नोएडा में एक फिल्म सिटी बनाने का एलान किया था.

वीर बहादुर की इस योजना के बाद भी कई फिल्मकारों सहित और भी बहुत से लोगों ने यही उम्मीद जताई थी कि अब हिन्दी फिल्में, हिन्दी प्रदेश में बन सकेंगी. मुंबई वाले अब दिल्ली आकर बस जाएंगे.

वीर बहादुर ने घोषणा के बाद 1987 में नोएडा के सेक्टर 16 में इस फिल्म सिटी के लिए 100 एकड़ जगह आवंटित करके फिल्मकारों को प्लॉट देने का प्रस्ताव रखा, तो कई बड़े नाम यहां अपने फिल्म स्टूडियो बनाने के लिए लालायित दिखे.

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