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क्या है टाउनशिप पॉलिसी-2023 ?

 बीते दिनों उत्‍तर प्रदेश मंत्रिपरिषद ने नगरों के सुनियोजित विकास को बढ़ावा देने और आम लोगों को बेहतर आवासीय सुविधा मुहैया कराने के लिए यूपी टाउनशिप नीति-2023 लागू करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। तो क्या ख़ास है इस पॉलिसी में, ये शहरों की सूरत किस तरह से बदलेगी, और अब कैसे होंगे नए बनने वाले मोहल्ले-कॉलोनियां। ये नई टाउनशिप पॉलिसी साल 2014 की ‘इंटीग्रेटेड टाउनशिप पॉलिसी’ का स्थान लेगी। उत्तर प्रदेश नगर योजना विकास अधिनियम-1973’ में संशोधन के लिए एक अध्यादेश लाने को भी मंजूरी मिली है। 

नई टाउनशिप नीति की बात करें तो इसका सबसे बड़ा प्वॉइंट 2 लाख से कम आबादी वाले शहरों में भी योजनाबद्ध विकास यानी प्लान्ड डेवलपमेंट को बढ़ावा देना है। इसके अलावा नीति के हिसाब से बड़े शहरों में टाउनशिप बनाने के लिए न्यूनतम भूमि 25 एकड़ जमीन होना अनिवार्य है। पर ये नियम छोटे शहरों के लिए जरा बदल गया है क्योंकि अब छोटे शहरों में कम से कम 12.5 एकड़ भूमि पर भी टाउनशिप प्लान की जा सकेगी, हालांकि पहले की टाउनशिप नीति के हिसाब से छोटे शहरों में भी टाउनशिप प्लान करने के लिए कम से कम 25 एकड़ की जमीन चाहिए होती थी। ऐसे में अब इससे छोटे शहरों में प्लान्ड कॉलोनियां बनाने में तो मदद मिलेगी ही साथ ही साथ कम आबादी वाले शहरों में ग्रुप हाउसिंग सोसायटी जैसे कॉन्सेप्ट को बढ़ावा भी मिलेगा।
नई पॉलिसी में ये भी साफ किया गया है कि टाउनशिप तक पहुंच के लिए 25 मीटर चौड़ी सड़क देना अनिवार्य होगा, जबकि कॉलोनी के अंदर भी कम से कम 12 मीटर चौड़ी सड़क देनी होगी। इससे एक ओर जहाँ संकरी गलियों का दौर खत्म होगा वहीँ दूसरी ओर इससे लोगों को मोहल्ले के अंदर खुली और चौड़ी सड़कें नसीब हो सकेंगी। नई टाउनशिप पॉलिसी की एक ख़ास बात ये भी है कि इसमें घर और दफ्तर को पास-पास रखने पर जोर दिया गया है। यानी अब कॉलोनियां या टाउनशिप इस तरह से विकसित किये जाएंगे जहां लोगों के लिए घर से दफ्तर की दूरी सिर्फ वॉकिंग डिस्टेंस पर हो। इसका सीधा सा मकसद पीक ऑवर्स में सड़कों पर लंबे-लंबे जाम से छुटकारा पाना है। 
पॉलिसी में विलेज सोसायटी के विकास का भी ध्यान रखा गया है। 50 एकड़ कृषि भूमि पर कॉलोनियां बनाने के लाइसेंस दिए जाएंगे। ऐसे प्रोजेक्ट्स ही शहरों के मास्टर प्लान में शामिल होगा। विलेज सोसायटी और अन्य सरकारी भूमि के कन्वर्जन का काम भी 60 दिन के अंदर हो जाएगा। 
पॉलिसी में प्राइवेट सेक्टर में टाउनशिप डेवलपमेंट को बढ़ावा देने के लिए कई प्रावधान किए गए हैं। जैसै पहले किसी टाउनशिप के डीपीआर को मंजूर होने में 3 साल तक का वक्त लगता था, लेकिन अब ये समय सिमट कर महज 18 महीने हो गया है। वहीं नॉन-रिफंडेबल फीस जो कभी 1 लाख रुपये लगा करती थी, वो अब 1000 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से चार्ज की जायेगी। इतना ही नहीं औद्योगिक और इंटरनल ट्रेड को बढ़ावा देने के लिए 100 प्रतिशत एफडीआई की भी अनुमति होगी। वहीं हॉरिजोंटल विकास के लिए चंडीगढ़ जैसी टाउनशिप प्लानिंग को बढ़ावा दिया जाएगा। इसमें पैदल यात्रियों के लिए फुटपाथ और खराब जगह को ग्रीन बेल्ट में बदलने का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा टाउनशिप प्लानिंग में पार्क, स्पोर्ट कॉम्प्लेक्स, पार्किंग, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, पुलिस स्टेशन, जीरो वेस्ट फैसिलिटी, बागवानी की सुविधा इत्यादि का विकास किया जाएगा। जबकि शहर की डिजाइनिंग के लिए बड़ी इमारतों के डिजाइन में वहां के इतिहास, सांस्कृतिक और हेरिटेज को बढ़ावा दिया जाएगा। 

पर इस पॉलिसी की जो सबसे ख़ास बात है वो ये कि इसमें गरीब और लोअर मिडिल क्लास लोगों का खास ख़याल रखा गया है। सरकार से मंजूरी पाने वाली टाउनशिप योजनाओं में 20 प्रतिशत आवास आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) और लोअर इनकम ग्रुप (एलआईजी) के लिए आरक्षित रखे जाएंगे। वहीं क्लाइमेट चेंज की चुनौतियों से निपटने के लिए वेटलैंड, वाटर बॉडीज और बाढ़ क्षेत्र को टाउनशिप के साथ इंटीग्रेट किया जाएगा। 

ऐसे में ये नई टाउनशिप पॉलिसी ना सिर्फ राज्य में शहरीकरण बढ़ाएगी, बल्कि अरबनाइजेशन के मामले में यूपी के अलग-अलग जिलों में भारी अंतर को भी दूर करेगी। और साथ ही साथ गरीब और लोअर मिडिल क्लास लोगों के लिए ये नीति एक वरदान साबित होगी।

 

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