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पृथ्वी का एकमात्र ऐसा जीव जो सबसे लंबे समय तक जीवित रहता है, वह है टर्टल यानी कछुआ,,,

पृथ्वी का एकमात्र ऐसा जीव जो सबसे लंबे समय तक जीवित रहता है, वह है टर्टल यानी कछुआ,,,

भारत में इनकी करीब 28 प्रजातीय पाई जाती हैं, जिसमें 13 प्रजातियां गंगा में मिलती हैं। हालांकि वर्तमान समय में इनकी ज़्यादातर प्रजातियां विलुप्त होने की कागार पर हैं। पूरे भारत में फ्रेशवाटर टर्टल की एकलौती सेंचुरी हैं उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में। यह गंगा के 7 किलोमीटर के इलाके को कवर करती है।  वाराणसी के रामनगर से लेकर मालवीय नगर पुल के बीच यह सेंचुरी गंगा एक्शन प्लान के तहत 1987 में नोटिफाई की गई थी। गंगा एक्शन प्लान के तहत 7 किलोमीटर की सेंचुरी बनाने के पीछे की यह उद्देश्य था कि यह कछुए आर्गेनिक तौर पर गंगा नदी को साफ करेंगे।  दरअसल यह कछुए मांसाहारी थे जो नदी में दाह संस्कार के बाद बचे हुए मांस के अवशेषों को खाते थे। यानी नदी को साफ़ रखने के लिए सेंचुरी को यहां बसाया गया था।  अब अगर बात करें वाराणसी की इस सेंचुरी में पाए जाने वाली कछुआ प्राजातियों की तो यहां खासतौर से निल्सोनिया गैंगेटिका, लिसेमिस पंक्टाटा , चित्रा इंडिका, जो मांसाहारी प्रजातियां हैं और शाकाहारी कछुओं में जियोक्लेमिस हैमिल्टन, पंगशुरा टेंटोरिया,  बटागुर ढोंगोका प्रजातियां पाई जाती हैं। 


खैर, यह तो हुई टर्टल सेंचुरी की बात। अब आते इससे जुड़े ताजा विवाद पर। दरअसल अब इस जगह पर टर्टल सेंचुरी नहीं बल्कि बनारस की शानदार टेंट सिटी पाई जाती है।  वही टेंट सिटी जो वाराणसी में पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इस साल की शुरुआत में शुरू की गई थी। फिलहाल सेंचुरी को डीनोटिफाई करने की कवायद चल रही है। इस कवायद की शुरुआत तब हुई जब दो साल पहले पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर कहा था कि सेंचुरी के कछुए घाट को नुक्सान पहुंचा रहें हैं। इसके बाद साल 2018 में वाइल्ड लाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया (WII) द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट में बताया गया कि सेंचुरी को बढ़ते लोगों के दखल के चलते ख़तरा है। साथ ही यह भी बताया गया कि सेंचुरी में छोड़े गए कछुओं की 14 प्रजातियों में से केवल 5 प्रजातियां पाई गई हैं। ऐसे में राज्य सरकार इस सेंचुरी को डीनोटिफाई करने के लिए इसी रिपोर्ट को आधार बना रही है।

अब ऐसे में जब टेंट सिटी चर्चा में आई तो कछुआ वन्य अभ्यारण्य का मुद्दा एक बार फिर से चर्चा में आ गया। दरअसल बीते 17 मार्च को एनजीटी की तीन सदस्य पीठे ने एक संयुक्त हाल ही में सुनवाई के दौरान भी यह मुद्दा उठाया गया कि कछुआ सेंचुरी को आखिर किस कानून के हिसाब से हटाया गया। सुनवाई के दौरान प्रधानपीठ ने सरकारी वकील से यह कहा गया कि डीनोटिफाई कर देने से कछुआ सेंचुरी खत्म नहीं हो सकती।  जहां अभी टेंट सिटी है वहां पहले कछुआ सेंचुरी हुआ करती थी। वहीं कछुआ सेंचुरी को यहां से हटाकर अब गंगा के इलाहाबाद-मिर्जापुर के इलाके में नोटिफाई किया जाएगा।  जहां फिर से कछुओं को छोड़ा जाएगा।   

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