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यह महीना नवंबर का था, और इसी नवंबर के मही ने में साल 1857 में, आजादी के हजारों दीवानों ने ब्रिटिश ताकत को रोकने के लिए अपनी जान की आहुति दी थी। दिलकुशा, सिकंदरा बाद, शाहनजफ खुर्शीद मंजिल, न जाने कितनी जगह............ और न जाने कितने लोग नवाबों का शहर, तहज़ीब, रवायत और नज़ाकत की विरासत, इन्हीं कुछ लफ़्ज़ों तक आकर लखनऊ की तारी फरुक सी जाती है।
⮚ इससे कितना जुदा है लखनऊ?
⮚ इसकी कौन सी गुफ़्तगू है जो बस कुछ किताबों और कुछ शख्सियत के ज़ेहन में दफ़न है?
⮚ वो अतीत, हमारी जिंदगी की आपाधापी में किस धुंधलके में चला गया है?
खोजेंगे हम इन पहलुओं का इतिहास और बात करेंगे उस बीते कल की, जब नज़ाक़त और नफ़ासत से जुड़ा यह शहर विदेशी ताकतों के सामने सख्त रवैये में एक जुट हो कर खड़ा था, चप्पे चप्पे पर क्रांति के बिगुल बज रहे थे और दौर था - आज़ादी की पहली जंग 1857 का। अक्सर 1857 को हम दिल्ली , झांसी या मेरठ से जुड़ी बगावत से जोड़ कर देखते हैं लेकिन सबसे ज्यादा समय तक लखनऊ ने बगावत का परचम बुलंद किया। इसके बाद भी लखनऊ की वो इमारतें, वो स्थल जिसने कई कुर्बानियां देखी, जबरदस्त मुकाबले लड़े, उनसे आज भी हमारी पीढ़ियां अनजान हैं। अब हम मुलाकत करेंगे शहर के उन्हीं गुम हो चुके रंगो से .......और उलटेंगे अतीत के उन पन्नों को जिसे हम सब ने बिसरा दिया है। बस दिन... तारीख... और चैनल याद रखिये और हमारे साथ उन पलों को साझा कर भारत के 1857 की क्रांति के स्वात्रंत्य वीरों को श्रद्धांजलि अर्पित करिये।
देखिए हमारा खास कार्यक्रम बागी अवध... 25 नवंबर से
Baten UP Ki Desk
Published : 18 November, 2023, 7:59 pm
Author Info : Baten UP Ki