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विज्ञान की सबसे अनसुलझी पहेलियों में से एक है डार्क मैटर। एक ऐसा अज्ञात पदार्थ जिसे ब्रह्माण्ड में कुल पदार्थ का 85 प्रतिशत माना जाता है। आम भाषा में इसे ‘अंधेरा’ भी कहा जा सकता है क्योंकी यह किसी भी तरह की लाइट या इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन (Electromagnetic Radiation) के अन्य रूपों से संपर्क नहीं करता। यही वजह है कि इसे टेलिस्कोप या किसी अन्य इंस्ट्रूमेंट के माध्यम से नहीं देखा जा सकता। इसे जानने का एक मात्र तरीका है इसका गुरुत्वाकर्षण प्रभाव (Gravitational Effect), जिसे सितारों (Stars) और आकाशगंगा (Galaxy) के आसपास डिटेक्ट किया जाता है। यानी डार्क मैटर केवल ग्रेविटेशनल फोर्स के माध्यम से ही संपर्क करता है। यह गैलेक्सी के चारों तरफ एक तरह का ‘प्रभामंडल’ यानी ‘हेलो’ (Halo) बनाता है जो यहां स्टार्स और गैस की गतियों को समझने के लिए ज़रूरी गुरुत्वाकर्षण बल प्रदान करता है। दुनिया भर के तमाम वैज्ञानिक आज भी डार्क मैटर की मिस्ट्री को समझने और इसे सुलझाने के लिए कई प्रयोग कर रहें हैं। इसमें भारत के भी कई वैज्ञानिक शामिल हैं। इनमें से एक नाम है -प्रो. भारतेंदु कुमार सिंह । इन दिनों प्रो. भारतेंदु कुमार काफी फिर चर्चा में हैं। चर्चा की वजह है, उन्हें भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी, डिजाइन एवं विनिर्माण संस्थान (IIITDM), जबलपुर का निदेशक बनाया गया है। भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने नोटिफिकेशन जारी कर बताया कि वह आने वाले 5 सालों तक इस पद पर बने रहेंगे। बहुत जल्द वह अपनी नई जिम्मेदारियों को संभालेंगे और संस्थान का नेतृत्व करेंगे। फिलहाल वह न्यूक्लियर फिजिक्स के साइंटिस्ट और बीएचयू के हेड ऑफ़ इंटरनल क्वालिटी एश्योरेंस सेल के पद पर कार्यरत है।
कौन हैं प्रो. भारतेंदु कुमार सिंह
प्रो. भारतेंदु मूल रूप से बिहार के मधेपुरा जिला के निवासी हैं। साल 1989 में मगध यूनिवर्सिटी से MSC करने के बाद उन्होंने 1996 में बीएचयू से पीएचडी किया। उसके बाद उन्हें बीएचयू में ही प्रोजेक्ट रिसर्च एसोसिएट के तौर पर नियुक्त किया गया। इसके बाद वह इजराइल के वाइजमैन साइंस इंस्टीट्यूट (Weizmann Institute of Science) में पोस्टडॉक्टोरल फेलो (PDF) रहें। 2002 से 2004 के बीच वह नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर न्यूक्लियर फिजिक्स (INFN) पोस्ट में पीडीएफ रहें, जहां उन्होंने जेनेवा (Geneva) के सर्न स्थित न्यूक्लियर रिसर्च आर्गेनाईजेशन में काम किया। इसके बाद साल 2004 में वह अमेरिका के कोलंबिया यूनिवर्सिटी में रिसर्च साइंटिस्ट के तौर पर रहें। यहां वह डार्क मैटर पर कार्य करते रहें। साल 2005 में बीएचयू में वह रीडर के पद पर और साल 2011 से वह प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं।
कब हुई थी IIITDM जबलपुर की स्थापना
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फोर्मेशन टेक्नोलॉजी, डिजाइन एंड मैन्युफैक्चरिंग, जबलपुर, को पंडित द्वारका प्रसाद मिश्रा के नाम से भी जाना जाता है। भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा साल 2005 में इसकी स्थापना की गई थी। इसे डिजाईन के क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण तकनीकी शिक्षा देने के साथ ही टेक्निकल स्टडी के लिए भी स्थापित किया गया था। इसे भारत सरकार द्वारा आईटी अधिनियम के तहत राष्ट्रीय महत्व का संस्थान भी घोषित किया गया। साल 2021 में IIITDM जबलपुर को नेशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क (NIRF) द्वारा इंजीनियरिंग संस्थानों में 80वां स्थान दिया गया है।
IIITDM किस क्षेत्र में करती हैं काम
भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी की यह संस्थान कई तरह के डिज़ाइन और मैन्युफैक्चरिंग पर ध्यान केंद्रित करता है, जिसमें प्रोडक्ट डिज़ाइन, इंडस्ट्रियल डिज़ाइन, मैन्युफैक्चरिंग इंजीनियरिंग- इसमें मैन्युफैक्चरिंग प्रोसेस, प्रोडक्ट योजना, इसकी उचित क्वालिटी, सप्लाई चेन प्रबंधन शामिल है। कम शब्दों में कहें, तो अच्छे डिजाईन और निर्माण की प्रक्रिया से बेहतर प्रोडक्ट, ज्यादा कुशल प्रोडक्ट, और लंबे समय तक टिकने वाले प्रोडक्ट का निर्माण किया जाता है। दरअसल, भारत पिछले कई सालों से डिजाइनिंग और मैन्युफैक्चरिंग के विषय पर फोकस कर रहा है। इससे देश के आर्थिक विकास में तो मदद मिलेगी ही साथ ही रोजगार सृजन को भी बढ़ावा मिलेगा।
‘डिजाईन इन इंडिया’ अभियान
भारत के पास कारीगरी और हस्तकला का एक लंबा इतिहास होने के साथ ही एक समृद्ध संस्कृतिक विरासत भी है। भारत सरकार ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के तहत देश को मैन्युफैक्चरिंग सेंटर में बदलने का प्रयास कर रही है। वहीं सरकार के अभियान ‘डिजाईन इन इंडिया’ के माध्यम से भारतीय डिजाइनिंग के टैलेंट और क्रिएटिविटी को बढ़ावा मिल रहा है। भारत, डिज़ाइन और विनिर्माण के क्षेत्र में निवेश करके ऐसे उत्पादों को बना सकेगा जो ख़ास तौर से भारतीय होंगे। साथ ही इन प्रोडक्ट की घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बढ़ती मांग को भी पूरा किया जा सकेगा।
Baten UP Ki Desk
Published : 2 May, 2023, 4:17 pm
Author Info : Baten UP Ki